संगीतभिलाषी पुस्तक, जिसे डॉ. राजेश चौहान और डॉ. अभिलाषा शर्मा ने सह-लेखन किया है, हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित एक समग्र और उपयोगी गपुस्तक है। इस पुस्तक का उद्देश्य भारतीय शास्त्रीय संगीत की जटिलताओं को सरल और समझने योग्य तरीके से प्रस्तुत करना है।
इस पुस्तक में संगीत के सिद्धांतों, रागों, तालों, और संगीत के विभिन्न प्रकारों पर गहन चर्चा की गई है। इसे विशेष रूप से संगीत के छात्रों, अध्यापकों, शोधकर्ताओं और संगीत प्रेमियों के लिए तैयार किया गया है, ताकि वे संगीत की बारीकियों को गहराई से समझ सकें।
डॉ. राजेश चौहान और डॉ. अभिलाषा ने मिलकर इस पुस्तक में संगीत के ऐतिहासिक, सैद्धांतिक, और प्रायोगिक पहलुओं को शामिल किया है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो संगीत की तकनीकी समझ को विकसित करना चाहते हैं और इसे पेशेवर रूप से या शौकिया तौर पर सीखना चाहते हैं।
संगीतभिलाषी पुस्तक को व्यापक रूप से सराहा गया है और यह भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है।
डॉ.राजेश कुमार चौहान और डॉ.अभिलाषा शर्मा द्वारा लिखित "संगीताभिलाषी" पुस्तक संगीत विषय से संबंधित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित नेट/जेआरएफ, विभिन्न राज्य सेवा आयोग द्वारा संचालित सेट/ स्लैट, संगीत प्राध्यापक (कॉलेज कैडर), संगीत शिक्षक केंद्रीय विद्यालय, संगीत शिक्षक जवाहर नवोदय विद्यालय तथा एम.ए, एम. फिल, पीएच.डी. प्रवेश परीक्षा आदि विभिन्न प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं के लिए अत्यधिक उपयोगी है। संगीताभिलाषी प्रकाशन वर्ष से ही अमेज़न पर सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में शुमार है।
इसे अत्यधिक लाभप्रद बनाने के लिए पुस्तक में केवल उपयोगी विषय वस्तु एवं अधिक जानकारी का समावेश इस प्रकार से किया गया है कि परीक्षार्थियों को इन परीक्षाओं की तैयारी में कोई कठिनाई महसूस ना हो।
Dr. Rajesh K Chauhan
डॉ.राजेश कुमार चौहान (१० दिसंबर १९८४) एक भारतीय लेखक, गायक, रचनाकार और गीतकार हैं। एक परिपक्व फीचर लेखक के रूप में इनकी अलग पहचान है। इनके द्वारा लिखी गई पुस्तक "संगीताभिलाषी" अमेज़न पर सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक है। अनेक शोध-पत्र,आलेख और कवर स्टोरी लिख चुके डॉ.राजेश कई गीतों के रचनाकार भी हैं। वतन पे मर मिटेंगे, ज़िन्दगी की रीत, मैं मज़दूर हूँ, देवों की भूमि हिमाचल, के.वी. गान आदि इनकी विशिष्ठ रचनाएं हैं। हिमाचल प्रदेश के युवा साहित्यकारों में इनका नाम अग्रणी पंक्ति में आता है।
जीवन परिचय
