सोमवार, 16 सितंबर 2024

अंतर्राष्ट्रीय संवाद में हिंदी का बढ़ता महत्व - डॉ. राजेश चौहान ( Dr. Rajesh K Chauhan )

 अंतर्राष्ट्रीय संवाद में हिंदी का बढ़ता महत्व


21वीं सदी में वैश्वीकरण और संचार के साधनों की प्रगति के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषाओं का महत्व बढ़ गया है। हिंदी, जो भारत की सबसे प्रमुख भाषाओं में से एक है, अब केवल राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं है। यह भाषा वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण संवाद माध्यम बनती जा रही है, खासकर उन देशों में जहां भारतीय समुदाय का निवास है। हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता न केवल सांस्कृतिक, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। हिंदी वर्तमान में विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। 2024 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 650 मिलियन लोग हिंदी बोलते हैं। भारत में हिंदी प्रमुख भाषा है, लेकिन नेपाल, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी हिंदी बोलने वाले लोग मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त, अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, और खाड़ी देशों में प्रवासी भारतीय समुदाय के कारण हिंदी का प्रसार तेजी से हो रहा है।


संयुक्त राष्ट्र महासभा जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं। भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने के प्रयास कर रहा है, ताकि वैश्विक स्तर पर हिंदी की प्रतिष्ठा और प्रभाव को बढ़ाया जा सके। हालांकि, हिंदी अभी तक संयुक्त राष्ट्र की छह आधिकारिक भाषाओं (अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पैनिश, चीनी, रूसी और अरबी) में शामिल नहीं हो पाई है, लेकिन इसके लिए भारत ने निरंतर रूप से समर्थन जुटाने का प्रयास किया है।  हिंदी के प्रति समर्थन में एक ऐतिहासिक मोड़ 1977 में तब आया, जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया। यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय नेता ने इस वैश्विक मंच पर हिंदी का उपयोग किया। वाजपेयी का यह भाषण न केवल भारत की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने का प्रतीक था, बल्कि इसने हिंदी को एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता दिलाने की दिशा में एक मजबूत कदम भी रखा। इस भाषण को ऐतिहासिक माना जाता है क्योंकि यह हिंदी के वैश्विक महत्व को स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ।



भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए विभिन्न कूटनीतिक प्रयास किए हैं। इस दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कई बार हिंदी में भाषण देकर हिंदी की वैश्विक उपस्थिति को मजबूती दी है। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा दिए गए हिंदी भाषण ने भी वैश्विक मीडिया और अन्य देशों का ध्यान हिंदी की ओर आकर्षित किया। इसके अतिरिक्त, भारतीय प्रतिनिधिमंडल के अन्य सदस्यों ने भी संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी में भाषण देकर हिंदी के अंतरराष्ट्रीय महत्व को उजागर किया है। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने की राह में कुछ चुनौतियाँ भी हैं। मुख्यतः, संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनने के लिए सदस्य देशों से व्यापक समर्थन की आवश्यकता होती है, और इसके लिए भारी वित्तीय संसाधनों की भी ज़रूरत होती है। भाषाई अनुवाद और संसाधन प्रबंधन के लिए एक बड़ा खर्च उठाना पड़ता है, जो कि एक प्रमुख अवरोध है। फिर भी, भारत अपने कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से हिंदी को वैश्विक स्तर पर अधिक व्यापक रूप से मान्यता दिलाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।


अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है, और भारत द्वारा आयोजित कई महत्वपूर्ण सम्मेलनों और कार्यक्रमों में हिंदी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। इन आयोजनों के माध्यम से हिंदी को वैश्विक स्तर पर एक सशक्त और प्रभावी भाषा के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इन पहलों ने न केवल हिंदी की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती दी है, बल्कि इसे एक अंतरराष्ट्रीय संवाद की भाषा के रूप में भी उभारा है। विदेश में भारतीय प्रवासियों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रवासी भारतीय दिवस एक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय आयोजन है। इस कार्यक्रम का आयोजन हर साल 9 जनवरी को किया जाता है, जो महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने की तिथि का प्रतीक है। इस अवसर पर हिंदी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से भारत के सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को प्रवासी भारतीयों तक पहुँचाने के लिए। प्रवासी भारतीय दिवस में हिंदी भाषी प्रवासियों की भागीदारी से हिंदी की वैश्विक स्थिति को बल मिलता है। यह आयोजन हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि प्रवासी भारतीय कई देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में सहायक होते हैं।


