गुरुवार, 12 अक्टूबर 2023

हिमाचली लोक संगीत के पितामाह - एस.डी.कश्यप ( SD Kashyap ) - Dr. Rajesh K Chauhan

 70 के दशक में हिमाचल के दूर दराज़ के गांव से निकल कर माया नगरी में संगीत की लौ जगाने वाले मश़हूर संगीतकार एस.डी. कश्यप को हिमाचली संगीत का पितामाह कहा जाता है। जिस दौर में हिमाचल के अधिकतर गांव, कस्बे बिजली की एक  झलक पाने को तरसते थे, गांव में किसी विशिष्ट परिवार के पास ही टीवी, ट्रांजिस्टर या टेप रिकॉर्डर हुआ करते थे उस दौर में कश्यप साहब ने मंडी के सकरोहा में रिकॉर्डिंग स्टूडियो का निर्माण किया। 1986 में "साऊंड ऑफ़ साऊंड" नाम से खोले गए इस रिकॉर्डिंग स्टूडियो ने हिमाचली लोक संगीत की दुनियां में नई क्रांति का शंखनाद किया। इस स्टूडियो के निर्माण से पहले हिमाचली कलाकार केवल आकाशवाणी में स्वर परीक्षा पास करने के उपरांत ही अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करवा सकते थे लेकिन  स्टूडियो खुल जाने के बाद कोई भी व्यक्ति अपनी आवाज़ को उनके स्टूडियो में जाकर रिकॉर्ड करवा सकता था हालांकि उसे स्वर और ताल का ज्ञान होना अनिवार्य था। ये चाहते तो मुंबई में ही रहकर संगीत निर्देशन का कार्य कर सकते थे। अपने करियर को अन्य संगीतकारों की तरह मायानगरी में ऊंचाइयों पर ले जा सकते थे, शानो-शौक़त भरी आरामदायक ज़िन्दगी जी सकते थे लेकिन इन्होंने अपनी जन्मभूमि को ही कर्मभूमि बनाया। ये हिमाचल के लोगों की सेवा करना चाहते थे। यहां के लोक संगीत को देश-प्रदेश के हर कोने तक पहुंचाना चाहते थे। हिमाचली लोक कलाकारों को  संगीत की बारीक़ियां सिखाना चाहते थे। इनकी ख़्वाहिश थी कि हमारे प्रदेश के युवा भी अन्य राज्यों के युवाओं की भांति नयी तक़नीक से जुड़ें। हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत भी नयी सोच, नए वाद्य यंत्रों, नई परिकल्पना के साथ जन-साधारण तक पहुंचें। लोक वाद्य यंत्रों के साथ पश्चात्यीय वाद्यों का फ्यूज़न कर इन्होंने हिमाचली लोक संगीत के नए युग का आरंभ किया। 


सोमदेव कश्यप का जन्म हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में भगवाहन मोहल्ला में 18 अप्रैल 1948 को एक साधारण परिवार में हुआ। इनकी माता का नाम रुपा देवी और पिता का नाम शिव शंकर था। चार भाइयों और दो बहनों में ये सबसे छोटे थे। मात्र 10 वर्ष की आयु में इनके सिर से पिता का साया उठ गया था। पिता के स्वर्गवास के बाद घर की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई। पिता की मृत्यु के बाद इनकी माता ने ही अपने 6 बच्चों का पालन-पोषण किया। इनके सबसे बड़े भाई चन्द्रमणी कश्यप ने उस कठिन समय में अपनी माता का अत्यधिक साथ दिया। अपने छोटे भाई-बहनों की पढ़ाई-लिखाई में उन्होंने अपनी माता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत की। एस.डी.कश्यप ने अपनी प्रारंभिक परीक्षा पढ़ाई विजय हाई स्कूल मंडी से प्राप्त की। सोमदेव का रुझान बाल्यकाल से ही पढ़ाई की अपेक्षा संगीत की तरफ़ अधिक था। ये विद्यालयीय समय से ही सांस्कृतिक/सांगीतिक क्रियाकलापों में भाग लेते रहे और अपने स्कूल के लिए संगीत की विभिन्न प्रतियोगिताओं में हर बार पुरस्कार जीत कर लाते रहे। उस दौर में मंडी शहर में लगभग तीन-चार घरों में ही रेडियो हुआ करते थे। जब रेडियो पर गाने बजते तो बालक सोमदेव उन्हें सुनने दूसरों के घर जाया करते थे। रेडियो पर बजने वाले गानों को सुन-सुन कर उन्हें गुनगुनाने की कोशिश भी किया करते थे। उनके आस-पड़ोस में दो-तीन घरों में हारमोनियम भी हुआ करते थे। हारमोनियम बजाने की ख़ातिर बालक सोमदेव उन घरों में जाकर छोटा-मोटा काम कर दिया करते थे ताक़ि हारमोनियम बजाने को मिल सके। बच्चे की रुचि देखकर लोग उन्हें कभी-कभार हारमोनियम बजाने को दे दिया करते थे।

