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मैं मजदूर हूँ... Mein Mazdoor hoon | Dr.Rajesh Chauhan

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मैं मज़दूर हूँ..... डॉ.राजेश के चौहान मैं मज़दूर हूं, मैं मजबूर हूँ। मैं मज़दूर हूँ, मैं मजबूर हूँ ।। वक़्त ने है रुलाया मुझको, अपनों ने भी सताया है-२ उम्र भर की ख़ूब मेहनत, फिर भी कुछ ना पाया है।। मैं मज़दूर हूं... जितने मुझ पर कर सितम तू, मैं तो चलता जाऊंगा-२ सदियों से पिसता रहा हूं, आज भी मुस्काऊँगा।। मैं मज़दूर हूं... मंदिर, मस्ज़िद, गुरु का द्वारा, नीव मैंने डाली है-२ सबकी झोली भर दी उसने, मेरी फिर भी ख़ाली है।। मैं मज़दूर हूं... पेट भूखा उसमें बच्चा, दूर तक चलती रही। बाद प्रसव के भी तो मैं बस, मीलों ही चलती रही।। मैं मज़दूर हूं... https://youtu.be/CO88PKTMY1Q https://www.facebook.com/a4applenews/videos/694022141141268/ Dr. Rajesh K Chauhan डॉ.राजेश कुमार चौहान (१० दिसंबर १९८४) एक भारतीय लेखक, गायक, रचनाकार और गीतकार हैं। एक परिपक्व फीचर लेखक के रूप में इनकी अलग पहचान है। इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक "संगीताभिलाषी" अमेज़न पर सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक है। अनेक शोध-पत्र,आलेख और कवर स्टोरी लिख चुके डॉ.राजेश कई गीतों के रचनाकार भी हैं। वतन पे म...

मैं मज़दूर हूँ, बेहद मजबूर हूँ

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मैं मज़दूर हूँ, बेहद मजबूर हूँ ... -डॉ. राजेश के. चौहान मैं मज़दूर हूँ, बेहद मजबूर हूँ। ये बात आज के परिप्रेक्ष्य में सोलह आना सत्य प्रतीत होती है। कोरोना के कारण उत्पन्न स्थिति में इस देश में सबसे दयनीय स्थिति मज़दूरों की ही बनी हुई है। अपने परिजनों से मीलों दूर लाखों श्रमिक दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। दावे कुछ भी किए जा रहे हों लेकिन वास्तविकता किसी से छिपी नहीं है। 'राष्ट्र निर्माता' शब्द से अलंकृत श्रमिक वर्ग चहुंओर उपेक्षा का ही पात्र बनता दृष्टिगोचर है। उद्योग-धंधे बंद होने के कारण फैक्टरी मालिकों ने जहां अपना पल्ला झाड़ लिया है, वहीं प्रशासन भी इनके लिए ज़्यादा कुछ करने में असफल ही रहा। परिवहन की व्यवस्था न होने के कारण हजारों-लाखों श्रमिक पैदल ही सैकड़ों/हज़ारों किलोमीटर दूर अपने गांव की ओर पलायन करते दिखे। मीलों दूर अपने गांव की यात्रा कई अभागों की अंतिम यात्रा भी बनी। बावजूद इसके भी मजबूरियों का दौर थमता नज़र नहीं आ रहा है। प्रसव पीड़ा के चलते सैंकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा, बच्चे को जन्म देना और फिर से लम्बी यात्रा पर तपती गर्मी में ठोकरें खाने के लिए निकल ज...

थैय्यम : एक कलात्मक परंपरा - Dr.Rajesh K Chauhan ( Thyyam - An artistic tradition )

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 थैय्यम : एक कलात्मक परंपरा    - डॉ.राजेश के चौहान "गॉड्स ओन कंट्री" ध्येय वाक्य से प्रसिद्ध केरल दक्षिणात्य  राज्यों में सांस्कृतिक विविधता एवं प्राकृतिक सुंदरता के मामले में अत्यधिक समृद्ध राज्य है। यहां के लोग विरासत में मिली परंपरागत  लोक तथा शास्त्रीय शैलियों को भविष्य के लिए संजोकर रखने में विश्वास रखते हैं। भौगोलिक आधार पर केरल एक छोटा सा प्रदेश है, फिर भी यहां सात शास्त्रीय तथा लगभग पचास से अधिक लोक नृत्यों का अभ्युदय हुआ है। यहां पर परिलक्षित शास्त्रीय एवं लोक नृत्य पूर्ण रूप से विकसित हैं और वहां के स्थानीय लोगों के स्वभाव को संगीत और वेशभूषा के साथ दिखाते हैं। इन नृत्यों को लोगों के जीवन जीने के हिसाब से और लोगों के नृत्य करने के अनुसार ढाला गया है। यहां पर प्रचलित नृत्य अत्यंत मनमोहक व प्राचीन हिंदू ग्रंथों के सिद्धांतों, तकनीकों एवं कला संबद्धता पर पूर्ण या आंशिक रूप से आधारित हैं। इससे यह बात प्रमाणित हो जाती है कि यहां के निवासी कितने कला प्रेमी व प्रायोगिक विचारधारा के हैं। यहां का प्राकृतिक व सांस्कृतिक सौंदर्य दर्शनीय है...