डॉ.राजेश का जन्म 10 दिसम्बर 1984 को हिमाचल (लानाचेता) में हुआ। इनकी माता का नाम जयवंती चौहान और पिता का नाम नरेश चौहान है। इनका बचपन शिमला में बीता और स्कूली शिक्षा भी वहीं से सम्पन्न हुई। इन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से संगीत विषय में पीएच.डी.की उपाधि प्राप्त की। नेट/जे.आर.एफ. उत्तीर्ण कर अनुसंधान के लिए पांच वर्षों तक यूजीसी की फेलोशिप भी प्राप्त की। हिमाचल के सुविख्यात गायक डॉ.कृष्ण लाल सहगल की आवाज़ से आकर्षित होकर स्कूली शिक्षा के बाद महाविद्यालय में इन्होंने संगीत को एक विषय के रुप में पढ़ना शुरु किया। विश्वविद्यालय में प्रवेश पाकर संगीत की शिक्षा को आगे बढ़ाया। इसी दौरान अपने साथियों के मिलकर "संगीत छात्र कल्याण संगठन हिमाचल प्रदेश" का निर्माण किया। ये कई वर्षों तक इस संगठन के अध्यक्ष भी रहे। महाविद्यालयों शैक्षणिक और संस्थानों विद्यालयोंमें संगीत शिक्षा शुरु करवाने के उद्देश्य से बनाए गए इस संगठन के माध्यम से इन्होंने अनेक बार सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के प्रयास किए। संगीत विषय को सभी शैक्षणिक संस्थानों में शुरु करवाने के पक्ष में इन्होंने हिमाचल प्रदेश के सभी ज़िलों में हस्ताक्षर अभियान भी चलाया। संगठन की इस मुहिम के पक्ष में प्रदेश के लगभग डेढ़ लाख लोगों ने हस्ताक्षर किए। अनेक बार हिमाचल के अलग-अलग शहरों में शांतिपूर्ण ढंग से प्रर्दशन भी किए। इस सन्दर्भ में इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर इत्यादि में जाकर विभिन्न बैठकों का आयोजन भी किया परिणामस्वरूप हिमाचल प्रदेश के महाविद्यालयों में संगीत प्राध्यापकों के काफ़ी पद सृजित किए गए।
लेखन कार्य
डॉ.राजेश चौहान के लेखन कार्य की शुरुआत हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में हुई। पीएचडी थीसिस के साथ-साथ इन्होंने अपनी बहु-प्रचलित पुस्तक संगीताभिलाषी का लेखन कार्य भी शुरु कर दिया था। इस दौरान इन्होंने शोध-पत्र और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने की शुरुआत की।
थैय्यम : एक कलात्मक परंपरा।
परंपरा से दूर होता लोक संगीत।
संगीत एक उत्तम औषधि।
समाज के शिल्पकार की बढ़ती चुनौतियां।
शान्ति के अग्रदूत थे नेल्सन मंडेला।
संस्कार विहीन युवा समाज के लिए हानिकर।
संगीत मानवता के भावों के विस्फोट के रुप में सामने आता है।
लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाएं एक बड़ी चुनौती।
मैं मज़दूर हूँ, बेहद मजबूर हूँ।
नारी के अपमान से ध्वस्त हुआ था सिरमौरी ताल।
भारतीय कला और संस्कृति का सम्मान है नई शिक्षा नीति।
हाटी संस्कृति।
हर युवा हो राष्ट्र निर्माण में भागीदार।
सांडु रे मदाना च झीला रा पाणी...
मानवीय भावों की सरगम है संगीत।
संगीत को समर्पित व्यक्तित्व - प्रो.नंदलाल गर्ग।
नारी बलिदान से जनित अनुपम कृति है रुक्मणी कुंड।
अब के सावन प्रलय भारी।
व्यासपुर से बिलासपुर तक।
हिमाचली लोकसंगीत के पितामह- एस.डी.कश्यप।
विशुद्ध लोकसंगीत के संरक्षक संगीत गुरु डाॅ. कृष्ण लाल सहगल।
बमूलियन सभ्यता के खोजकर्ता मानवविज्ञानी डॉ. अनेक राम सांख्यान।
अभी भी प्रचलित है महाभारतकालीन खेल नृत्य ठोडा
बेटियों की सुरक्षा : देश की बड़ी चिंता आदि इनके द्वारा लिखे गए महत्वपूर्ण आलेख हैं।