वर्ष 1964 में दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण एस.डी.कश्यप को नौकरी करनी पड़ी। कुछ सालों तक ये गुज़र-बसर करने के लिए निजी क्षेत्र में नौकरी करते रहे। 1968 में इन्हें हिमाचल गवर्नमेंट ट्रांसपोर्ट में परिचालक की नौकरी मिल गई। ट्रांसपोर्ट की नौकरी के दौरान ही उनकी मुलाक़ात संगीत गुरु श्याम लाल ठाकुर से हुई। श्याम लाल ठाकुर उन दिनों हिमाचल ट्रांसपोर्ट में चालक के रूप में कार्यरत थे। वो शास्त्रीय संगीत के अच्छे ज्ञाता थे तथा मंडी में संगीत विद्यालय भी चलाया करते थे। बाद में उनका चयन महाविद्यालय में संगीत के शिक्षक के रूप में हो गया था। श्याम लाल ठाकुर कुल्लू महाविद्यालय से एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने संगीत के क्षेत्र में कई होनहार छात्र तैयार किए, सोम देव कश्यप भी उनमें से एक हैं। एस.डी.कश्यप ने शास्त्रीय संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं से प्राप्त की। हालांकि सोमदेव का शास्त्रीय की जगह सुगम संगीत में अधिक रुझान था।  नौकरी से पैसे बचाकर इन्होंने दिल्ली से कुछ पाश्चात्य वाद्य यंत्र भी खरीदे। उस समय वायलिन, हवाईं गिटार, कोंगो-बोंगो मंडी शहर के लोगों के लिए बुल्कुल नए वाद्य यंत्र थे। इन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर  मंडी शहर में एक किराये का कमरा लिया और उसमें इन वाद्य यंत्रों को फ़िल्मी गानों को सुन-सुन कर बजाने का प्रयास शुरू किया। कश्यप साहब मश़हूर संगीतकार सचिन देव बर्मन को अपना गुरु मानते हैं उन्हीं के नाम पर इन्होंने मंडी में 1968 में "बर्मन आॅर्केस्ट्रा ग्रुप" का गठन भी किया। ये फ़िल्मी गानों में दिए गए संगीत को बड़े ही ध्यान से सुनते और उसे हू-ब-हू वाद्य यंत्रों पर बजाने की कोशिश किया करते थे। धीरे-धीरे इनका बैंड मंडी शहर में मश़हूर होने लगा और इन्हें स्टेज़ शो मिलना शुरु हो गए। इसी दौरान इन्होंने आॅर्केस्ट्रा पर अपनी रचनाएं बनाना और नए-नए गीत लिखना भी शुरू कर दिया। ये आॅर्केस्ट्रा निर्माण की और बारीकियां सीखना चाहते थे। इन पर संगीत का जुनून इस क़दर छाया हुआ था कि 1972 में इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और मुंबई चले गए।

