रविवार, 8 सितंबर 2024

साक्षरता: सशक्त समाज की परिकल्पना - Dr. Rajesh K Chauhan

 साक्षरता: सशक्त समाज की परिकल्पना


साक्षरता किसी भी समाज के विकास की आधारशिला होती है। यह व्यक्ति को न केवल पढ़ने और लिखने की क्षमता प्रदान करती है, बल्कि उसे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाती है। एक साक्षर व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होता है, और यह बदलाव केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक स्तर पर महसूस किया जाता है।  अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हर वर्ष 8 सितंबर को विश्वभर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में साक्षरता के महत्व को उजागर करना और निरक्षरता को समाप्त करने की दिशा में जागरूकता फैलाना है। इस दिन को मनाने का आरंभ 1966 में यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) द्वारा किया गया था। यह दिन न केवल शैक्षिक अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाता है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि दुनिया के बहुत से लोगों के लिए शिक्षा अभी भी एक अधूरी सपना है।


साक्षरता एक व्यक्ति के जीवन में मील का पत्थर साबित होती है। यह न केवल पढ़ने और लिखने की क्षमता को दर्शाती है, बल्कि व्यक्ति की सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को भी विकसित करती है। साक्षर व्यक्ति न केवल खुद को जागरूक करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सक्षम होता है। यह सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। एक साक्षर समाज ही अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सचेत होता है और समाज के समग्र विकास में योगदान देता है।


हालांकि, वैश्विक स्तर पर साक्षरता दर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, फिर भी कई देशों में निरक्षरता एक बड़ी समस्या बनी हुई है। अफ्रीका और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में, विशेष रूप से महिलाएं और बालिकाएं, शिक्षा से वंचित हैं। यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार, आज भी लगभग 773 मिलियन वयस्क विश्व में साक्षर नहीं हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाएं हैं। यह असमानता सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को भी बढ़ाती है।



भारत में स्वतंत्रता के बाद से साक्षरता दर में लगातार वृद्धि देखी गई है। 1951 में भारत की साक्षरता दर केवल 18.3% थी, जो 2021 में बढ़कर 77.7% हो गई। हालांकि यह सुधार सराहनीय है, लेकिन भारत जैसे देश में जहां जनसंख्या अत्यधिक है, अब भी लगभग 20% लोग निरक्षर हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में, महिलाओं और बालिकाओं की साक्षरता दर अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है। भारत में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए समय-समय पर अनेक योजनाएं चलाई हैं।


राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की शुरुआत 1988 में की गई थी। इसका उद्देश्य 15 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के निरक्षरों को साक्षर बनाना था। इस मिशन के तहत बड़े पैमाने पर वयस्क शिक्षा कार्यक्रम चलाए गए। 'संपूर्ण साक्षरता अभियान'  इस मिशन का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में साक्षरता दर में सुधार करना था। इस मिशन ने देशभर में साक्षरता के प्रति जागरूकता बढ़ाई और निरक्षरों को शिक्षा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


 2001 में सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत हुई थी, जिसका उद्देश्य 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा प्रदान करना था। यह एक समग्र प्रयास था, जिसके तहत स्कूलों का निर्माण, शिक्षकों की भर्ती, पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता, और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित की गई। इसके अंतर्गत विशेष रूप से बालिकाओं और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों पर ध्यान केंद्रित किया गया ताकि वे भी शिक्षा से वंचित न रहें। 


वर्ष 1995 में मिड-डे मील योजना में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य स्कूल जाने वाले बच्चों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराना था। इस योजना का मुख्य उद्देश्य बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करना और उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना था। इस योजना ने साक्षरता दर में सुधार के साथ-साथ बच्चों के स्वास्थ्य और उपस्थिति दर को भी बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की शुरुआत की गई। इस अभियान का उद्देश्य माध्यमिक शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाना था। यह अभियान न केवल उच्च शिक्षा की दिशा में प्रगति को सुनिश्चित करता है, बल्कि इसमें गुणवत्ता में सुधार, स्कूलों का उन्नयन, और छात्र-शिक्षक अनुपात को सुधारने पर भी ध्यान दिया गया।


