पद्मश्री हरिमन शर्मा - एप्पल मैन ऑफ़ इंडिया
हिमाचल प्रदेश की समृद्ध प्राकृतिक धरा ने अनेकों कर्मठ व्यक्तित्वों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने अथक प्रयासों से प्रदेश और देश के लिए नई राहें प्रशस्त कीं। ऐसे ही एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं हरिमन शर्मा, जिनका जीवन संघर्ष, परिश्रम और नवाचार की अद्वितीय गाथा है।
एप्पल मैन के नाम से प्रसिद्ध हरिमन शर्मा का जन्म 4 अप्रैल 1956 को जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश के ग्राम गलासीं (डाकघर दाभला, तहसील घुमारवीं) में श्री दयाराम जी के घर हुआ। दुर्भाग्यवश, जन्म के मात्र तीन दिन बाद ही उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। इस शैशव अवस्था में मातृ-विहीन हो जाने के बाद, उनका पालन-पोषण ग्राम पनियाला (डाकघर कोठी, तहसील घुमारवीं) के श्री रिडकु राम ने अपने दत्तक पुत्र के रूप में किया। औपचारिक शिक्षा के रूप में इन्होंने मैट्रिक तक अध्ययन किया किंतु उनके हृदय में प्रारंभ से ही कृषि और बागवानी के प्रति गहरी रुचि थी। उन्होंने पारंपरिक खेती से अलग हटकर कुछ नया करने का संकल्प लिया और यही संकल्प आगे चलकर हिमाचल के बागवानी इतिहास में स्वर्णिम अध्याय बना। हरिमन ने अपने प्रयोगात्मक दृष्टिकोण और अथक परिश्रम के बल पर बिलासपुर जिले में सेब की खेती को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिखाया। यह अपने आप में एक अद्भुत उपलब्धि थी क्योंकि सेब की खेती को सामान्यतः केवल हिमाचल के ठंडे और ऊँचाई वाले इलाकों के लिए उपयुक्त माना जाता था।
किन्तु उन्होंने परंपरागत सोच को तोड़ते हुए यह सिद्ध कर दिया कि उपयुक्त देखभाल और तकनीकों का प्रयोग करके निचले तथा गर्म इलाकों में भी सेब की खेती संभव है। उनका यह नवाचार न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि थी, बल्कि हजारों बागवानों के लिए एक नई राह भी बनी।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपने खेतों में सेब, आम, अनार, लीची, खुमानी और कीवी जैसे विविध फलों की खेती एक ही स्थान पर करने का सफल प्रयोग किया। यह प्रयास कृषि और बागवानी में मिश्रित फसल प्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण बना, जिसने अन्य किसानों और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया। उनके प्रयासों और नवाचार से प्रभावित होकर हिमाचल प्रदेश के सात जिलों—कांगड़ा, हमीरपुर, ऊना, सोलन, मंडी, सिरमौर और चंबा—के बागवानों ने सेब की खेती को अपनाया। उनकी प्रेरणा से अब तक इन जिलों में एक लाख से अधिक सेब के पौधे लगाए जा चुके हैं, जो सफलतापूर्वक फल दे रहे हैं।
उनका यह योगदान न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि समूचे भारत के कृषि क्षेत्र के लिए प्रेरणास्रोत बन गया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि सही दृष्टिकोण, कठोर परिश्रम और नवीन प्रयोगों के माध्यम से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। श्री हरिमन शर्मा का जीवन संकल्प, संघर्ष और सफलता की प्रेरणादायक कहानी है। उनकी नवाचारशील सोच और अदम्य साहस ने हिमाचल प्रदेश की कृषि और बागवानी को एक नई दिशा दी। उन्होंने साबित किया कि यदि समर्पण और मेहनत हो तो कोई भी व्यक्ति असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकता है।
उनका जीवन केवल एक बागवान की कहानी नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी बदलाव की मिसाल है।
अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में सेब पर अनुसंधान का रास्ता हरिमन के जीवन के चुनौतीपूर्ण और रोमांचक अध्यायों में से एक था। उनकी खोजों ने न केवल भारतीय कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया में कृषि विज्ञान और कृषि उत्पादन के नए आयामों की ओर मार्गदर्शन किया। उनके अनुसंधान की दिशा मुख्य रूप से सेब की खेती के संबंध में थी, और उन्होंने इसे भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में संभव बनाने के लिए कई कठिनाईयों का सामना किया।