जेब में मात्र 350 रुपए लेकर सोमदेव कश्यप माया नगरी में अपनी क़िस्मत आज़माने निकल पड़े। नया शहर, नए लोग और शुरू हुआ संघर्ष का दौर। शुरुआती दिनों में ये काफी तंगी में रहे कई बार भर पेट भोजन भी नहीं मिल सका और कई रातें रेलवे स्टेशन पर भी गुज़ारीं। 1973 में कश्यप ने बतौर सहायक संगीत निर्देशक अजय विश्वनाथ के साथ काम करना शुरू कर दिया था। इसी बीच उनकी मुलाक़ात शिमला से संबंध रखने वाले सुदर्शन नाग से हुई जो उसे दौर में वहां ख़्याति प्राप्त फ़ोटोग्राफ़र हुआ करते थे। हिमाचली होने के नाते उन्होंनेे सोमदेव कश्यप की काफी मदद की। सुदर्शन नाग ने इन्हें उस समय के ख़्याति प्राप्त अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा से मिलवाया। डैनी को इन्होंने अपने लिखे गाने सुनाएं जो उन्हें बहुत पसंद आए। डैनी ने अपने निजी सचिव के साथ एस.डी.कश्यप को एच.एम.वी. कंपनी भेजा। एच.एम.वी. से ही इनका पहला संगीत निर्देशित एल्बम "डैनी सिंग्ज़ ग़ज़ल, गीत, नज़्म" तैयार हुआ। उस समय लौंग और शाॅर्ट सॉन्ग प्ले रिकॉर्ड तैयार किए जाते थे। यह लॉन्ग सॉन्ग प्ले रिकॉर्ड था। इस क़ामयाबी के बाद इन्होंने हिंदी फ़िल्म "कोबरा" जो मार्शल आर्ट पर आधारित फ़िल्म थी, में बतौर संगीत निर्देशक कार्य किया। उनके द्वारा निर्देशित दूसरी फ़िल्म "अनोखा मोड़" थी। इसके बाद इन्होंने मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई फ़िल्मों तथा धारावाहिकों में संगीत निर्देशन का कार्य किया। इनके द्वारा निर्देशित अजनबी, उसूल आदि धारावाहिक दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ करते थे जिनसे इन्हें प्रसिद्धि मिली। इन्होंने अनेक प्रख़्यात पार्श्व गायकों एवं गायिकाओं के साथ भी संगीत निर्देशन का कार्य किया है जिनमें प्रमुख हैं- आशा भोंसले, अनुराधा पौडवाल, सुषमा श्रेष्ठा, सविता साथी, सुरेश वाडकर, मोहम्मद अजीज़, विनोद राठौर, अनवर, गौरी शंकर, दीपक इत्यादि।


इन्होंने 1984 में पहाड़ी गानों की पहली ऑडियो कैसेट भी मुंबई में ही रिकॉर्ड की थी जिसका नाम था " फोक़ सोंग्स ऑफ़ हिमाचल प्रदेश एंड डिस्को नाटी।" इस एल्बम में इनका साथ 'सविता साथी' जो उस समय की मश़हूर पंजाबी गायिका थीं ने दिया था। यह ऑडियो कैसेट हिमाचल प्रदेश की पहली पहाड़ी एल्बम थी। इसे अब तक की सबसे सुपर-डुपर हिट एल्बम माना जाता है। इस एल्बम की अपार सफलता के बाद शिमला में आयोजित की गई एक मीटिंग में हिमाचल के लोक कलाकारों और भाषा विभाग एवं अन्य संबंधित विभागों के अधिकारियों ने एस. डी. कश्यप से हिमाचल प्रदेश में भी रिकॉर्डिंग स्टूडियो खोलने का निवेदन किया ताक़ि हिमाचल के लोक कलाकार भी अपनी आवाज़ में ऑडियो कैसेट्स निकाल सकें। कश्यप साहब भी दिल से हिमाचली कलाकारों के लिए कुछ करना चाहते थे फलस्वरुप वर्ष 1986 में शकरोहा मंडी में इन्होंने हिमाचल प्रदेश का प्रथम रिकॉर्डिंग स्टूडियो "साउंड एंन साउंड" के नाम से स्थापित किया।
उस दौर में लोकगीत केवल सामाजिक,धार्मिक अनुष्ठानों/समारोहों तक ही सीमित हो गए थे, लोक जीवन में इन गीतों के प्रति उदासीनता का माहौल था, लोग फ़िल्मी गीतों पर झूमना अधिक पसंद करते थे परंतु जैसे ही कश्यप साहब के संगीत निर्देशन में स्टूडियो से आधुनिक वाद्ययंत्रों के साथ निर्मित ऑडियो कैसेट्स बाज़ार में आईं, हिमाचल की जनता ने इन कैसेट्स के गीतों को अत्यधिक प्यार देना शुरू कर दिया। लोग फ़िल्मी नग़मों को छोड़कर पहाड़ी धुनों पर थिरकना अधिक पसंद करने लग गए। इनके संगीत निर्देशन में काम करने वाले ज़िला शिमला के प्रथम लोक कलाकार मोहन सिंह चौहान थे जिनके गाने इतने मश़हूर हुए कि लोग उन्हें हिमाचली रफ़ी के नाम से पुकारने लगे। धर्मेन्द्र शर्मा, कुलदीप शर्मा, किशन वर्मा, विक्की चौहान, धीरज शर्मा, ठाकुर दास राठी, रविकांता कश्यप आदि अनेक कलाकारों ने इनके संगीत निर्देशन में पहाड़ी गानें रिकॉर्ड करवाए और ख़्याति अर्जित की।
इनके रिकॉर्डिंग स्टूडियो में दिन-रात संगीत की साधना चली रहती थी। कलाकार दूर-दूर से आते और कई-कई दिनों तक यहां ठहरते। उनके खाने-पीने रहने-सहने का खर्च भी कश्यप साहब ही उठाते थे। यहां रोज़ धाम की तरह खाना बनता था। साउंड एन साउंड केवल एक स्टूडियो मात्र नहीं था अपितु लोक कलाकारों की तपोस्थली बन चुका था। यहां गुरुकुल की भांति कई-कई महीनों तक कलाकार रुका करते थे और अपने गुरुजी एस.डी. कश्यप से नए-नए पाठ सीख कर संगीत साधना किया करते थे। कोई पेड़ के नीचे, कोई खेत की मेंढ़ पर, कोई स्टूडियो में बने अलग-अलग कमरों में तो कोई साथ लगते जंगल में जहां जगह मिल जाए वहीं अभ्यास में जुटे रहते थे। हिमाचल के प्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणी भी इन्हीं के शिष्य रहे हैं जिन्हें आज हिमाचल का बिस्मिल्लाह ख़ां कहकर भी पुकारा जाता है।

