संगीत मानवता के भावों के विस्फोट के रुप में सामने आता है
डॉ.राजेश के चौहान
"जहाँ पर शब्द काम करना बन्द कर देते हैं, वहां से संगीत बोलना शुरू करता है।" महान लेखक क्रिस्चियन एंडरसन का ये कथन आज के संदर्भ में सत्य प्रतीत होता है। संगीत मानवता के भावों के विस्फोट के रूप में सामने आता है। इसमें कुछ ऐसे अलौकिक गुण विद्यमान होते हैं, जो हमें अंदर तक छू जाते हैं। इससे फर्क नही पड़ता कि हम किस संस्कृति से जुड़े हुए हैं, संगीत सभी को ही अपनी ओर आकर्षित करता है। जब हमारा हृदय पीड़ा से भर जाता है, विचलित तथा एकाकी होकर थक जाता है ऐसी स्थित में भी संगीत चित को प्रसन्न करने की क्षमता रखता है।
गायन, वादन और नृत्य तीनों के समावेश को संगीत कहते हैं। सर्वप्रथम संगीतरत्नाकर ग्रन्थ में गायन, वादन और नृत्य के मेल को ही ‘संगीत’ कहा गया है। ‘गीत’ शब्द में ‘सम्’ उपसर्ग लगाकर ‘संगीत’ शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘गान सहित’। नृत्य और वादन के साथ किया गया गान ही ‘संगीत’ है। शास्त्रों में संगीत को साधना भी माना गया है।
प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों, मूर्तियों, मुद्राओं व भित्तिचित्रों से यह प्रमाणित होता है कि हजारों वर्ष पूर्व भी लोग संगीत से परिचित थे। उदास मन भी संगीत के माधुर्य से उदासीनता छोड़, रंजित होकर प्रसन्नता के हिलोरे लेने लगता है। यह हमारी सुप्राचीन व सुसंस्कृत संस्कृति का आईना है। आमोद-प्रमोद के साधन के साथ-साथ संगीत जन-जागरण का ज़रिया भी रहा है।
आज विश्व,संकट के जिस दौर से गुज़र रहा है, ऐसे में हर कोई शख़्स डरा हुआ है, सहमा हुआ है। इसी विभीषिका के कारण वह अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित है। इक्कीसवीं सदी का अत्यंत व्यस्त मानव आज सुस्ताने को मजबूर है, मानो ज़िन्दगी की रफ़्तार थम गई हो। अपने ही घरों में कैद मनुष्य अपने आप को असहाय महसूस कर रहा है।
कोरोना महामारी के कारण लगे हुए लॉकडाउन का हमारे दैनिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। अधिकतर लोग सुबह उठकर सैर-सपाटा करना पसंद करते हैं। सवेरे दौड़ना, चलना, साइकिल चलाना, विभिन्न गेंंद क्रिड़ाएं, आइसोटोनिक व्यायाम, आइसोमेट्रिक व्यायाम, खेलकूद, जिम आदि हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ ये सभी क्रियाएं मनोरंजन का साधन भी हैं।
लॉकडाउन की वजह से खेल के मैदान व पार्क वीरान पड़े हैं। क्रीड़ा क्षेत्र खिलाड़ियों को तरस रहे हैं। हर आयु वर्ग के लोगों की चहलकदमी के साक्षी मैदान भी मानो कोरोना के अंत की दुआ मांग रहे हों। अपने पालतू जानवरों के साथ टहलते बुजुर्ग, बैडमिंटन, क्रिकेट व कबड्डी के दीवाने युवा, हल्की-हल्की चाल में बतियाती युवतियां व स्कूल का बस्ता दूर फैंक कर मैदान के चारों तरफ शोर मचाते बच्चे, सभी घर की चारदीवारी में नजरबंद हो गए हैं।
इस त्रासदायत स्थिति में भी कोई है जो मानव के टूटते बिखरते संसार को ढांढस बंधाकर नवस्फूर्ति को जागृत कर रहा है। उदास, नम चक्षुओं में नई उमंग का संचार कर रहा है। तनाव ग्रसित इंसान में नई ऊर्जा संचित कर रहा है। घबराहट के बादल छिन्न कर उत्साह के दीप प्रज्वलित कर रहा है। सीमाओं के बंधन तोड़ स्वच्छंद होकर विश्व एकता का आवाहन कर रहा है। मनोबल टूटने न पाए कोरोना के यौद्धाओं का, यही उद्घोष कर रहा है। जी हां, मेरी बात का तात्पर्य संगीत से है।
इस विपत्ति काल में संगीत वास्तव में ही लोगों का मनोरंजन व मनोबल बढ़ाने में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है। घर की चारदीवारी में बंद लोग संगीत के माध्यम से अपना मनोरंजन करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। संगीत विधा से जुड़े समस्त संगीतज्ञ, संगीत साधक, संगीत प्रेमी तथा विद्यार्थी अपने-अपने अंदाज़ में लोगों को इस महामारी के प्रति जागरुक कर रहे हैं। सिने जगत के कलाकार जहां बड़े-बड़े टीवी चैनल्स पर आकर कोरोना से सावधान रहने का संदेश दे रहे हैं, वहीं "संगीत सेतु" जैसे कार्यक्रम के माध्यम से देश के करोड़ों लोगों का मनोरंजन भी कर रहे हैं। बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल्स ख़बरों के साथ गीत-संगीत के कार्यक्रम भी प्रसारित कर रहे हैं ।उत्कृष्ट गीत-संगीत से सुसज्जित रामायण तथा महाभारत का भी काफ़ी वर्षों बाद पुनः दूरदर्शन पर प्रसारण किया जा रहा है।