विश्व हिंदी सम्मेलन के माध्यम से भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा का दायरा बड़ा है। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 1975 में नागपुर, भारत में हुआ था, और तब से यह सम्मेलन विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय शहरों में आयोजित किया जाता रहा है, जैसे कि लंदन, मॉरीशस, न्यूयॉर्क, और फिजी। इन सम्मेलनों में हिंदी विद्वान, लेखक, और साहित्यकार दुनिया भर से जुटते हैं और हिंदी के वैश्विक प्रचार-प्रसार पर विचार-विमर्श करते हैं। यह आयोजन हिंदी के अंतर्राष्ट्रीयकरण को प्रोत्साहित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है और इसके माध्यम से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिंदी की उपयोगिता को बढ़ाया जा रहा है। इन सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को एक वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने के प्रयास निरंतर चल रहे हैं। भारत द्वारा आयोजित कई सांस्कृतिक और कूटनीतिक कार्यक्रमों में भी हिंदी का व्यापक उपयोग होता है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिंदी को प्रमुखता से प्रस्तुत किया जाता है। इन कार्यक्रमों में भारतीय नृत्य, संगीत, और साहित्य को विश्व स्तर पर प्रदर्शित किया जाता है, जिसमें हिंदी का विशेष स्थान होता है। इसके अलावा, भारत के स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय समारोहों के दौरान भी विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास हिंदी का उपयोग करते हैं। इस प्रकार के आयोजन हिंदी को न केवल प्रवासी भारतीयों के बीच बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच भी लोकप्रिय बना रहे हैं।


हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता ने भी हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कांस फिल्म फेस्टिवल और टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में हिंदी सिनेमा का प्रदर्शन होता है। बॉलीवुड फिल्मों की वैश्विक लोकप्रियता ने हिंदी को एक सांस्कृतिक भाषा के रूप में स्थापित किया है। इन फिल्मों के जरिए न केवल भारत की संस्कृति और समाज का प्रदर्शन होता है, बल्कि हिंदी भाषा की वैश्विक पहचान भी सुदृढ़ होती है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हिंदी का प्रचार केवल सम्मेलनों और आयोजनों तक ही सीमित नहीं है। कई विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जाता है। अमेरिका, यूरोप, और एशिया के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षण के लिए विशेष विभाग और केंद्र स्थापित किए गए हैं। इसका उद्देश्य हिंदी भाषा और साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के बीच लोकप्रिय बनाना है। इसके अलावा, फुलब्राइट और जर्मन शैक्षिक विनिमय सेवा जैसी अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक विनिमय योजनाओं में भी हिंदी भाषा के अध्ययन और अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलता है।  


भारत के राजनयिक मिशन और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी हिंदी का महत्व बढ़ता जा रहा है। विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों में हिंदी के माध्यम से संवाद किया जाता है, खासकर प्रवासी भारतीयों के साथ। इससे न केवल प्रवासी समुदाय के साथ संवाद में आसानी होती है, बल्कि हिंदी की वैश्विक छवि भी सुदृढ़ होती है। डिजिटल युग में हिंदी ने सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, और इंस्टाग्राम जैसे वैश्विक मंचों पर हिंदी कंटेंट की मांग तेजी से बढ़ी है। इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि और स्मार्टफोन की पहुंच ने हिंदी को वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख भाषा के रूप में स्थापित किया है। गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी प्रमुख टेक्नोलॉजी कंपनियाँ हिंदी को अपने उत्पादों और सेवाओं में प्रमुखता से शामिल कर रही हैं, जिससे हिंदी भाषी उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है

