दोबारा लॉकडाउन लगा तो संभलना मुश्किल हो जाएगा
गत वर्ष कोरोनावायरस के कारण लगे लॉकडाउन के घाव अभी भी हरे हैं। ज़ख्म इतने गहरे हैं कि मानव जाति सदियों तक इनकी वेदना से कहराती रहेगी। पिछले वर्ष 21 मार्च के दिन सम्पूर्ण भारत एक दिन के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया गया तथा 24 मार्च से 21 दिन का लॉकडाउन केंद्र सरकार द्वारा लगा दिया गया था। केवल आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में लगे लोगों, मेडिकल सेवाएं और पुलिस प्रशासन को छोड़कर सब कुछ बंद कर दिया गया था। सड़कें वीरान हो गई थीं। पार्क में इंसानों की जगह आवारा पशु और जंगली जानवर टहलते नज़र आते थे। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, जिम, सिनेमाघर, खेल के मैदान सब के सब सुने पड़ गए थे। भारी तादाद में मजदूरों का पलायन वास्तव में भयावह था। 1000 से 2000 किलोमीटर तक का पैदल सफर अत्यधिक दर्दनाक और डरावना था। सूरज की तपन, पीठ में छोटा बच्चा, भूखे-प्यासे, नंगे पांव मीलों का वह सफर हर किसी के दिल को झकझोर कर रख देता है। आवश्यक वस्तुओं के लिए लगी लंबी कतारें और ऊपर से बेबस पुलिस के डंडे शायद हर किसी के ज़हन में आज भी सजीव होंगे।
सामाजिक परंपराएं, तीज़-त्योहार, रीति-रिवाज और पुरातन रस्में, सब ढकोसले बाजी नज़र आने लगीं। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद शव को जलाया जाता है लेकिन करोना संक्रमित व्यक्ति के शव को दफनाया तक जाने लगा। परिजन अपने ही परिवार के सदस्य के शव को देखने तक से डरने लगे घर ले जाकर उसका अंतिम संस्कार तो दूर की बात थी। हॉस्पिटल करोना मरीजो से भर गए थे। ऐसे में दूसरी बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति हॉस्पिटल जाने से डरने लग गए थे। ऐसा मंजर कि एक मानव दूसरे मानव से डरने लग गया। वायरस रूपी दुश्मन नया और ताकतवर था। ना कोई वैक्सीन और ना ही कोई दवाई इसे हरा सकती थी। केवल सामाजिक दूरी रूपी शस्त्र ही कोरोनावायरस से बचाव का एकमात्र विकल्प दुनिया के पास बचा था। इसी कारण संपूर्ण विश्व कई महीनों तक बंद रहा।
दुनिया भर के करोड़ों लोगों में संक्रमण फैला जिसके फलस्वरूप लाखों लोगों की मृत्यु भी हुई। सामाजिक दूरी, मास्क और हैंड सैनिटाइजर कोरोना से बचने के रक्षा कवच बने। भारत की केंद्र तथा राज्य सरकारों के मिले-जुले प्रयासों से कोरोनावायरस धीरे-धीरे कम होने लगा। वक्त ऐसा भी आया जब भारत में एक दिन में संक्रमितों की संख्या 96,000 तक पहुंच गई लेकिन उसके बाद संक्रमित व्यक्तियों की तादाद में लगातार कमी आई। लॉकडाउन मानवता को बचाने में कारगर सिद्ध हुआ। अर्थव्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने के लिए धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जाने लगी। दिनचर्या को सामान्य रूप से चलाने के प्रयास किए गए। अग्रिम पंक्ति के करोना योद्धाओं, विभिन्न सामाजिक संगठनों एवं आम जनमानस ने अपने-अपने स्तर पर कोरोनावायरस को रोकने के लिए प्रयास किए। कोरोनावायरस के प्रति जागरूकता फैलाने के प्रयास आरंभ से ही किए जाने लगे थे। जिसके सकारात्मक परिणाम भी आए।
विद्यार्थियों की शिक्षा को महामारी ने गहरा प्रभावित किया। प्रारंभिक दौर में स्कूल कॉलेज बंद हो जाने के बाद पढ़ाई पूरी तरह से प्रभावित रही लेकिन धीरे-धीरे ऑनलाइन शिक्षा का दौर आया। शिक्षकों ने व्हाट्सएप, यूट्यूब, फेसबुक, मोबाइल कॉल्स के माध्यम से बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। कुछ समय पश्चात् कक्षाएं गूगल क्लासरूम, जूम एप, गूगल मीट इत्यादि एप्लीकेशंस के माध्यम से सुचारू ढंग से चलाई जाने लगीं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़ी-बड़ी बैठकों का आयोजन ऑनलाइन माध्यम से किया जाने लगा। हर