गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

संगीत मानवता के भावों के विस्फोट के रुप में सामने आता है


संगीत मानवता के भावों के विस्फोट के रुप में सामने आता है

डॉ.राजेश के चौहान

"जहाँ पर शब्द काम करना बन्द कर देते हैं, वहां से संगीत बोलना शुरू करता है।" महान लेखक क्रिस्चियन एंडरसन का ये कथन आज के संदर्भ में सत्य प्रतीत होता है। संगीत मानवता के भावों के विस्फोट के रूप में सामने आता है। इसमें कुछ ऐसे अलौकिक गुण विद्यमान होते हैं, जो हमें अंदर तक छू जाते हैं। इससे फर्क नही पड़ता कि हम किस संस्कृति से जुड़े हुए हैं, संगीत सभी को ही अपनी ओर आकर्षित करता है। जब हमारा हृदय  पीड़ा से भर जाता है, विचलित तथा एकाकी होकर थक जाता है ऐसी स्थित में भी संगीत  चित को प्रसन्न  करने की क्षमता रखता है। 
गायन, वादन और नृत्य तीनों के समावेश को संगीत कहते हैं। सर्वप्रथम संगीतरत्नाकर ग्रन्थ में गायन, वादन और नृत्य के मेल को ही ‘संगीत’ कहा गया है। ‘गीत’ शब्द में ‘सम्’ उपसर्ग लगाकर ‘संगीत’ शब्द बना, जिसका अर्थ है ‘गान सहित’। नृत्य और वादन के साथ किया गया गान ही ‘संगीत’ है। शास्त्रों में संगीत को साधना भी माना गया है।
 प्राचीन सभ्यताओं के अवशेषों, मूर्तियों, मुद्राओं व भित्तिचित्रों से यह प्रमाणित होता है कि हजारों वर्ष पूर्व भी लोग संगीत से परिचित थे। उदास मन भी संगीत के माधुर्य से उदासीनता छोड़, रंजित होकर प्रसन्नता के हिलोरे लेने लगता है। यह हमारी सुप्राचीन व सुसंस्कृत संस्कृति का आईना है। आमोद-प्रमोद के साधन के साथ-साथ संगीत जन-जागरण का ज़रिया भी रहा है। 
आज विश्व,संकट के जिस दौर से गुज़र रहा है, ऐसे में हर कोई शख़्स डरा हुआ है, सहमा हुआ है। इसी विभीषिका के कारण वह अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित है। इक्कीसवीं सदी का अत्यंत व्यस्त मानव आज सुस्ताने को मजबूर है, मानो ज़िन्दगी की रफ़्तार थम गई हो। अपने ही घरों में कैद मनुष्य अपने आप को असहाय महसूस कर रहा है। 