 अंतर्राष्ट्रीय मीडिया चैनल जैसे बीबीसी हिंदी, सीएनएन हिंदी, और अल जज़ीरा हिंदी ने हिंदी भाषी दर्शकों तक पहुँचने के लिए हिंदी में अपनी सेवाएँ शुरू की हैं। यह हिंदी की वैश्विक मांग और उसके उपयोग की क्षमता को दर्शाता है। इसके साथ ही, बॉलीवुड फिल्मों की अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता ने भी हिंदी को विश्व स्तर पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बॉलीवुड फिल्मों के अनुवाद और उपशीर्षक कई विदेशी भाषाओं में होते हैं, जिससे हिंदी फिल्मों की पहुँच वैश्विक दर्शकों तक होती है।


भारत वैश्विक व्यापार का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है, और हिंदी का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक समझौतों और संवाद में बढ़ता जा रहा है। भारत में व्यापार करने वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अब हिंदी में भी अपने उत्पादों का विपणन और प्रचार कर रही हैं। मैकडॉनल्ड्स, कोका-कोला, और अमेज़न जैसी कंपनियों ने भारतीय बाजार में हिंदी का व्यापक उपयोग किया है, ताकि वे स्थानीय ग्राहकों तक आसानी से पहुँच सकें। इसके साथ ही, भारतीय उद्यमी और उद्योगपति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी का उपयोग अपने व्यापारिक संबंधों में कर रहे हैं। भारत में पर्यटन उद्योग के विकास के साथ, विदेशी पर्यटकों के लिए हिंदी सीखने की रुचि भी बढ़ी है। भारतीय संस्कृति और भाषाओं के प्रति आकर्षण रखने वाले पर्यटक हिंदी को सीखने और समझने का प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही, हिंदी बोलने वाले गाइड और पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग भी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए हिंदी का उपयोग कर रहे हैं।


दुनियाभर के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी को एक विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाया जा रहा है। अमेरिका, यूरोप, और एशिया के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हिंदी पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। इससे हिंदी भाषा और साहित्य के अध्ययन को प्रोत्साहन मिल रहा है। विदेशी छात्रों की हिंदी के प्रति रुचि दर्शाती है कि भाषा केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुल भी है। अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक मंचों पर भी हिंदी साहित्य को पहचान मिल रही है। हिंदी साहित्य का कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, जिससे हिंदी साहित्यकारों को वैश्विक मंच पर पहचान मिल रही है। मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, और हरिवंश राय बच्चन जैसे लेखकों के कार्यों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हुआ है।


अंतर्राष्ट्रीय संवाद में हिंदी का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है। यह भाषा अब न केवल भारत की, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रमुख संवाद माध्यम बन चुकी है। व्यापार, शिक्षा, मीडिया, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के क्षेत्रों में हिंदी का योगदान महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही, भारतीय समुदाय की वैश्विक उपस्थिति और भारतीय संस्कृति की वैश्विक लोकप्रियता ने हिंदी को एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित किया है। हिंदी का यह विकास आने वाले समय में और भी विस्तृत और गहरा होगा, जो इसे वैश्विक संवाद का एक प्रमुख माध्यम बनाएगा।

रविवार, 8 सितंबर 2024

साक्षरता: सशक्त समाज की परिकल्पना - Dr. Rajesh K Chauhan

 साक्षरता: सशक्त समाज की परिकल्पना


साक्षरता किसी भी समाज के विकास की आधारशिला होती है। यह व्यक्ति को न केवल पढ़ने और लिखने की क्षमता प्रदान करती है, बल्कि उसे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाती है। एक साक्षर व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होता है, और यह बदलाव केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक स्तर पर महसूस किया जाता है।  अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हर वर्ष 8 सितंबर को विश्वभर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में साक्षरता के महत्व को उजागर करना और निरक्षरता को समाप्त करने की दिशा में जागरूकता फैलाना है। इस दिन को मनाने का आरंभ 1966 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा किया गया था। यह दिन न केवल शैक्षिक अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाता है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि दुनिया के बहुत से लोगों के लिए शिक्षा अभी भी एक अधूरी सपना है।