हरिमन शर्मा का सबसे बड़ा अनुसंधान एचआरएमएन-99 नामक सेब की किस्म से जुड़ा था। सामान्यतः सेब की खेती ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में होती है, लेकिन उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की कि क्या सेब को भारत के गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। यह विचार न केवल कठिन था, बल्कि कृषि विज्ञान के परंपरागत सिद्धांतों के खिलाफ भी था।
इसका कारण यह था कि सेब के पौधे को बढ़ने के लिए ठंडी जलवायु, ठंडी रातें और ठंडे दिन चाहिए होते हैं, जो अधिकांश भारतीय क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होते। हरिमन शर्मा ने अपनी कड़ी मेहनत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह सिद्ध कर दिखाया कि यदि सही तकनीकों और उपयुक्त कृषि पद्धतियों का पालन किया जाए तो सेब की खेती गर्म जलवायु में भी संभव है।
शर्मा ने लंबे समय तक विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से एचआरएमएन-99 किस्म को विकसित किया। इस किस्म में उच्च तापमान सहन करने की क्षमता थी, साथ ही यह सेब की पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक थी। उन्होंने विभिन्न प्रकार के मृदा, जलवायु और उर्वरकों के साथ प्रयोग किया ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि सेब की इस किस्म को हर मौसम और वातावरण में अच्छे से उगाया जा सके।
इसके अलावा, हरिमन शर्मा ने कृषि में जैविक पद्धतियों और पर्यावरणीय दृष्टिकोण को भी महत्वपूर्ण माना। उनका मानना था कि अगर खेती को पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ तरीके से किया जाए तो यह लंबे समय तक फायदेमंद हो सकता है। उन्होंने कृषि में रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए जैविक खाद और प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करना शुरू किया, जो न केवल उत्पादन को बढ़ावा देने में सहायक था, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर था।
हरिमन शर्मा के अनुसंधान ने न केवल भारतीय कृषि में एक नया मोड़ लाया, बल्कि उन्होंने यह भी दिखाया कि विज्ञान और नवाचार के माध्यम से किसी भी समस्या का समाधान संभव है। उनके अनुसंधान का प्रभाव आज भी भारतीय कृषि के क्षेत्र में देखा जा सकता है, और उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
वर्ष 2005 से पहले यह व्यापक धारणा थी कि सेब की खेती केवल बर्फीली पहाड़ियों और ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में ही संभव है। हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन मुख्य रूप से ऊँचाई वाले ठंडे इलाकों तक सीमित था, जहां का तापमान इसकी खेती के लिए अनुकूल माना जाता था। लेकिन श्री हरिमन शर्मा ने इस धारणा को पूरी तरह बदलकर रख दिया। उन्होंने निचले हिमाचल प्रदेश, जहां समुद्र तल से ऊँचाई मात्र 700 मीटर है और गर्मियों में तापमान 40 से 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, वहाँ सेब की सफल खेती कर दिखाया। यह एक ऐतिहासिक कृषि उपलब्धि थी, क्योंकि इसी क्षेत्र में आम और अनार जैसे फलों की खेती तो होती थी, लेकिन सेब उगाने की कल्पना भी किसी ने नहीं की थी।
सेब की खेती को निचले हिमाचल में विकसित करने के लिए, हिमाचल प्रदेश सरकार ने वर्ष 1965 में जिला सिरमौर के नाहन के पास "बागथन" में एक अनुसंधान केंद्र स्थापित किया था। इस केंद्र को समुद्र तल से मात्र 800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित किया गया था और इसे निचले हिमाचल में सेब उगाने की संभावनाओं की खोज के लिए करोड़ों रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी लेकिन लगभग दस वर्षों के गहन शोध और संसाधनों के निवेश के बावजूद, वैज्ञानिकों को कोई सफलता नहीं मिली और अंततः वर्ष 1975 में यह प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया। इसके विपरीत, बिना किसी सरकारी सहायता के हरिमन शर्मा ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों और नवाचारों के बल पर वह सफलता प्राप्त कर ली जिसे वैज्ञानिक संसाधनों के बावजूद सरकार नहीं हासिल कर सकी थी।