बालिकाओं को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से 2015 में  'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की गई। इस अभियान का उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा पर जोर देना और उन्हें सशक्त बनाना है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों में कार्य करता है जहां लैंगिक असमानता और बालिका शिक्षा की स्थिति अत्यधिक खराब है। इस अभियान ने बालिकाओं के प्रति समाज की सोच को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उनकी शिक्षा पर जोर दिया है।


2014 में पढ़े "भारत, बढ़े भारत" अभियान प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों की भाषा और गणितीय कौशल में सुधार लाने के लिए शुरू किया गया। इसका उद्देश्य छात्रों को बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान में मजबूत बनाना था ताकि वे आगे की कक्षाओं में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।


2015 में "प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना" की शुरुआत की गई। इस योजना का उद्देश्य केवल साक्षरता ही नहीं, बल्कि युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना भी है। इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को रोजगार योग्य बनाना और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना है। इस योजना के तहत विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनसे युवा रोजगार के लिए तैयार होते हैं।


भारत में साक्षरता दर में पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है लेकिन ग्रामीण इलाकों में, खासकर महिलाओं और बालिकाओं की साक्षरता दर शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है। सरकारी योजनाओं और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं से न केवल बालिकाओं की शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है, बल्कि वयस्क शिक्षा के लिए भी जागरूकता फैलाई जा रही है फिर भी इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी है।


हालांकि साक्षरता के प्रति जागरूकता फैलाने के प्रयास किए जा रहे हैं, फिर भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। आर्थिक असमानता, लैंगिक भेदभाव, सांस्कृतिक बाधाएँ और अशिक्षा की ओर अनिच्छा जैसी समस्याएँ साक्षरता के प्रयासों में रोड़े अटका रही हैं। इसके अलावा, गरीबी और बाल श्रम भी बच्चों को स्कूल से दूर रखने वाले प्रमुख कारणों में से एक हैं। कोविड-19 महामारी ने भी शिक्षा के क्षेत्र में भारी बाधाएं उत्पन्न की हैं, जिससे स्कूल बंद होने और डिजिटल असमानता के कारण बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है।


साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए सरकारों और समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा। शिक्षा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए, शैक्षिक संस्थानों को अधिक समावेशी और लचीला बनाया जाना चाहिए। डिजिटल शिक्षा को भी प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों के बच्चे भी शिक्षा से वंचित न रहें।  

इसके अलावा, वयस्क शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए, जिससे कि उन लोगों को भी साक्षर बनाया जा सके जो प्रारंभिक शिक्षा से वंचित रह गए थे। शिक्षा न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि पूरे समाज और देश के विकास के लिए आवश्यक है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना हम सभी की जिम्मेदारी है कि शिक्षा का लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचे।


अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि साक्षरता केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विकास का आधार है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा और साक्षरता का प्रकाश हर उस कोने तक पहुंचे जहां अब भी अंधकार है। यह दिवस एक अवसर है कि हम अपने प्रयासों को पुनः जागृत करें और निरक्षरता के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका निभाएं। साक्षरता ही वह कड़ी है जो व्यक्ति को न केवल व्यक्तिगत विकास, बल्कि सामाजिक परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रेरित करती है। साक्षरता का विस्तार समाज की नींव को मजबूत करता है, और एक साक्षर विश्व ही सशक्त विश्व की दिशा में बढ़ सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेहनत और लगन जीवन की असली पूँजी- डॉ. राजेश चौहान

  सफलता हर व्यक्ति की आकांक्षा है लेकिन इसे प्राप्त करना केवल उन लोगों के लिए संभव है जो कठिन परिश्रम को अपनी आदत बना लेते हैं। यह जीवन का ऐ...