कोरोना महामारी के कारण लगे हुए लॉकडाउन का हमारे दैनिक जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। अधिकतर लोग सुबह उठकर सैर-सपाटा करना पसंद करते हैं। सवेरे दौड़ना, चलना, साइकिल चलाना, विभिन्न गेंंद क्रिड़ाएं, आइसोटोनिक व्यायाम, आइसोमेट्रिक व्यायाम, खेलकूद, जिम आदि हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ ये सभी क्रियाएं  मनोरंजन का साधन भी हैं।
लॉकडाउन की वजह से खेल के मैदान व पार्क वीरान पड़े हैं। क्रीड़ा क्षेत्र खिलाड़ियों को तरस रहे हैं। हर आयु वर्ग के लोगों की चहलकदमी के साक्षी मैदान भी मानो कोरोना के अंत की दुआ मांग रहे हों। अपने पालतू जानवरों के साथ टहलते बुजुर्ग, बैडमिंटन, क्रिकेट व कबड्डी के दीवाने युवा, हल्की-हल्की चाल में बतियाती युवतियां व स्कूल का बस्ता दूर फैंक कर मैदान के चारों तरफ शोर मचाते बच्चे, सभी घर की चारदीवारी में नजरबंद हो गए हैं।
इस त्रासदायत स्थिति में भी कोई है जो मानव के टूटते बिखरते संसार को ढांढस बंधाकर नवस्फूर्ति को जागृत कर रहा है। उदास, नम चक्षुओं में नई उमंग का संचार कर रहा है। तनाव ग्रसित इंसान में नई ऊर्जा संचित कर रहा है। घबराहट के बादल छिन्न कर उत्साह के दीप प्रज्वलित कर रहा है। सीमाओं के बंधन तोड़ स्वच्छंद होकर विश्व एकता का आवाहन कर रहा है। मनोबल टूटने न पाए कोरोना के यौद्धाओं का, यही उद्घोष कर रहा है। जी हां, मेरी बात का तात्पर्य संगीत से है।
इस विपत्ति काल में संगीत वास्तव में ही लोगों का मनोरंजन व मनोबल बढ़ाने में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है। घर की चारदीवारी में बंद लोग संगीत के माध्यम से अपना मनोरंजन करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। संगीत विधा से जुड़े समस्त संगीतज्ञ, संगीत साधक, संगीत प्रेमी तथा विद्यार्थी अपने-अपने अंदाज़ में लोगों को इस महामारी के प्रति जागरुक कर रहे हैं। सिने जगत के कलाकार जहां बड़े-बड़े टीवी चैनल्स पर आकर कोरोना से सावधान रहने का संदेश दे रहे हैं, वहीं "संगीत सेतु" जैसे कार्यक्रम के माध्यम से देश के करोड़ों लोगों का मनोरंजन भी कर रहे हैं। बड़े-बड़े न्यूज़ चैनल्स ख़बरों के साथ गीत-संगीत के कार्यक्रम भी प्रसारित कर रहे हैं ।उत्कृष्ट गीत-संगीत से सुसज्जित रामायण तथा महाभारत का भी काफ़ी वर्षों बाद पुनः दूरदर्शन पर प्रसारण किया जा रहा है।
शास्त्रीय गायक रागदारी संगीत से, पार्श्वगायक फ़िल्मी तरानों से,  ग़ज़ल के फ़नकार ग़ज़लों के फ़न से, लोक कलाकार लोकगीतों के माध्यम से, अभिनेता अभिनय द्वारा, नर्तक नृत्य की तत्कार से, वाद्य कलाकार आकर्षक वादन के माध्यम से अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार लोगों का मनोरंजन कर, हौसला व विश्वास बढ़ाने में जुटे हैं।

यही नहीं,घरों में कै़द करोड़ों लोग जिनका संगीत से कोई लेना-देना नहीं है, वे भी इस लॉकडाउन में अपने आंतरिक कलाकार को पहचानने में सफल हुए हैं। सोशल मीडिया पर हर कोई गीत-संगीत के माध्यम से एक दूसरे का सहारा बनने की कोशिश कर रहा है। सोशल मीडिया पर मास्क लगाकर चिकित्सकों द्वारा गाए गए गीत, ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों से लेकर जवानों द्वारा गुनगुनाए गए जोशीले गाने, कोरोना को भगाने के लिए महिलाओं द्वारा की गई आरती आदि बहुतायत वायरल वीडियो इसके उदाहरण हैं।