वर्ष 2000 में इन्होंने अपना रिकॉर्डिंग स्टूडियो सकरोहा से बदलकर कुल्लू और मंडी ज़िला की सीमा पर "पनारसा" गांव में खोला। इन्होंने अपने नए डिजिटल स्टूडियो का नाम "साउंड ऑफ़ माउंटेंस" रखा जो आज भी अनवरत कार्य कर रहा है। एस. डी. कश्यप ने सैकड़ों लोक कलाकारों के लगभग 4000 से अधिक गाने रिकॉर्ड तथा संगीतबद्ध किए हैं। इनमें से इन्होंने लगभग 1000 गानों का सृजन स्वयं तथा शिष्यों के साथ मिलकर किया है। इन्होंने हर रस तथा भाव से युक्त गीतों की रचना की है। उनकी बहुत सी ऐसी रचनाएं हैं जिन्हें आज के युवा कलाकार तोड़-मरोड़ कर गाकर भी ख़्याति अर्जित कर रहे हैं। इनकी महानता का परिचय इस बात से चलता है कि इनके शिष्यों को हिमाचल गौरव जैसे बड़े सम्मान से नवाज़ा जा चुका है। कुल्लू ज़िला के लोक गायक नरेंद्र ठाकुर साउंड ऑफ़ माउंटेंस स्टूडियो में एक कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे लेकिन स्टूडियो के माहौल ने उन्हें एक गायक बना दिया। नरेंद्र ठाकुर को हिमाचल सरकार ने हाल ही में हिमाचल गौरव से सम्मानित किया है। इसी तरह जाने-माने संगीतकार बालकृष्ण शर्मा भी इन्हीं के शिष्यों में से एक हैं। उन्हें भी हिमाचल गौरव से नवाज़ा जा चुका है। बालकृष्ण शर्मा इनसे शकरोहा स्टूडियो में संगीत की बारीकियां सीखने आया करते थे। वर्तमान समय के अधिकतर हिमाचली स्टार कलाकार एस.डी.कश्यप द्वारा तराशे गए फ़नकार हैं। नाटी किंग कुलदीप शर्मा, ठाकुर दास राठी, मोहन सिंह चौहान, विक्की चौहान, नरेन्द्र ठाकुर, बलबीर ठाकुर, किशन वर्मा, धीरज शर्मा, संजीव दीक्षित, धर्मेन्द्र शर्मा, इन्द्र जीत, रमेश ठाकुर, रविकांता कश्यप, मंजु चिश्ती, डॉ. महेंद्र राठौर, देवेन्द्र राठौर, शब्बीर तरन्नुम, नीरु चांदनी, दीपक जनदेवा, शुक्ला शर्मा, कली चौहान, कृष्णा ठाकुर, शारदा शर्मा आदि अनेक ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने कश्यप साहब की शरण में जाकर ख़्याति प्राप्त की है। तक़रीबन 2500 लोकप्रिय पहाड़ी लोक गीतों के गीतकार स्व.लायकराम रफ़ीक अक्सर साक्षात्कार में ये कहा करते थे कि, "मुझे रचनाकार बनाने में एस.डी. कश्यप का बड़ा हाथ रहा है। वे ही मुझे इस इंडस्ट्री में लेकर लेकर आए थे। मैं ठियोग से मंडी जाकर उन्हीं के स्टूडियो में अपने गाने रिकॉर्ड करवाया करता था।"

