शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

संगीत की उत्पत्ति - Dr. Rajesh K Chauhan

संगीत की उत्पत्ति के विषय में हमें कोई भी ठोस प्रमाण प्राप्त नहीं होता। फिर भी अनेक ग्रंथों में संगीत की उत्पत्ति से संबंधित अलग-अलग धारणाएं मिलती हैं। जिनमें से कुछ धार्मिक दृष्टिकोण लिए हुए हैं तो कुछ मनोवैज्ञानिक, कुछ जल से संगीत की उत्पत्ति मानते हैं तो कुछ पक्षियों से ।
धार्मिक दृष्टिकोण
हिंदू दर्शन के अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा ने संगीत का निर्माण किया तथा उसे शिव जी को दिया।  शिव से यह सरस्वती को मिला, सरस्वती ने नारद को तथा नारद ने इसका प्रचार गंधर्व, किन्नरों आदि में किया। इस प्रकार संगीत प्रसारित होता चला गया।
एक अन्य मत के अनुसार शिव ने पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण तथा आकाश की ओर के अपने पांच मुखों से पांच राग भैरव, हिंडोल, मेघ, दीपक व श्री बनाएं तथा  पार्वती ने छठा राग कौशिक उत्पन्न किया।
फारसी की एक कथा के अनुसार हज़रत मूसा पैगंबर को एक पत्थर मिला इस पत्थर के साथ टुकडे हो गए जिनमें से 7 धाराएं बहने लगी तथा हर धारा से अलग-अलग ध्वनियां निकली जो सात स्वर बन गए ऐसा भी माना जाता है।
पक्षियों से संगीत की उत्पत्ति
पंडित दामोदर ने अपनी पुस्तक संगीत दर्पण में लिखा है कि संगीत की उत्पत्ति पक्षियों से हुई है। उनके अनुसार सात स्वरों की उत्पत्ति इस प्रकार बताई गई है-  मोर से सा, चातक से रे, बकरे से ग, कौआ से म,  कोयल से प, मेंढक से ध तथा हाथी से नि स्वर की उत्पत्ति हुई है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ विद्वानों का कहना है कि संगीत का जन्म एक शिशु के समान मनोवैज्ञानिक आधार पर हुआ है। जिस प्रकार एक शिशु हंसना, रोना अपने आप ही सीख जाता है, उसी प्रकार संगीत का प्रादुर्भाव भी मानव में मनोवैज्ञानिक आधार पर हुआ है। प्रसिद्ध विद्वान जैम्स लैंग के अनुसार पहले मानव ने बोलना सीखा, चलना सीखा फिर धीरे-धीरे क्रियाशील होने पर उसके अंदर अन्य कलाओं की भांति संगीत भी स्वत: ही उत्पन्न हो गया।

संगीत की परिभाषा - Dr. Rajesh K Chauhan

'' सम्यक प्रकारेणयद् गीयते तत्संगीतम् ''
जो भली प्रकार गाया जाए वह संगीत है। संगीत शब्द सम् (सम्यक्  यानी सुन्दर) + गीत से बना है। सम्यक प्रकार से अर्थात स्वर ,लय,ताल, शुद्ध उच्चारण के साथ जो गाया जाए उसी का नाम संगीत है।
प्राचीन काल में संगीत की परिभाषा :- संगीत शब्द गीत में सम उपसर्ग लगाकर बना है। सम का अर्थ है अच्छा और गीत से भाव गायन से है अर्थात भलीभांति गाया हुआ गीत ही संगीत है। ओम का उच्चारण संगीतमय है अर्थात सृष्टि के आरंभ के साथ ही संगीत का आरंभ हुआ। परंतु हमें सबसे पहला संगीत ग्रंथ भरतमुनि का नाट्यशास्त्र मिलता है। भरत के समय में गायन की प्रमुखता थी और वादन तथा नृत्य गायन कला के साथ चलते थे।
आधुनिक काल में संगीत की परिभाषा :-
      
" गीतं, वाद्यं तथा नृत्यं त्र्य संगीतमुच्यते।"
मध्यकाल में पंडित शारंगदेव ने संगीत की परिभाषा में स्पष्ट किया है कि गायन, वादन और नृत्य के संयोग को ही संगीत कहते हैं।  अर्थात संगीत शब्द के अन्तर्गत गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों कलाओं का समावेश होता है। वास्तव में यह तीनों कलाएं एक दूसरे पर आश्रित हैं। इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। नृत्य वादन के अधीन तथा वादन गायन के अधीन है। गायन को इन तीनों कलाओं में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। समय में संगीत की यही परिभाषा सर्वमान्य है।

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