साक्षरता एक व्यक्ति के जीवन में मील का पत्थर साबित होती है। यह न केवल पढ़ने और लिखने की क्षमता को दर्शाती है, बल्कि व्यक्ति की सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को भी विकसित करती है। साक्षर व्यक्ति न केवल खुद को जागरूक करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सक्षम होता है। यह सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। एक साक्षर समाज ही अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत होता है और समाज के समग्र विकास में योगदान देता है।


हालांकि, वैश्विक स्तर पर साक्षरता दर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, फिर भी कई देशों में निरक्षरता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में, विशेष रूप से महिलाएं और बालिकाएं, शिक्षा से वंचित हैं। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार, आज भी लगभग 773 मिलियन वयस्क विश्व में साक्षर नहीं हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। यह असमानता सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को भी बढ़ाती है।



भारत में स्वतंत्रता के बाद से साक्षरता दर में लगातार वृद्धि देखी गई है। 1951 में भारत की साक्षरता दर केवल 18.3% थी, जो 2021 में बढ़कर 77.7% हो गई। हालांकि यह सुधार सराहनीय है, लेकिन भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या अत्यधिक है, अब भी लगभग 20% लोग निरक्षर हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, महिलाओं और बालिकाओं की साक्षरता दर अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। भारत में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए समय-समय पर अनेक योजनाएं चलाई हैं।


राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की शुरुआत 1988 में की गई थी। इसका उद्देश्य 15 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के निरक्षरों को साक्षर बनाना था। इस मिशन के तहत बड़े पैमाने पर वयस्क शिक्षा कार्यक्रम चलाए गए। 'संपूर्ण साक्षरता अभियान'  इस मिशन का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में साक्षरता दर में सुधार करना था। इस मिशन ने देशभर में साक्षरता के प्रति जागरूकता बढ़ाई और निरक्षरों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


 2001 में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई थी, जिसका उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा प्रदान करना था। यह एक समग्र प्रयास था, जिसके तहत स्कूलों का निर्माण, शिक्षकों की भर्ती, पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता, और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित की गई। इसके अंतर्गत विशेष रूप से बालिकाओं और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों पर ध्यान केंद्रित किया गया ताकि वे भी शिक्षा से वंचित न रहें। 


वर्ष 1995 में मिड-डे मील योजना में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य स्कूल जाने वाले बच्चों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराना था। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करना और उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना था। इस योजना ने साक्षरता दर में सुधार के साथ-साथ बच्चों के स्वास्थ्य और उपस्थिति दर को भी बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की शुरुआत की गई। इस अभियान का उद्देश्य माध्यमिक शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाना था। यह अभियान न केवल उच्च शिक्षा की दिशा में प्रगति को सुनिश्चित करता है, बल्कि इसमें गुणवत्ता में सुधार, स्कूलों का उन्नयन, और छात्र-शिक्षक अनुपात को सुधारने पर भी ध्यान दिया गया।


बालिकाओं को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से 2015 में  'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की गई। इस अभियान का उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा पर जोर देना और उन्हें सशक्त बनाना है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में कार्य करता है जहां लैंगिक असमानता और बालिका शिक्षा की स्थिति अत्यधिक खराब है। इस अभियान ने बालिकाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उनकी शिक्षा पर जोर दिया है।


2014 में पढ़े "भारत, बढ़े भारत" अभियान प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों की भाषा और गणितीय कौशल में सुधार लाने के लिए शुरू किया गया। इसका उद्देश्य छात्रों को बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान में मजबूत बनाना था ताकि वे आगे की कक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।


2015 में "प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना" की शुरुआत की गई। इस योजना का उद्देश्य केवल साक्षरता ही नहीं, बल्कि युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना भी है। इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को रोजगार योग्य बनाना और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना है। इस योजना के तहत विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनसे युवा रोजगार के लिए तैयार होते हैं।


