संदेश

नवंबर, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गत्ताधार में 'सिरमौर रत्न' सम्मान समारोह पर्यटन, संस्कृति और सम्मान की अनूठी पहल - डॉ. राजेश चौहान

चित्र
  हिमाचल प्रदेश का सिरमौर जिला, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता, प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध परंपराओं के लिए विख्यात है, 23 नवंबर, 2024 को इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाला एक अभूतपूर्व आयोजन का गवाह बना। बी.एस.एन. समूह और गत्ताधार टूरिज्म के बैनर तले इस सुरम्य पर्यटन स्थल पर ‘सिरमौर रत्न’ सम्मान समारोह का भव्य आयोजन हुआ। यह आयोजन न केवल स्थानीय प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने का अवसर था, बल्कि गत्ताधार को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल भी थी। सिरमौर ज़िला का गत्ताधार अपनी मनोहारी प्राकृतिक छटा, घने जंगलों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। समुद्रतल से काफी ऊंचाई पर स्थित यह स्थल, आज तक पर्यटन के लिहाज से उतना विकसित नहीं हो पाया था, जितनी इसकी क्षमता है। इस आयोजन ने इसे एक नई पहचान देने का काम किया। दुर्गम और चुनौतीपूर्ण भूगोल में इस तरह का आयोजन कराना जहां एक ओर कठिन था, वहीं यह स्थानीय लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति और उत्साह का प्रत्यक्ष प्रमाण भी था। समारोह में पद्मश्री अवॉर्डी विद्यानंद सरैक, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानि...

"हिमाचली पहाड़ी लोकगीतों में जनजीवन" पुस्तक समीक्षा -डॉ. राजेश चौहान

चित्र
लोकसंस्कृति किसी क्षेत्र के सभ्य समाज का दर्पण है, और लोकगीत वहां के जनजीवन का अभिन्न हिस्सा। जन्म से मृत्यु तक, हर अवसर और संस्कार का वर्णन इन गीतों में मिलता है। सोलह संस्कारों में मृत्यु को छोड़कर, अन्य सभी संस्कारों पर गाए जाने वाले मंगल गीतों को संस्कार गीत कहा जाता है। अनाम रचनाकारों द्वारा रचे ये लोकगीत पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से प्रचलित होते हुए समाज की सामूहिक अभिव्यक्ति बन गए हैं। लोकगीत न केवल मनोरंजन का माध्यम हैं, बल्कि समाज की संस्कृति, परंपरा और भावनाओं के संवाहक भी हैं। वास्तव में, लोकगीतों में ही जनजीवन का सार निहित है। लोकगीतों के संरक्षण और संवर्द्धन के क्षेत्र में साहित्यकार और वरिष्ठ पत्रकार रामलाल पाठक का योगदान अत्यंत प्रशंसनीय है। रामलाल पाठक का जन्म 17 मई 1959 को बिलासपुर जिला की सदर तहसील की नवगठित ग्राम पंचायत निहारखन बासला के छोटे से गांव निहारखन बासला (चिड़की) में हुआ है। ये लम्बे अर्से से पत्रकारिता, साहित्य और लोक संस्कृति के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। हाल ही में प्रकाशित उनकी पुस्तक "हिमाचली पहाड़ी लोकगीतों में जनजीवन" में प्रदेश के लोकगीतों...

बच्चों के प्रति चाचा नेहरू के प्रेम का प्रतीक है बाल दिवस - डॉ. राजेश चौहान

चित्र
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिवस को हर वर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस  के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से बच्चों को समर्पित है और उनके अधिकारों, कल्याण, शिक्षा, और उनके जीवन में आने वाले कठिनाइयों पर ध्यान केंद्रित करता है। पंडित नेहरू को बच्चों से बेहद लगाव था। बच्चों के प्रति उनका प्रेम और उनकी उज्ज्वल भविष्य की कामना ने बाल दिवस को भारत में एक महत्वपूर्ण पर्व बना दिया। बाल दिवस का आरंभ भारत में पंडित नेहरू के प्रति सम्मान और बच्चों के प्रति उनके प्रेम को दर्शाने के लिए किया गया था। पंडित नेहरू का मानना था कि बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं और उनके बेहतर विकास के लिए अच्छे वातावरण, शिक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता होती है। उन्हें "चाचा नेहरू" के नाम से भी जाना जाता है और उनकी सोच थी कि बच्चों का पालन-पोषण अच्छे से होना चाहिए ताकि वे देश की उन्नति में योगदान दे सकें। पहले भारत में बाल दिवस 20 नवंबर को मनाया जाता था, जो कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाए जाने वाले विश्व बाल दिवस के दिन था। लेकिन 1964 में पंडित नेहरू के निधन के बाद यह...