भारतीय कला और संस्कृति का सम्मान है नई शिक्षा नीति
- डॉ.राजेश के चौहान हमारे शास्त्र साहित्य, संगीत और कला विहीन मनुष्य को पूंछ तथा सींग रहि त पशु की संज्ञा देते हैं। भारतीय संस्कृति चिरकाल से विश्व पटल पर अपनी विशेष छाप छोड़ती चली आ रही है। एक दौर था जब हमें विश्वगुरु होने का गौरव प्राप्त था। दुर्भाग्यवश विदेशी आक्रमणकारियों और अन्य ताक़तों ने भारत पर बार- बार आक्रमण कर यहां की सुप्राचीन संस्कृति और ज्ञान को नष्ट करने की पुरज़ोर कोशिश की। इस क्रम में हमारे बहुत सारे ग्रंथों का लोप हो गया था या उन्हें नष्ट भ्रष्ट कर दिया गया था। उल्लेखनीय है कि यह प्रक्रिया पूर्व मध्यकाल में महमूद गजनबी के काल से लेकर मध्य काल में दिल्ली और मुग़ल शासकों तक जारी रही। कालान्तर में ब्रिटिश शासकों ने अंग्रेज़ी के माध्यम से तत्कालीन ब्रिटिश भारत को शिक्षित करने का प्रयास अवश्य किया परंतु उनका प्रयास स्वार्थ से भरा हुआ था। क्योंकि वह एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहते थे जो रूप रंग से तो भारतीय हो परंतु मस्तिष्क से ब्रिटिश मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता हो। तब से लेकर आज तक कुछ संशोधनों के साथ यह शिक्षा प्रक्रिया चली आ रही है जिसमें आज आमूलचूल परिवर्तनों की आवश्यकत...