'' सम्यक प्रकारेणयद् गीयते तत्संगीतम् ''
जो भली प्रकार गाया जाए वह संगीत है। संगीत शब्द सम् (सम्यक् यानी सुन्दर) + गीत से बना है। सम्यक प्रकार से अर्थात स्वर ,लय,ताल, शुद्ध उच्चारण के साथ जो गाया जाए उसी का नाम संगीत है।
जो भली प्रकार गाया जाए वह संगीत है। संगीत शब्द सम् (सम्यक् यानी सुन्दर) + गीत से बना है। सम्यक प्रकार से अर्थात स्वर ,लय,ताल, शुद्ध उच्चारण के साथ जो गाया जाए उसी का नाम संगीत है।
प्राचीन काल में संगीत की परिभाषा :- संगीत शब्द गीत में सम उपसर्ग लगाकर बना है। सम का अर्थ है अच्छा और गीत से भाव गायन से है अर्थात भलीभांति गाया हुआ गीत ही संगीत है। ओम का उच्चारण संगीतमय है अर्थात सृष्टि के आरंभ के साथ ही संगीत का आरंभ हुआ। परंतु हमें सबसे पहला संगीत ग्रंथ भरतमुनि का नाट्यशास्त्र मिलता है। भरत के समय में गायन की प्रमुखता थी और वादन तथा नृत्य गायन कला के साथ चलते थे।
आधुनिक काल में संगीत की परिभाषा :-
" गीतं, वाद्यं तथा नृत्यं त्र्य संगीतमुच्यते।"
मध्यकाल में पंडित शारंगदेव ने संगीत की परिभाषा में स्पष्ट किया है कि गायन, वादन और नृत्य के संयोग को ही संगीत कहते हैं। अर्थात संगीत शब्द के अन्तर्गत गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों कलाओं का समावेश होता है। वास्तव में यह तीनों कलाएं एक दूसरे पर आश्रित हैं। इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। नृत्य वादन के अधीन तथा वादन गायन के अधीन है। गायन को इन तीनों कलाओं में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। समय में संगीत की यही परिभाषा सर्वमान्य है।
" गीतं, वाद्यं तथा नृत्यं त्र्य संगीतमुच्यते।"
मध्यकाल में पंडित शारंगदेव ने संगीत की परिभाषा में स्पष्ट किया है कि गायन, वादन और नृत्य के संयोग को ही संगीत कहते हैं। अर्थात संगीत शब्द के अन्तर्गत गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों कलाओं का समावेश होता है। वास्तव में यह तीनों कलाएं एक दूसरे पर आश्रित हैं। इन्हें एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। नृत्य वादन के अधीन तथा वादन गायन के अधीन है। गायन को इन तीनों कलाओं में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। समय में संगीत की यही परिभाषा सर्वमान्य है।
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