छोटे-छोटे नटखट बच्चों के द्वारा गाए गए गीत व डांस के वायरल वीडियो हर किसी व्यक्ति का मनोरंजन कर रहे हैं। नन्हें बच्चों की संगीतात्मक बाल लीलाएं सभी को हर्षित तथा अचंभित कर रही हैं। अभिभावक भी अपने बच्चों के माध्यम से कला प्रदर्शन का कोई भी अवसर छोड़ना नहीं चाह रहे हैं। दिनभर टीवी या वीडियो गेम खेलना स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक हानिकारक है। इसके विपरीत संगीतात्मक अभिरुचि एक ओर जहां हमारा मनोरंजन करती है, वहीं दूसरी तरफ स्वास्थ्य तथा उत्साहवर्धन का कार्य भी करती है।
अनागत में जब करोना योद्धाओं के नाम लिए जाएंगे तो उनमें एक नाम संगीत साधकों का भी अवश्य होगा। लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए संगीत उपासक कोरोना के विरुद्ध अनिश्चित संग्राम के रणबांकुरे बनकर उभरे हैं। मनोरंजन के साथ मनोबल बढ़ाने का यह असाधारण कार्य अन्य किसी भी विषय से 
संबंधित व्यक्ति के लिए इतना सरल नहीं है।
लेकिन अत्यंत दुःख की बात है कि असाधारण गुणों से युक्त इस विषय को राज्य तथा केंद्र सरकारें उपेक्षा की भावना से ही देखती रही हैं। संगीत विषय विहीन शिक्षण संस्थान इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। चिरकाल से सुप्राचीन संस्कृतियों के साक्षी रहे संगीत के माध्यम से मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे कवियों ने भक्ति शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की। भारतीय संस्कृति एवं शिक्षा का आधार ही संगीत है। प्रातः कालीन सभा में की जाने वाली संगीतमय प्रार्थना इसका ज्वलंत उदाहरण है। संगीत हमारी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग है।
संगीत की चमत्कारिक शक्तियों एवं गुणों की प्रमाणिकता विभिन्न विद्वान सिद्ध कर चुके हैं। संगीत साधना एवं श्रवण मात्र से ही मानसिक तनाव, अनिद्रा, हृदय संबंधी रोग, श्वसन संबंधी समस्याएं अनायास ही दूर हो जाती हैं। गायन, वादन और नृत्य संपूर्ण व्यायाम तथा योग हैं। संगीत साधक को अन्य किसी भी प्रकार का व्यायाम करने की भी आवश्यकता नहीं होती है।ख़ासतौर पर बालकों को संगीत अनिवार्य रूप से सिखाया जाना चाहिए। इससे उसके मानसिक पटल तथा व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पुरातन काल से ही संगीत के माध्यम से जन-जागरण के अनेक उदाहरण मिलते हैं। युद्ध की भीषण स्थिति हो या कोई प्राकृतिक आपदा, सरकारी योजना का क्रियान्वयन हो या चुनाव का प्रचार, साक्षरता अभियान हो या कोई महामारी, संगीत हर विकट परिस्थिति में आदिकाल से ही मनुष्य का मनोबल बढ़ाता रहा है। वर्तमान में व्याप्त कोरोना काल इसका नवीनतम उदाहरण है।