शास्त्रीय गायक रागदारी संगीत से, पार्श्वगायक फ़िल्मी तरानों से, ग़ज़ल के फ़नकार ग़ज़लों के फ़न से, लोक कलाकार लोकगीतों के माध्यम से, अभिनेता अभिनय द्वारा, नर्तक नृत्य की तत्कार से, वाद्य कलाकार आकर्षक वादन के माध्यम से अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार लोगों का मनोरंजन कर, हौसला व विश्वास बढ़ाने में जुटे हैं।
यही नहीं,घरों में कै़द करोड़ों लोग जिनका संगीत से कोई लेना-देना नहीं है, वे भी इस लॉकडाउन में अपने आंतरिक कलाकार को पहचानने में सफल हुए हैं। सोशल मीडिया पर हर कोई गीत-संगीत के माध्यम से एक दूसरे का सहारा बनने की कोशिश कर रहा है। सोशल मीडिया पर मास्क लगाकर चिकित्सकों द्वारा गाए गए गीत, ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों से लेकर जवानों द्वारा गुनगुनाए गए जोशीले गाने, कोरोना को भगाने के लिए महिलाओं द्वारा की गई आरती आदि बहुतायत वायरल वीडियो इसके उदाहरण हैं।
छोटे-छोटे नटखट बच्चों के द्वारा गाए गए गीत व डांस के वायरल वीडियो हर किसी व्यक्ति का मनोरंजन कर रहे हैं। नन्हें बच्चों की संगीतात्मक बाल लीलाएं सभी को हर्षित तथा अचंभित कर रही हैं। अभिभावक भी अपने बच्चों के माध्यम से कला प्रदर्शन का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाह रहे हैं। दिनभर टीवी या वीडियो गेम खेलना स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक हानिकारक है। इसके विपरीत संगीतात्मक अभिरुचि एक ओर जहां हमारा मनोरंजन करती है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य तथा उत्साहवर्धन का कार्य भी करती है।
अनागत में जब करोना योद्धाओं के नाम लिए जाएंगे तो उनमें एक नाम संगीत साधकों का भी अवश्य होगा। लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए संगीत उपासक कोरोना के विरुद्ध अनिश्चित संग्राम के रणबांकुरे बनकर उभरे हैं। मनोरंजन के साथ मनोबल बढ़ाने का यह असाधारण कार्य अन्य किसी भी विषय से
संबंधित व्यक्ति के लिए इतना सरल नहीं है।
लेकिन अत्यंत दुःख की बात है कि असाधारण गुणों से युक्त इस विषय को राज्य तथा केंद्र सरकारें उपेक्षा की भावना से ही देखती रही हैं। संगीत विषय विहीन शिक्षण संस्थान इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। चिरकाल से सुप्राचीन संस्कृतियों के साक्षी रहे संगीत के माध्यम से मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे कवियों ने भक्ति शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की। भारतीय संस्कृति एवं शिक्षा का आधार ही संगीत है। प्रातः कालीन सभा में की जाने वाली संगीतमय प्रार्थना इसका ज्वलंत उदाहरण है। संगीत हमारी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग है।
संगीत की चमत्कारिक शक्तियों एवं गुणों की प्रमाणिकता विभिन्न विद्वान सिद्ध कर चुके हैं। संगीत साधना एवं श्रवण मात्र से ही मानसिक तनाव, अनिद्रा, हृदय संबंधी रोग, श्वसन संबंधी समस्याएं अनायास ही दूर हो जाती हैं। गायन, वादन और नृत्य संपूर्ण व्यायाम तथा योग हैं। संगीत साधक को अन्य किसी भी प्रकार का व्यायाम करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।ख़ासतौर पर बालकों को संगीत अनिवार्य रूप से सिखाया जाना चाहिए। इससे उसके मानसिक पटल तथा व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पुरातन काल से ही संगीत के माध्यम से जन-जागरण के अनेक उदाहरण मिलते हैं। युद्ध की भीषण स्थिति हो या कोई प्राकृतिक आपदा, सरकारी योजना का क्रियान्वयन हो या चुनाव का प्रचार, साक्षरता अभियान हो या कोई महामारी, संगीत हर विकट परिस्थिति में आदिकाल से ही मनुष्य का मनोबल बढ़ाता रहा है। वर्तमान में व्याप्त कोरोना काल इसका नवीनतम उदाहरण है।