भारत में साक्षरता दर में पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन ग्रामीण इलाकों में, खासकर महिलाओं और बालिकाओं की साक्षरता दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है। सरकारी योजनाओं और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से न केवल बालिकाओं की शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है, बल्कि वयस्क शिक्षा के लिए भी जागरूकता फैलाई जा रही है फिर भी इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी है।


हालांकि साक्षरता के प्रति जागरूकता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। आर्थिक असमानता, लैंगिक भेदभाव, सांस्कृतिक बाधाएँ और अशिक्षा की ओर अनिच्छा जैसी समस्याएँ साक्षरता के प्रयासों में रोड़े अटका रही हैं। इसके अलावा, गरीबी और बाल श्रम भी बच्चों को स्कूल से दूर रखने वाले प्रमुख कारणों में से एक हैं। कोविड-19 महामारी ने भी शिक्षा के क्षेत्र में भारी बाधाएं उत्पन्न की हैं, जिससे स्कूल बंद होने और डिजिटल असमानता के कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है।


साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए सरकारों और समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा। शिक्षा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, शैक्षिक संस्थानों को अधिक समावेशी और लचीला बनाया जाना चाहिए। डिजिटल शिक्षा को भी प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चे भी शिक्षा से वंचित न रहें।  

इसके अलावा, वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे कि उन लोगों को भी साक्षर बनाया जा सके जो प्रारंभिक शिक्षा से वंचित रह गए थे। शिक्षा न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि पूरे समाज और देश के विकास के लिए आवश्यक है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है कि शिक्षा का लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचे।


अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि साक्षरता केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विकास का आधार है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा और साक्षरता का प्रकाश हर उस कोने तक पहुंचे जहां अब भी अंधकार है। यह दिवस एक अवसर है कि हम अपने प्रयासों को पुनः जागृत करें और निरक्षरता के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका निभाएं। साक्षरता ही वह कड़ी है जो व्यक्ति को न केवल व्यक्तिगत विकास, बल्कि सामाजिक परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रेरित करती है। साक्षरता का विस्तार समाज की नींव को मजबूत करता है, और एक साक्षर विश्व ही सशक्त विश्व की दिशा में बढ़ सकता है।

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

गुरु वंदन - हमारी सांस्कृतिक धरोहर : Dr.Rajesh K Chauhan

 अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । 

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

गुरुओं का सम्मान करना भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। भारत में गुरु-शिष्य परंपरा की जड़ें अत्यंत गहरी हैं, और यह परंपरा सदियों से हमारे जीवन और समाज का अभिन्न हिस्सा रही है। गुरु, केवल शिक्षा का माध्यम नहीं होते, बल्कि वे शिष्य के जीवन को संवारने, उसके आचरण को मार्गदर्शन देने और उसे नैतिक मूल्यों से परिचित कराने वाले होते हैं। 



शिक्षक केवल वही नहीं होता जो कक्षा में पाठ्यक्रम की सामग्री पढ़ाए, बल्कि वह भी होता है जो हमें जीवन के विभिन्न अनुभवों से सीखने में मदद करता है। हमारे जीवन में हर कोई जो हमें कुछ सिखाता है, चाहे वह व्यक्ति हमारे माता-पिता हों, हमारे दोस्त हों, या कोई अपरिचित व्यक्ति हो जिसने हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाया हो, सभी हमारे गुरु ही होते हैं। 

 गुरु वह है जो हमें जीवन की सच्चाईयों से अवगत कराता है, हमें सही और गलत का अंतर समझाता है, और हमारी सोच को एक सही दिशा देता है। उन्होंने हमें न केवल शैक्षिक ज्ञान दिया बल्कि नैतिकता, अनुशासन, और जीवन के अन्य पहलुओं का भी बोध कराया। इसलिए गुरु का सम्मान करना न केवल एक आदरभाव है, बल्कि एक आवश्यक संस्कार भी है।



भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति में गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व रहा है। प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली के अंतर्गत शिष्य अपने गुरु के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। यह शिक्षा केवल शास्त्रार्थ तक सीमित नहीं थी, बल्कि जीवन जीने की कला, नैतिकता, और समाज सेवा के गुणों का भी विकास करती थी। शिष्य अपने गुरु के प्रति अपार श्रद्धा और समर्पण की भावना रखते थे और गुरु भी शिष्य को अपने पुत्र की तरह मार्गदर्शन देते थे।


ऋषि-मुनियों के गुरुकुलों से लेकर आधुनिक शिक्षा संस्थानों तक, इस परंपरा ने सदैव शिक्षक और शिष्य के बीच एक मजबूत संबंध को बनाए रखा है। गुरु, जो ज्ञान का प्रतीक होता है, उसे भारतीय परंपरा में ईश्वर तुल्य माना गया है। यह भाव संस्कृत के श्लोक “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥” से प्रकट होता है, जिसमें गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में देखा गया है।


गुरु के प्रति सम्मान के विभिन्न रूप भारतीय समाज में देखे जाते हैं। हर वर्ष "गुरु पूर्णिमा" का पर्व, विशेष रूप से गुरु को समर्पित होता है, जिसमें शिष्य अपने गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह परंपरा एक प्रकार से यह संकेत देती है कि गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव है, और शिष्य का कर्तव्य है कि वह अपने गुरु के प्रति आदर बनाए रखे।



साहित्य और धर्मग्रंथों में भी गुरु का महत्व प्रमुखता से दर्शाया गया है। महाभारत, रामायण, और अन्य भारतीय ग्रंथों में गुरु का सम्मान और उनकी भूमिका को उच्च स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए, महाभारत में द्रोणाचार्य और अर्जुन के संबंध को गुरु-शिष्य परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। इसी प्रकार रामायण में राम और वशिष्ठ के बीच गुरु-शिष्य संबंध को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है।


आज के समय में शिक्षा का स्वरूप बदल चुका है, लेकिन गुरु का महत्व अभी भी अपरिवर्तित है। हालांकि आज छात्र ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और स्वाध्याय के माध्यम से भी शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, परंतु गुरु का मार्गदर्शन आज भी अत्यंत आवश्यक है। शिक्षक आज भी शिष्य के मानसिक और नैतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक ही होते हैं जो शिष्य को उसकी कमजोरियों से अवगत कराते हैं और उसे समाज में एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार करते हैं।


गुरुओं का सम्मान करना हमारी भारतीय परंपरा और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल शिक्षकों के प्रति आभार प्रकट करने का माध्यम है, बल्कि उनके मार्गदर्शन के प्रति श्रद्धा और आदर का प्रतीक भी है। चाहे पुरातन गुरुकुल प्रणाली हो या आधुनिक शिक्षा व्यवस्था, गुरु का महत्व सदैव ही सर्वोपरि रहा है। भारतीय संस्कृति में यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि गुरु का सम्मान करना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक अनिवार्य कर्तव्य है।


जीवन में हम हर किसी से कुछ न कुछ सीखते हैं। हो सकता है कि आपने अपने शिक्षक से गणित सीखा हो, लेकिन अपने दोस्तों से धैर्य और सहनशीलता। ऐसे में हर व्यक्ति जो हमारे विकास में भूमिका निभाता है, वह सम्मान का पात्र है। चाहे वह व्यक्ति हमें जीवन के किसी छोटे से क्षण में कोई छोटी सीख दे, उसका महत्व समय के साथ बढ़ता ही जाता है। इसलिए हमें अपने सभी गुरुओं का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह बड़ा ज्ञान हो या छोटी सीख। 


डॉ. राजेश चौहान 

( न्यू शिमला )



नववर्ष 2025: नवीन आशाओं और संभावनाओं का स्वागत : Dr. Rajesh Chauhan

  नववर्ष 2025: नवीन आशाओं और संभावनाओं का स्वागत साल का अंत हमारे जीवन के एक अध्याय का समापन और एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक होता है। यह...