कश्यप साहब द्वारा जागाई गई लौ के फलस्वरुप हिमाचली संगीत के इतिहास में नए युग का आग़ाज़ हुआ। जनमानस में लोक संगीत का प्रचार-प्रसार बढ़ा। भूले-बिसरे पारंपरिक लोकगीत फिर से नए संगीत से सुसज्जित होकर मेलों-त्योहारों के अवसरों पर बजने लगे। अपनी सांस्कृतिक परंपरा को भूल चुके लोग फिर से लोक संस्कृति से जुड़ने लगे। लोक संगीत से युवा पीढ़ी भी जुड़ने लगी। शादी समारोह में फ़िल्मी धुनों की जगह पहाड़ी गाने बजने लगे। लोग रात-रात भर एक दूसरे का हाथ थाम कर सुबह तक नाटी डालने लगे। हिमाचली नाटी अन्य प्रदेशों तथा विदेशों में भी समझी जाने लगी। हिमाचल प्रदेश में भी म्यूजिक इंडस्ट्री का निर्माण हुआ। हज़ारों लोगों को रोज़गार मिला। हिमाचल के हर कोने में रिकॉर्डिंग स्टूडियो खुलने लगे। बड़े-बडे़ मेलों में पंजाबी और फ़िल्मी कलाकारों की जगह हिमाचली लोक गायकों को स्टार कलाकार के रूप में बुलाया जाने लगा। यह सफ़र यहीं पर नहीं थमा हिमाचली कलाकारों को अन्य राज्यों में भी बड़े-बड़े समारोह में बुलाया जाने लगा। इन्होंने अनेक कलाकारों को संगीत में प्रयोग की जाने वाली आधुनिक तक़नीक से परिचित करवाया। अनेक युवाओं को स्टूडियो रिकॉर्डिंग का ज्ञान दिया। हिमाचल प्रदेश में संगीत के प्रचार-प्रसार में इनका अविस्मरणीय योगदान रहा है।



उपलब्धियों से भरे 75 वर्ष पूर्ण कर चुके एस.डी. कश्यप आज भी अपने स्टूडियो में संगीत निर्देशन कार्य कर रहे हैं। ये अपने परिवार के साथ पनारसा गांव में ही रह रहे हैं। इनकी धर्मपत्नी रविकांता कश्यप हिमाचल की प्रसिद्ध लोक गायिका रहीं हैं। उनसे इनकी पहली मुलाक़ात बिलासपुर में हुई थी। उन दिनों वे काॅलेज में पढा़ई कर रहीं थीं। रविकांता के पिता महाविद्यालय में तबला सहायक होने के कारण घर में सांगीतिक माहौल था और वह भी संगीत सीखती थीं। दिल के तार तो मिले ही थे, पहली ही नज़र में सुर और ताल भी सम पर आ गए। कुछ समय बाद दोनों शादी के अटूट बंधन में बंध गए। इनके दो बच्चे हैं, बेटा सन्नी कश्यप और बेटी शिवांगी (शिवि आर. कश्यप)। इनके बेटे का बचपन से ही संगीत की तरफ़ झुकाव नहीं रहा परन्तु बेटी इनके नक़्श-ए-क़दम पर चल रही है। शिवांगी ने 2015 में केतन मैहता की फ़िल्म ''तेरे मेरे फ़ेरे'' में संगीत निर्देशन के साथ-साथ गाने भी गाए थे। इसके अलावा अमित साहनी की फ़िल्म लिस्ट, लव यू मिस्टर आदि फ़िल्मों में भी शिवांगी ने बतौर संगीत निर्देशक काम किया है। ''प्यार तूने क्यों किया'' सीरियल का टाइटल सांग "परिंदे का पैग़ाम शिवांगी ने अपनी आवाज़ में गाया है। घर में ही संगीत का माहौल होने की वजह से संगीत की शिक्षा शिवांगी को घर पर ही मिली। वह अपने पिता के स्टूडियो में रिकॉर्डिंग से लेकर संगीत निर्देशन और गायन के गुर सीखने के बाद मुंबई में संगीत निर्देशक के रूप में कार्य कर रहीं हैं।