सेब के पौधे के लिए आदर्श जलवायु
भारत में सेब की खेती का एक समृद्ध इतिहास रहा है, लेकिन यह मुख्य रूप से हिमालयी राज्यों—हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड तक ही सीमित थी। यहाँ के ठंडे जलवायु, उच्च ऊँचाई (1500 से 2500 मीटर) और लंबे शीतकालीन मौसम के कारण सेब की फसल को प्राकृतिक अनुकूलता प्राप्त थी। सामान्यत: सेब के पौधों के लिए 15° सेल्सियस से 20°सेल्सियस के बीच का तापमान आदर्श माना जाता है, क्योंकि यह तापमान सेब के पौधों की वृद्धि, फूलने और फलने के लिए सबसे उपयुक्त होता है। सर्दियों में सेब के पौधों को एक विशेष प्रकार की ठंड की आवश्यकता होती है, जिसे "चिलिंग आवर्स" कहते हैं। यह वह समय होता है, जब तापमान 0°सेल्सियस से 7°सेल्सियस के बीच रहता है, और इस समय के दौरान सेब के पौधों को विशेष लाभ मिलता है। यह ठंडा वातावरण ही पौधों के फूलने की प्रक्रिया को शुरू करता है और फल का आकार बढ़ाता है।
इसके अलावा, सेब के पौधों को वर्षा की भी आवश्यकता होती है, लेकिन अत्यधिक वर्षा से बचाव की आवश्यकता होती है। सामान्यत: 600 से 1000 मिमी तक की वर्षा सेब के पौधों के लिए आदर्श होती है, क्योंकि यह पौधों को पर्याप्त नमी प्रदान करती है, जिससे उनका विकास होता है। हालांकि, अगर जलभराव हो जाता है, तो यह सेब के पौधों की जड़ों को सड़ने का कारण बन सकता है। इसलिए, इन क्षेत्रों में जल निकासी प्रणाली का होना बेहद महत्वपूर्ण है। नमी की अधिकता से रोगों का भी प्रकोप बढ़ सकता है, और इसलिए किसी भी प्रकार की नमी का नियंत्रण करना आवश्यक होता है।
इसके अतिरिक्त, मिट्टी का प्रकार भी सेब की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सेब के पौधों को हल्की, बलुआ या लोमीय मिट्टी की आवश्यकता होती है, जो अच्छी तरह से जल निकासी करने वाली हो। मिट्टी का पी.एच. स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए क्योंकि अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में पौधे का विकास ठीक से नहीं हो पाता। इसके साथ ही, मिट्टी में जैविक तत्वों की अच्छी मात्रा होनी चाहिए, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।
सूरज की रोशनी भी सेब के पौधों के लिए महत्वपूर्ण है। पौधों को प्रतिदिन 6 से 8 घंटे की सीधी सूरज की रोशनी की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में सहायक होता है, जो पौधों को ऊर्जा प्रदान करता है। यदि सूरज की रोशनी पर्याप्त नहीं होती, तो पौधे ठीक से विकसित नहीं हो पाते और फल भी उचित रूप से नहीं पकते। इसके अलावा, ठंडी हवाएँ सेब के लिए प्राकृतिक रूप से लाभकारी होती हैं, क्योंकि यह न केवल पौधों के स्वास्थ्य को बनाए रखती हैं, बल्कि विभिन्न कृषि रोगों से भी बचाती हैं। बर्फबारी भी सेब के लिए फायदेमंद होती है, क्योंकि यह मिट्टी की नमी बनाए रखती है और ठंडे घंटों की आवश्यकता को पूरा करती है।
सेब की खेती आमतौर पर हिमाचल प्रदेश और उत्तर भारत के उन ऊँचाई वाले क्षेत्रों तक सीमित थी जहां ठंडी जलवायु और बर्फबारी इसे उगाने के लिए उपयुक्त बनाती थी। लेकिन हरिमन शर्मा ने अपने प्रयोगों के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि गैर-पारंपरिक कृषि क्षेत्रों में भी सेब की खेती संभव है, बशर्ते सही तकनीकों और नवाचारों को अपनाया जाए। निचले हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यधिक कोहरा पड़ता है जो वहाँ की मुख्य फसलों जैसे आम, पपीता और आंवला के लिए हानिकारक साबित होता है। कोहरे के कारण इन फसलों के पौधे नष्ट हो जाते हैं और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है लेकिन सेब के पौधे की खास विशेषता यह है कि सर्दियों के मौसम में यह "सुप्तावस्था" में चला जाता है, जिसके कारण यह कोहरे को सहन करने की क्षमता रखता है। इस प्राकृतिक विशेषता का उपयोग करके हरिमन शर्मा ने निचले हिमाचल में सेब की खेती को सफल बनाया।
