खगोलीय, धार्मिक और सामाजिक संगम का पर्व—मकर संक्रांति - डॉ. राजेश चौहान (Dr. Rajesh K Chauhan )
खगोलीय, धार्मिक और सामाजिक संगम का पर्व—मकर संक्रांति
भारत में हर त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि वह सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी विशेष महत्व रखता है। इन त्योहारों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध पर्व है मकर संक्रांति। यह पर्व खगोलीय, धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं से समृद्ध है। मकर संक्रांति को भारत और नेपाल सहित दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में भिन्न-भिन्न नामों और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यह पर्व पौष माह में तब आता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं है बल्कि यह ऋतु परिवर्तन, फसल कटाई, और सूर्य देवता की पूजा का एक भव्य उत्सव है। इस दिन को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन करता है। यह दिन सकारात्मक ऊर्जा, प्रकाश, और समृद्धि का प्रतीक है। मकर संक्रांति का शाब्दिक अर्थ भी सूर्य का दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की यात्रा का उत्सव है। मकर संक्रांति पर सूर्य राशि परिवर्तन करके मकर राशि में प्रवेश करते हैं
मकर संक्रांति का मुख्य आधार खगोलीय घटनाएं हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण होना खगोलीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है। पृथ्वी के झुकाव और सूर्य की स्थिति के कारण मकर संक्रांति के बाद दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। यह खगोलीय घटना पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों की शुरुआत का संकेत देती है। यह दिन प्राकृतिक और पर्यावरणीय बदलावों का प्रतीक है। सूर्य का उत्तरायण होना ऊर्जा के नए चक्र की शुरुआत करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह समय नई फसलों की कटाई का भी संकेत देता है, जो कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में मकर संक्रांति का विशेष स्थान है। माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने उनके घर जाते हैं। शनि को न्याय का देवता माना जाता है और इस पर्व के माध्यम से सूर्य और शनि के बीच आपसी सामंजस्य का संदेश मिलता है। महाभारत में भी इस दिन का उल्लेख मिलता है। पितामह भीष्म ने अपनी मृत्यु के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था, क्योंकि इसे देवताओं का दिन माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन गंगा नदी कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में प्रवाहित हुई थीं। इसीलिए गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह त्योहार सदियों से किसानों के लिए फसल कटाई और कृषि की सफलता का प्रतीक रहा है। इस दिन किसान अपनी नई फसल को भगवान को समर्पित करते हैं और प्रकृति का आभार व्यक्त करते हैं। मकर संक्रांति सामाजिक सहयोग, आपसी भाईचारे, और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देता है। भारत जैसे विविधता भरे देश में मकर संक्रांति को विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। प्रत्येक राज्य में इसे मनाने का तरीका अलग है लेकिन इसका मूल उद्देश्य एक ही है-प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना।मकर संक्रांति को खिचड़ी के रूप में मनाये जाने के पीछे बहुत ही पौराणिक और शास्त्रीय मान्यताएं हैं। मकर संक्रांति के इस पर्व पर खिचड़ी का काफी महत्व है। मकर संक्रांति के अवसर पर कई स्थानों पर खिचड़ी को मुख्य पकवान के तौर पर बनाया जाता है।
उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में, मकर संक्रांति को 'खिचड़ी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। खिचड़ी को आयुर्वेद में सुंदर और सुपाच्य भोजन की संज्ञा दी गई है। साथ ही खिचड़ी को स्वास्थ्य के लिए औषधि माना गया है। प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के अनुसार जब जल नेती की क्रिया की जाती है तो उसके पश्चात् केवल खिचड़ी खाने की सलाह दी जाती है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने का बहुत ही महत्व माना गया है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति पर चावल, दाल, हल्दी, नमक और सब्जियों को मिलाकर खिचड़ी बनाई जाती है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी के सहायक व्यंजन के रूप में दही, पापड़, घी और अचार का मिश्रण भी किया जाता है। आयुर्वेद में चावल को चंद्रमा के रूप में माना जाता है। शास्त्रों में चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। काली उड़द की दाल को शनि का प्रतीक माना गया है। हल्दी बृहस्पति का प्रतीक है। नमक को शुक्र का प्रतीक माना गया है। हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं। खिचड़ी की गर्मी व्यक्ति को मंगल और सूर्य से जोड़ती है। इस प्रकार खिचड़ी खाने से सभी प्रमुख ग्रह मजबूत हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन नए अन्न की खिचड़ी खाने से शरीर पूरा साल आरोग्य रहता है। तिल और गुड़ के लड्डू, खिचड़ी और चटनी का सेवन और दान करना यहां की परंपरा है। यह दिन दान-पुण्य के लिए जाना जाता है।
तमिलनाडु में मकर संक्रांति को 'पोंगल' के नाम से मनाया जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला उत्सव है। पहले दिन भोगी पोंगल मनाया जाता है।इस दिन पुराने सामानों को जलाकर नए सिरे से जीवन की शुरुआत की जाती है। दूसरे दिन सूर्य पोंगल जिसमें, सूर्य देवता की पूजा और उन्हें अर्पण के लिए ताजे पकवान बनाए जाते हैं। तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है इस दिन गायों और बैलों की पूजा की जाती है क्योंकि वे कृषि के महत्वपूर्ण अंग हैं। चौथा दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बेटी और दामाद का विशेष स्वागत किया जाता है।
पंजाब और हरियाणा में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है। लोहड़ी की आग में तिल, गुड़ और मूंगफली डालकर समृद्धि और सुख-शांति की कामना की जाती है। माघी के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। गुजरात में मकर संक्रांति को 'उत्तरायण' कहा जाता है। यहां पतंगबाजी का विशेष महत्व है। पतंग उड़ाने का यह उत्सव सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है। इस दिन पतंगबाजी प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है और आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। असम में इसे 'भोगाली बिहू' के नाम से जाना जाता है। यह फसल कटाई के बाद का त्योहार है, जिसमें लोग सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं और पारंपरिक खेलों में भाग लेते हैं। राजस्थान में सुहागन महिलाएं मकर संक्रांति के दिन अपनी सास को 'वायना' देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस दिन चौदह प्रकार के व्यंजन बनाकर दान देने की परंपरा है।
मकर संक्रांति का प्रभाव भारत तक ही सीमित नहीं है। यह त्योहार नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, लाओस, और कंबोडिया में भी विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। नेपाल में इसे 'माघे संक्रांति' कहा जाता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान-पुण्य करते हैं। तिल, गुड़ और घी का सेवन यहां की परंपरा है। थारू समुदाय के लिए यह प्रमुख त्योहार है। थाईलैंड में इसे 'सोंगक्रान' के रूप में मनाया जाता है। म्यांमार में इसे 'थिंयान', और लाओस में 'पि मा लाओ' कहा जाता है। इन देशों में यह त्योहार नई शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक है।
मकर संक्रांति को दान और स्नान का पर्व कहा जाता है। गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर लोग अपने पापों का शुद्धिकरण करते हैं। इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी, घी, और कंबल का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। आधुनिक समय में भी मकर संक्रांति का महत्व कम नहीं हुआ है। यह पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है। यह सामाजिक समानता, भाईचारा, और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का संदेश देता है।
मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रतिबिंब है। यह खगोलीय, धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके विविध रूप और परंपराएं हमारे जीवन को ऊर्जा, सकारात्मकता, और समृद्धि से भर देती हैं। मकर संक्रांति का संदेश स्पष्ट है—प्रकृति के साथ सामंजस्य, दान का महत्व, और सामाजिक समरसता ही सच्ची खुशी और शांति का आधार है।

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