किसी ने कोरोनावायरस कम करने की पुरजोर कोशिश की। मजदूरों के पलायन और बड़ी संख्या में नौकरियां छिन जाने के बाद देश के सामने गरीब तबके के लोगों को भुखमरी से बचाना बड़ी चुनौती था। इस दिशा में सरकार और विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। विभिन्न प्रभावशाली व्यक्तियों ने भी अपने अपने स्तर पर इस दिशा में प्रयास किए। प्रधानमंत्री राहत कोष में देश के सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ आम लोगों ने भी एक दिन, एक महीना, एक साल तक की सैलरी दान कर दी। उद्योगों में कामकाज बंद हो जाने के कारण अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। नवंबर-दिसंबर महीने आते-आते सरकार ने लगभग सभी पाबंदियां दिया धीरे-धीरे हटा दी थीं। लोग सामान्य जीवन जीने लगे और अर्थव्यवस्था शनैः - शनैः पटरी पर लौटनी शुरू हो गई।
जनवरी 2021 में कोरोना वैक्सीन आ जाने के बाद लोगों के चेहरे खुशी से खिलने लगे। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय फिर से खोल दिए गए। सिनेमाघर, पार्क, खेल के मैदान, जिम, रेस्त्रां, होटल तथा पर्यटक स्थल लगभग एक साल के सन्नाटे के बाद फिर से गुलज़ार हो गए। वैक्सीनेशन का कार्य अग्रिम पंक्ति के कोरोना योद्धाओं से शुरू किया गया तथा धीरे-धीरे बुजुर्गों और आम लोगों को इसके दायरे में लाया गया। भारत में वैक्सीनेशन का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। अब तक 4 करोड से अधिक लोगों को कोरोनावायरस की वैक्सीन लगाई जा चुकी है। वैक्सीन आ जाने के बाद लोग सामाजिक दूरी, मास्क और हैंड सैनिटाइजर का प्रयोग धीरे धीरे कम करने लगे। सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक समारोहों में भीड़ बढ़ने लगी। बाज़ार भीड़ का केंद्र बनने लगे, मानो कोरोनावायरस समाप्त हो चुका हो। क्षमता से अधिक सवारियां बसों में फिर से सफर करने लगीं। स्थानीय प्रशासन भी धीरे-धीरे पाबंदियों में ढील देता नजर आया। मार्च 2021 आते-आते करोना ने एक बार फिर से अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। 21 मार्च 2020 को भारत में एक दिन का लॉकडाउन लगाया गया था। उसके ठीक एक वर्ष बाद वही स्थिति बनती नजर आ रही है। देश में लगातार कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में इज़ाफा अत्यधिक चिंताजनक है। कई राज्यों में शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया गया है तथा सामाजिक तथा धार्मिक समारोह में पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। पर्यटन हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्रोत है। बाहरी राज्यों से हिमाचल में पर्यटकों की भारी तादाद में बिना किसी रोक-टोक के एंट्री हो रही है तथा स्थानीय लोग पूरी तरह से लापरवाह हो गए हैं। यदि यहां करोना के मामले बढ़ते हैं तो फिर से लॉकडाउन की स्थिति बन सकती है। यदि फिर से लॉकडाउन लग गया तो प्रदेश के लिए संभलना काफी मुश्किल हो जाएगा। हिमाचल प्रदेश पहले ही कर्ज़ के बोझ तले दबा हुआ है। यदि कोरोना की दूसरी लहर को समय रहते नहीं रोका गया तो आने वाला समय अत्यधिक कठिनाइयों वाला होगा। फिर से लॉकडाउन देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगा। जिससे उभरने में हमें कई वर्ष लग जाएंगे। जागरूक नागरिक होने के नाते हम सभी का कर्तव्य बन जाता है कि हम कोरोना से बचने के नियमों का कड़ाई से पालन कर सामाजिक दूरी बना कर रखें। अनावश्यक रूप से भीड़ से दूर रहें केवल आवश्यक कार्यों हेतु ही घर से बाहर निकलें। भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में मास्क के बिना न जाएं। मास्क आपको न केवल कोरोना से बचाएगा बल्कि अन्य संक्रमणों से भी आपकी रक्षा करेगा और हां अपनी बारी आने पर वैक्सीन को लगवाने अवश्य जाएं।