पारंपरिक रूप से सेब के पौधों को विकसित करने के लिए कलमी पौधों का प्रयोग किया जाता है लेकिन हरिमन ने अपने प्रयोगों में बीज से सेब का पौधा तैयार किया। पहले प्लम (आलूबुखारा) के पौधे पर ग्राफ्टिंग कर इसे सफल बनाया गया। इसके बाद सेब के पौधे पर ग्राफ्टिंग की गई, जिससे सेब की नई किस्म विकसित हुई। इस ग्राफ्टिंग तकनीक से विकसित सेब की गुणवत्ता, स्वाद और आकार पूरी तरह से पारंपरिक सेब के समान था। यह एक क्रांतिकारी खोज थी जिसने यह सिद्ध कर दिया कि निचले हिमाचल में भी सही तकनीक के प्रयोग से सेब की खेती संभव है।
बचपन में अनाथ हुए हरिमन शर्मा का जीवन संघर्षों और उपलब्धियों की अद्भुत गाथा है। हिमाचल प्रदेश के छोटे से गाँव पनियाला से लेकर राष्ट्रपति भवन के भव्य प्रांगण तक की उनकी यात्रा केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि छात्रों, शोधकर्ताओं और बागवानी विशेषज्ञों के लिए भी प्रेरणादायक है। तमाम कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की और खेती तथा फल विज्ञान (पौमोलॉजी) के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाया।
एचआरएमएन-99 (HRMN-99) सेब की शुरुआत वर्ष 1998 में हुई, जब उन्होंने अपने घर में खाए गए सेब के कुछ बीजों को आँगन में बो दिया। अगले वर्ष, उनमें से एक बीज अंकुरित हुआ और 2001 तक इस पौधे ने फल देना शुरू कर दिया, जबकि यह इलाका समुद्र तल से लगभग 700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ सेब की खेती असंभव मानी जाती थी। इस असाधारण घटना ने हरिमन शर्मा को सोचने पर मजबूर कर दिया, और उन्होंने इस पौधे की विशेष देखभाल शुरू कर दी। इसके बाद, उन्होंने कलम लगाने की विधि (ग्राफ्टिंग तकनीक) का उपयोग कर इस पौधे को और विकसित किया। अगले दस वर्षों तक उन्होंने विभिन्न कलम लगाने की विधियों और कलमी शाखा (साइऑन) तकनीकों के साथ प्रयोग किया और एचआरएमएन-99 को और बेहतर बनाया।
हालांकि, शुरुआती वर्षों में उनके इस नवाचार को वैज्ञानिक समुदाय में अधिक मान्यता नहीं मिली। लेकिन 2012 में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत कार्यरत राष्ट्रीय नवाचार प्रतिष्ठान (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन - एनआईएफ) ने इस खोज को पहचाना और इसकी वैज्ञानिक पुष्टि, आनुवंशिक परीक्षण, फल गुणवत्ता परीक्षण और देशभर में विभिन्न स्थानों पर परीक्षण को अंजाम दिया। इसके परिणामस्वरूप, एचआरएमएन-99 सेब की खेती ने एक राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया।
आज, एचआरएमएन-99 भारत के 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उगाई जा रही है, जिनमें बिहार, झारखंड, मणिपुर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, पंजाब, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। इतना ही नहीं, यह सेब अब राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में भी उगाया जा रहा है। सेब की इस किस्म की लोकप्रियता केवल भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश, जाम्बिया और जर्मनी जैसे देशों में भी है। अब तक इस किस्म के लगभग 14 लाख से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं। लगभग एक लाख से अधिक बागवान इसका उपयोग कर रहे हैं। एनआईएफ ने इस किस्म को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (पीपीवीएफआरए), नई दिल्ली में पंजीकृत कराने में भी सहायता प्रदान की।