रविवार, 12 अप्रैल 2020

लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाएं एक बड़ी चुनौती

लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाएं एक बड़ी चुनौती 
                                                 
                                                डॉ.राजेश के चौहान


भारत में लॉकडाउन के चलते सभी शिक्षण संस्थान बंद हैं। स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी घर पर रहने को मजबूर हैं। इस स्थिति में सरकार के निर्देशानुसार स्कूल प्रशासन ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से  घर में ही पढ़ाई करवा रहा है। व्हाट्सऐप, फेसबुक पर क्लोस्ड ग्रुप बनाकर तथा विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए  भी क्लासेस ले रहे हैं। इस आपातकाल में बच्चों की शिक्षा पर ज़्यादा असर न पड़े इसलिए सरकार ने ऑनलाइन  और डिजिटल माध्यमों से शिक्षा देने के निर्देश दिये हैं। कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन की वजह से सरकारी तथा निजी संस्थानों में शिक्षारत सभी विद्यार्थियों की शिक्षा बाधित हुई है।
दीक्षा और स्वयंप्रभा जैसे पोर्टलों पर कई भाषाओं में लेसन पढ़ाये जा रहे हैं। कई प्राइवेट स्कूल ज़ूम और माइक्रोसोफ्ट टीम जैसे प्लेटफॉर्म के ज़रिए क्लासेस ले रहे हैं। सीधे संवाद के लिए शिक्षकों को चयनित भी किया गया हैताकि वे स्काइप और लाइव वेब-चैट के माध्यम से विद्यार्थियों की जिज्ञासा और समस्याओं का समाधान कर सकें। नामित शिक्षक प्रातःकालीन सत्र में प्रसारित किए गए विषयों पर उसी दिन अतिरिक्त सामग्री तैयार करेंगेताकि लाइव सत्र के दौरान विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान हो सके और यदि किसी तरह के सवाल नहीं आते हैं तो शिक्षक उस दिन के विषयों की पुनरावृत्ति कराएंगे या उपयुक्त शिक्षण सामग्री शिक्षार्थियों तक पहुंचाएंगे। विभिन्न उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग एनआईओएस और एनसीईआरटी विषयों को ऑनलाइन पढ़ाने के साथ-साथ टीवी पर भी प्रसारित किया जा रहा है।



कुछ महत्वपूर्ण ऐप्स
दीक्षा : इसमें पहली से 12वीं कक्षा तक के लिए सीबीएसई,एनसीईआरटीऔर स्टेट/यूटी की ओर से बनाई गईं अलग-अलग भाषाओं में 80 हज़ार से ज़्यादा ई-बुक्स हैं। इसका ऐप डाउनलोड किया जा सकता है। ई-पाठशाला : इस वेब पोर्टल में कक्षा पहली से 12वीं तक के लिए एनसीईआरटी ने अलग-अलग भाषाओं में1886 ऑडियो, 2000 वीडियो, 696 ई-बुक्स डाली है। नेशनल रिपोसिटरी ऑफ ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेस (NROER) : इस पोर्टल में कुल 14527 फाइल्स हैंजिसमें अलग-अलग भाषाओं में ऑडियोवीडियोडॉक्यूमेंटतस्वीरेंइंटरेक्टिव शामिल हैं। स्वयंप्रभा : ये नेशनल ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म है. जिसमें11वीं-12वीं कक्षा और अंडर ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट दोनों ही तरह के छात्रों के लिए सभी विषयों में 1900 कोर्स हैं।

