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देवभूमि की बेटियां आज कितनी सुरक्षित? - डॉ. राजेश चौहान ( Dr. Rajesh K Chauhan )

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देवभूमि की बेटियां आज कितनी सुरक्षित? देवभूमि हिमाचल, जहाँ शांति, सरलता, सौहार्द और मानवीय संवेदना का अनूठा संगम दिखाई देता था, आज उसी भूमि पर भय, असुरक्षा और स्त्री-विरोधी हिंसा की परछाइयाँ गहराने लगी हैं। वह भूमि जो कभी अपनी सांस्कृतिक गरिमा और महिलाओं के सम्मान की पहचान थी, अब बढ़ते अपराधों की त्रासद खबरों से कांप रही है। जिस पहाड़ी समाज में कभी बहन-बेटी-माँ की पवित्रता का उदाहरण दिया जाता था, वहाँ आज तेजाब हमले, हत्या, बलात्कार, घरेलू हिंसा, पीछा करना, अश्लील टिप्पणियाँ, मानसिक प्रताड़ना और विवाह-पूर्व या विवाह-बाद असहमति पर की जाने वाली क्रूर हिंसा जैसी घटनाएँ सामान्य समाचार बन चुकी हैं। हर सुबह जब हिमालय की चोटियों पर सूर्य सुनहरी रोशनी बिखेरता है तो उसके पीछे एक गंभीर प्रश्न छिपा होता है — क्या आज हमारी बेटियाँ, बहनें और माताएँ सुरक्षित हैं? क्या हमारे घर, जो कभी सुरक्षित आश्रय थे, अब भय और दर्द के केंद्र बन गए हैं? क्या हमारी सभ्यता के नींव स्त्री-सम्मान की परिभाषा खो रही है? हाल के वर्षों में हिमाचल में महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या लगातार बढ़ी है। पुलिस और न्यायालय में...

अनुकरणीय संगीत शिक्षिका एवं कुशल प्रशासक : रेखा शर्मा - डॉ. राजेश चौहान ( Dr. Rajesh K Chauhan )

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अनुकरणीय संगीत शिक्षिका एवं कुशल प्रशासक : रेखा शर्मा एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही एक उजला, मुस्कुराता हुआ चेहरा आँखों के समक्ष दृष्टिगोचर होता है। यह केवल एक शिक्षिका का नाम नहीं, एक बड़ी सोच का नाम है। ऐसी सोच, जो मानती है कि शिक्षा किताबों से आगे भी जाती है और संगीत केवल कला नहीं बल्कि चरित्र का निर्माण भी करता है। यह एक विचार है, एक पद्धति है, एक मूल्य-व्यवस्था है। यह उस भरोसे का नाम है जो कहता है कि शिक्षा केवल परीक्षा पास करवाने का काम नहीं, जीवन गढ़ने की कला भी है। संगीत केवल सुरों का खेल नहीं, वह अनुशासन, संवेदना और स्वभाव का प्रशिक्षण भी है। यहां बात अनुकरणीय संगीत शिक्षिका एवं कुशल प्रशासक रेखा शर्मा की बात हो रही है जिन्होंने यह सिद्ध करके दिखाया है कि जब किसी शिक्षिका के हाथ में सितार की मिज़राब होती है और माथे पर जिम्मेदारी की बिंदी, तब विद्यालय केवल भवन नहीं रहता—वह एक विरासत बन जाता है। वहाँ हर सुबह प्रार्थना के शब्दों में किसी राग का उजाला उतर आता है। वहाँ हर कक्षा के द्वार पर हवा बदल जाती है—वह सीखने की हवा बनती है, मन को हल्का करती है और आँखों में चमक जगाती है।  ...

वृद्धों के सम्मान से ही समाज की पहचान : डॉ. राजेश चौहान ( Dr. Rajesh K Chauhan )

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   वृद्धों के सम्मान से ही समाज की पहचान  समय का पहिया निरंतर गति में है। पीढ़ियाँ बदलती हैं, जीवन की गति बदलती है, सोच और प्राथमिकताएँ भी रूपांतरित होती जाती हैं। परंतु इन सबके बीच जो नहीं बदलना चाहिए, वह है — संबंधों का मर्म, सम्मान की अनुभूति और मानवीय संवेदना की गहराई । दुर्भाग्यवश आधुनिक समाज में यही सूत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है। आज के युग में एक अदृश्य दीवार बुजुर्गों और युवाओं के बीच खड़ी होती जा रही है जिसे हम “ जनरेशन गैप ” कहते हैं। यह केवल विचारों का नहीं बल्कि अनुभव और अपेक्षाओं का अंतराल भी है। पहले परिवार संयुक्त होते थे — एक ही छत के नीचे तीन-तीन पीढ़ियाँ। दादा-दादी, माता-पिता, बच्चे, सबके अपने-अपने दायित्व, परंतु आपसी निर्भरता की एक मिठास थी। दादी की कहानियाँ बच्चों के लिए शिक्षा का माध्यम थीं और पिता के अनुभव बेटे के लिए मार्गदर्शन। लेकिन आज जब जीवन की गति मशीनों के समान तेज़ हो चुकी है, जब रिश्तों की भाषा “ऑनलाइन कॉल” और “इमोजी” तक सीमित हो गई है तब यह आत्मीयता जैसे पीछे छूटती जा रही है। शहरों की दौड़, रोज़गार की अनिवार्यता और व्यक्तिगत आकांक...

हिमाचल के महान संगीतज्ञ पद्मश्री पंडित सोमदत्त बट्टू : डॉ राजेश चौहान

 पंडित सोमदत्त बट्टू  भारतीय संगीत की परंपरा केवल रागों, स्वरों या तालों की सीमित परिधि नहीं है, यह आत्मा का वह अनंत संवाद है जो मनुष्य को उसके ईश्वर से जोड़ता है। इस दिव्य परंपरा में अनेक ऐसे साधक हुए जिन्होंने संगीत को केवल पेशा नहीं बल्कि साधना माना। हिमाचल प्रदेश की सुरम्य घाटियों से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक, भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपने अद्वितीय स्वर से गौरवान्वित करने वाले ऐसे ही एक महान गायक, आचार्य और साधक हैं — पंडित सोमदत्त बट्टू। उनका जीवन एक जीवंत उदाहरण है कि किस प्रकार समर्पण, अनुशासन और साधना से कोई व्यक्ति केवल कलाकार नहीं बल्कि एक संस्था बन जाता है। पंडित सोमदत्त बट्टू का जन्म 5 जुलाई 1937 (आधिकारिक जन्मतिथि : 11 अप्रैल 1938) को  हिमाचल प्रदेश के ज़िला कांगड़ा की तहसील नूरपुर के जसूर नामक गाँव में हुआ। यह वही क्षेत्र है जहाँ की मिट्टी में कला और संस्कृति की खुशबू गहराई तक बसी है। उनके पूज्य पिता श्री रामलाल बट्टू स्वयं एक उत्कृष्ट संगीतज्ञ थे और माता श्रीमती चानन देवी धार्मिक एवं संस्कारवान गृहिणी थीं। परिवार में संगीत का वातावरण जन्म से ही था। घर ...