जलमग्न सभ्यता और संस्कृति का साक्षी है बिलासपुर शहर - Dr.Rajesh K Chauhan
सांडु रे मदाना च झीला रा पाणी... - डॉ.राजेश के चौहान कहलूर रियासत के चौंतीसवें शासक राजा दीपचंद ने सन् 1654 ईस्वी में अपनी राजधानी सुन्हाणी से व्यासपुर स्थानांतरित की थी। व्यासपुर में रंगनाथ, खनेश्वर, नर्वदेश्वर, गोपाल मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, बाह का ठाकुरद्वारा, ककड़ी का ठाकुरद्वारा, नालू का ठाकुरद्वारा, खनमुखेश्वर इत्यादि प्राचीन मंदिर और व्यास नामक गुफ़ा थी। इन मंदिरों में सबसे प्राचीन रंगनाथ मंदिर शिव को समर्पित था। कहा जाता है कि पुरातन काल में महर्षि वेद व्यास ने यहाँ सतलुज नदी के किनारे तपस्या की थी। ऐसी भी मान्यता है कि व्यास गुफ़ा में ही उन्होंने महाकाव्य महाभारत की रचना की थी। सम्भवतः इसी गुफ़ा के नाम पर इस स्थान का नाम व्यासपुर और फिर बिलासपुर पड़ा। राजा दीप चंद ने बिलासपुर में रंगमहल, धौलरा महल, रंगनाथ मंदिर के सामने धर्मशाला और देवमती मंदिर का निर्माण करवाया था। इस शहर ने राजसी शानो-शौक़त से लेकर आधुनिक बिलासपुर तक अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं। लोग इसे डूबी हुई संस्कृति का शहर भी कहते हैं। यहां की सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक धरोहर देश के विकास की ख़ाति...