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मानवीय भावों की सरगम है संगीत -Dr. Rajesh K Chauhan

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मानवीय भावों की सरगम है संगीत  डॉ.राजेेेश के चौहान    संगीत कला मानवीय भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है, जो हमें विरासत के रूप में अपने पूर्वजों से प्राप्त हुई है। भारत आदिकाल से ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विविधता एवं परंपराओं के कारण विश्व पटल पर विशेष पहचान बनाए हुए है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता है। भारत में  विविध धर्म, भाषाएं, बोलियां, रीति-रिवाज़ तथा भौगोलिक विभिन्नताएं हैं, बावजूद इसके भी एक अखंड राष्ट्र के रूप में अडिग खड़ा है। संगीत पुरातन काल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। प्रसन्नता की स्थिति में मानव ने अपने मनोभावों को प्रदर्शित करने के लिए हू हू हा हा इत्यादि आवाज़ों के साथ-साथ अपने हाथ पैर हिलाना तथा उछलना कूदना शुरू किया। धीरे-धीरे उसने हाथ से ताली देना तथा लकड़ी की डंडियों से किसी धातु या पत्थर को बजाना शुरू किया। यहीं से मानव ने संगीत की तरफ़ पहला क़दम बढ़ाया। परवर्ती काल में मानव ने डमरु, शंख, भूमि दुंदुभी, मृदंग, भेरी इत्यादि वाद्यों का निर्माण किया। भाषा के विकास के साथ लोक गीतों एवं नृत्यों के ...