सोमदेव कश्यप को हिमाचली लोक संगीत के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्यों के लिए हिमाचल भाषा कला संस्कृति अकादमी ने 2018 में मनोहर सिंह निष्पादन कला सम्मान से विभूषित किया। हालही में वर्ष 2021 में इन्हें 'देवभूमि कला शिखर सम्मान' तथा 2022 में संगीत कला के लिए 'प्रतिभा पुष्प फाउंडेशन अवार्ड' से सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त इन्हें 1995-96 में भुट्टिको कुल्लू द्वारा ' चांद कुल्लवी लालचंद प्रार्थी पहाड़ी कला संस्कृति-सभ्यता राष्ट्रीय पुरस्कार' से नवाज़ा गया। सूत्रधार कला संगम कुल्लू द्वारा हिमाचली संगीत में अविस्मरणीय योगदान के लिए 'अवार्ड ऑफ़ ऑनर',  रुपी सिराज कला मंच कुल्लू द्वारा 'राष्ट्रीय संगीत शिरोमणि पुरस्कार',  आशियां कला मंच कुल्लू द्वारा 'आशियां लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड', 2017 में संगीत सदन मंडी द्वारा सम्मान, भुट्टी बीवर्स कुल्लू द्वारा 2016-17 में 'चांद कुल्लवी लालचंद प्रार्थी पहाड़ी कला संस्कृति-सभ्यता राष्ट्रीय पुरस्कार', ठाकुर वेद राम जयंती समारोह सम्मान आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इन्हें विभिन्न सरकारी तथा ग़ैर-सरकारी संस्थाआें द्वारा अनेक सम्मान दिए गए लेकिन मलाल इस बात का है कि प्रदेश सरकार ने हिमाचली लोक संगीत को नई दिशा प्रदान करने वाले हिमाचल के महान सुपूत, महान कलाकार एस.डी. कश्यप का नाम अब तक उनके द्वारा किए गए कार्यों के अनुरूप किसी बड़े पुरस्कार के लिए नामांकित नहीं किया है। इनके द्वारा किए गए कार्यों के लिए हिमाचल सरकार को इन्हें यथाशीघ्र हिमाचल गौरव प्रदान किया जाना चाहिए और पद्मश्री के लिए इनका नाम अविलंब भेजा जाना चाहिए।

सरल, सौम्य स्वभाव के धनी एस.डी. कश्यप जनता के प्यार को ही सबसे बड़ा अवार्ड मानते हैं। उनका मानना है कि हमें नि:स्वार्थ भाव morning से लगातार मेहनत करनी चाहिए सफ़लता एक दिन हमारे क़दम अवश्य चूमती है। ये कहते हैं कि आधुनिक दौर में युवा कलाकारों पर आधुनिक टेक्नोलॉजी का बोलबाला स्पष्ट देखा जा सकता है। नए कलाकार इसका सहारा लेकर लोकगीत बना रहे हैं। आजकल की चकाचौंध में इन रचनाओं को दर्शक पसंद भी कर रहे हैं, लेकिन इससे लोकसंगीत के रुतबे को कहीं ना कहीं चोट पहुंच रही है। उनका मत है कि युवाओं को टेक्नोलॉजी के साथ रियाज़ पर भी ध्यान देना चाहिए और संगीत को गहराई में जाकर अनुभव करना चाहिए ताक़ि हम लोगों तक सुरीला, मनभावन और विशुद्ध संगीत पहुंचा सकें। 

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