देश में लॉकडाउन होने की वजह से अधिकतर माता-पिता और शिक्षक बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं। उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पढ़ रहा हैं। एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में से दो माता-पिता के पास बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के  सेटअप के लिए ज़रूरी सामान ही उपलब्ध नहीं है। लोकल सर्कल नाम की एक संस्था के हाल ही में किए गए एक सर्वे में 203 ज़िलों के 23 हज़ार लोगों पर किए गए अनुसंधान में पाया कि 43% लोगों के पास उनके बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा  के लिए कम्प्यूटरटेबलेटप्रिंटर,राउटर, स्मार्ट फोन जैसी चीज़ें नहीं हैं।
जिन लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा या लैपटॉपटेबलेट जैसे उपकरण हैं वे भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। शहरी जनसंख्या के ज़्यादातर अभिभावक वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। ऐसे में उन लोगों का कहना है कि हमारे पास एक ही लैपटॉप है, जिस पर या तो पढ़ाई कि जा सकती है या ऑफिस का काम। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटरलैपटॉपराउटरप्रिटंरपेपर जैसी चीज़े ज़रूरी वस्तुओं की  श्रेणी में नहीं हैं। यदि इन्हें भी जरूरी वस्तुओं की श्रेणी में डाल दिया जाएँ अभिभावक बाज़ार से आसानी से खरीद सकेंगे।
ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सबसे बड़ी दिक्कत आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आ रही है। लैपटॉपटेबलेट जैसे उपकरणों के अभाव में वो ऑनलाइन पढ़ाई में कहीं पीछे छूटते दिख रहे हैं। बहुत से ग़रीब परिवार बड़े-बड़े शहरों से पलायन कर चुके हैं। ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं एक अधूरे स्वप्न के समान दृष्टिगोचर हैं। इस संकटकाल में दो वक्त की रोटी भी उनके लिए एक चुनौती है। रोज़ कमाकर खाने वाले वर्ग के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लाससेस का कोई औचित्य नज़र नहीं आ रहा है।
सरकार ने विद्यार्थियों  के लिए ये तमाम मुफ्त ऑनलाइन सुविधाएं दी हैं लेकिन सत्य यह है कि ग्रामीण इलाक़ों में प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्तियों के पास ही इंटरनेट है। इस स्थिति में छात्रों की ऑनलाइन शिक्षा कैसे संभव है। यूनिसेफ के शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ऑनलाइन एक पावरफुल माध्यम हैलेकिन इस माध्यम से हम सिर्फ़ 20 से 30 प्रतिशत आबादी तक ही पहुंच सकते हैं।
आज भारत का हर राज्य में डिजिटल माध्यम से शिक्षा देने की बात कर रहा है। डिजिटल शिक्षा अवश्य एक माध्यम हैजिसके ज़रिए बच्चों तक पहुंचने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन इस लक्षय को प्राप्त करने में कुछ चुनौतियां भी हैं।  हर किसी के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिवी नहीं है। कुछ राज्य  पूरी किताब को ही डिजिटलाइज़ करके वेबसाइट में डालने की कोशिश कर रहे हैं।  कुछ वीडियो और ऑडियो अपलोड करने की बात भी कर रहे है। लेकिन सच्चाई यह है की यदि हम पूरी किताब वेबसाइट डाल भी देते हैं फिर भी वहाँ से डाउनलोड करना हर किसी के लिए आसान नहीं होगा।
जिन लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं है और जो इंटरनेट एक्सेस नहीं कर सकते हैंस्थानीय प्रशासन की तरफ से ऐसे परिवारों के बच्चों को छोटा-मोटा एजुकेशनल किट बनाकर देना चाहिए। जिससे वो बच्चे भी कुछ न कुछ सीख सके। इसके अतिरिक्त रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुंचा जा सकता है। इन पर रोज़ किसी निश्चित अवधि के लिए मज़ेदार और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम प्रसारित किए जाने चाहिए जो विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि करे। हर राज्य को रेडियो और दूरदर्शन की क्षमताओं का लाभ उठाना चाहिए।  
हमारे देश में शिक्षा ग्रहण कर रहे करीब 26 करोड़ छात्र हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के ज़रिए शहरों में स्कूलों के नए एकेडमिक सेशन शुरू कर दिये गए हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर और ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले छात्र इस सुविधा से वंचित हैं।
किसी को भी मालूम नहीं है कि देश कोरोना से ख़तरे से निकलकर कब सामान्य ज़िंदगी में आएगाऐसे में अब सरकार के सामने ये चुनौती है कि वो स्कूल के आर्थिक आधार पर कमज़ोर छात्रों को अन्य छात्रों के समकक्ष कैसे साथ लेकर चलेगी।