हरिमन शर्मा के इस नवाचार को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। वर्ष 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने उन्हें राष्ट्रीय नवाचारी किसान पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय नवाचारी किसान पुरस्कार (2016), भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) फेलो पुरस्कार (2017), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा किसान वैज्ञानिक उपाधि (2017), राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार (2018), राष्ट्रीय कृषक सम्राट सम्मान (2018), जगजीवन राम कृषि अभिनव पुरस्कार (2019) तथा 2023 में मलेशिया में आयोजित आसियान-भारत जमीनी स्तर नवाचार मंच (एआईजीआईएफ) में भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। भारत सरकार ने 25 जनवरी को उन्हें पद्मश्री देने की घोषणा की, जो सम्पूर्ण हिमाचल को गौरवान्वित करने वाला क्षण था।
एचआरएमएन-99 सेब की विशेषताएँ इसे अन्य किस्मों से अलग बनाती हैं। इस सेब की धारीदार लाल-पीली त्वचा, नरम और रसदार गूदा, प्रति पेड़ सालाना 75 किलो तक उत्पादन, कम ऊँचाई और गर्म जलवायु में भी फलन इसकी सबसे बड़ी खूबियाँ हैं। इस किस्म ने किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि की है और कई राज्यों में बागवानी को एक नई दिशा दी है। राष्ट्रीय नवाचार प्रतिष्ठान (एनआईएफ) ने एचआरएमएन-99 के व्यावसायिक उपयोग को भी बढ़ावा दिया, जिसके तहत राज्य कृषि विभागों और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र समुदाय संसाधन प्रबंधन परियोजना के सहयोग से विभिन्न राज्यों में इसकी बागवानी को प्रोत्साहित किया गया।
हरिमन शर्मा की संघर्षमयी कहानी वास्तव में एक प्रेरणा का स्रोत है जो न केवल भारतीय कृषि जगत, बल्कि समग्र समाज के लिए एक प्रकाशस्तंभ की तरह है। उनका जीवन इस बात का जीवंत उदाहरण है कि जब हम अपने काम में निरंतरता, समर्पण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पालन करते हैं, तो सफलता निश्चित रूप से हमारे कदमों में होती है। उनका संघर्ष यह सिद्ध करता है कि किसी भी क्षेत्र में नवाचार और अनुसंधान की दिशा में किए गए प्रयासों से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
उन्होंने अपने क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए जो भी कदम उठाए, वे सभी वैज्ञानिक सोच और प्रयोगों पर आधारित थे। कृषि क्षेत्र में उनके नवाचारों ने न केवल फसल उत्पादन को बढ़ाया, बल्कि किसानों की जीवनशैली में भी सुधार किया। उनका यह विश्वास था कि जब तक हम किसी समस्या का वैज्ञानिक समाधान नहीं ढूंढ़ते, तब तक हम किसी भी क्षेत्र में असल सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।
उनका जीवन यह भी सिखाता है कि केवल व्यक्तिगत सफलता तक सीमित न रहकर, यदि हम अपने प्रयासों को समाज की भलाई के लिए समर्पित करते हैं, तो न केवल हमारी खुद की स्थिति बेहतर होती है, बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति भी सुनिश्चित होती है। उनके योगदान से यह सिद्ध हुआ कि किसी भी क्षेत्र में स्थायी और दूरगामी बदलाव लाने के लिए चाहिए तो एक दृढ़ विश्वास और एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण। हरिमन शर्मा की यह कहानी केवल एक व्यक्ति की सफलता नहीं, बल्कि भारतीय कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की मिसाल है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि दृढ़ निश्चय, परिश्रम और नवाचार के बल पर असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। उनकी उपलब्धियाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेंगी और उनका नाम भारतीय कृषि जगत के स्वर्णिम इतिहास में सदैव अंकित रहेगा।

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