बुधवार, 8 अप्रैल 2020

प्रकृति के प्रांगण में निरंकुश मानव पर कोरोना का प्रकोप

प्रकृति के प्रांगण में निरंकुश मानव पर कोरोना का प्रकोप       
Dr.Rajesh K Chauhan
आज दुनियां का हर देश कोरोना महामारी के सामने त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है। दुनिया को अपनी मर्जी से किसी भी दिशा में मोड़ने की ताकत रखने वाले बड़े से बड़े सूरमा भी चूहे बनकर अपने-अपने बिलों में दुबक कर बैठने को मजबूर हैं। विश्व का सबसे शक्तिशाली प्राणी आज सामान्य दृष्टि से नज़र भी न आने वाले छोटे से वायरस की वजह से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।  
कोरोना नामक दैत्य ने मनुष्य के जल-थल और नभ सभी मार्ग अवरुद्ध कर दिए हैं। चारों तरफ एक सन्नाटा सा पसर गया है। एक मानव दूसरे मानव से डर रहा है। गले लगाकर अभिवादन और हाथ मिलाना तो दूर अब नमस्ते भी तीन मीटर दूर से की जा रही है। गलियां सूनी हो गई हैं और बाज़ार मानव विहीन दृष्टिगोचर हो रहे हैं। हां, यदा-कदा जंगली जानवर शहरों की रौनक अवश्य बढ़ा रहे हैं। जनेश्वर, अंबेडकर जैसे बड़े-बड़े पार्क, शिमला, मनाली, मसूरी, एलिफेंटा, खंडाला, आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला, मैसूर का किला, जयपुर का हवामहल, असम में चाय के बाग़ान, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सब के सब पर्यटन स्थल सैलानियों को तरस रहे हैं। मंदिर, मस्ज़िद, गिरजाघर और गुरुद्वारे भी भक्त विहीन बंद पड़े हैं। शॉपिंग मॉल, सिनेमा घर, रेस्टोरेंट्स, चाय वाला, चाट वाला, पान वाला, बड़े-बड़े उद्योग धंधे सभी इस कोरोना रूपी दानव के रवाना होने का इंतजार कर रहे हैं।

छोटे-छोटे बच्चे और विद्यार्थी अक्सर स्कूल/कॉलेज में छुट्टी होने का इंतजार करते हैं और छुट्टियां मिल जाने पर खुशियां मनाते हैं लेकिन आज के संदर्भ में स्कूल के बच्चे भी विद्यालय खुलने की दुआ मांग रहे हैं। घर की चारदीवारी में हर कोई घुटन महसूस कर रहा है। हर कोई इस क़ैद से जल्द से जल्द आज़ादी चाहता है किंतु प्रकृति के इस महामारी रूपी दंड के सामने सब विवश हैं। लगता है प्रकृति मानव द्वारा किए गए अप्राकृतिक अत्याचारों का बदला ले रही हो।

जब-जब मानव ने अपनी दूषित मानसिकता के कारण प्रकृति के साथ अत्यधिक छेड़छाड़ की है तब-तब प्रकृति ने महामारी या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा से प्रकृति को संतुलित करने की कोशिश की है। हड़प्पा, सुमेरिया, बेबिलोनिया, मिस्त्र, असीरिया, माया आदि सुप्राचीन व सुसंस्कृत सभ्यताएं इसका उदाहरण हैं। इन सभ्यताओं के पतन का कारण भी महामारी, बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएं ही सर्वमान्य हैं। वास्तव में पृथ्वी "प्रकृति संतुलन" के सिद्धांत पर टिकी हुई है। किसी भी कारण जब धरती का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है तो प्रलय निश्चित है।


वर्तमान समय में विश्व का कोई भी देश कोरोनावायरस के संक्रमण से अछूता नहीं है। हर तरफ हड़कंप मचा हुआ है। लोग घरों में कै़द हैं। यातायात के साधन रेल, जहाज, बस, रिक्शा सब के सब पूरी तरह बंद कर दिए गए हैं। अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। प्रकृति के प्रांगण में निवास कर रहे प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपने अस्तित्व को लेकर डर समा चुका है। ऐसे में कुछ योद्धा हैं जो दिन-रात हर परिस्थिति में इस महामारी के विरुद्ध अनवरत लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस सभ्य समाज में विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी इस लड़ाई के असली रणबांकुरे जिनमें डॉक्टर, नर्सेस, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, पुलिस व सेना के जवान तथा समाज का तीसरा चक्षु समस्त मीडिया कर्मी शामिल हैं। यह जांबाज अपनी जान की परवाह न करते हुए निरंतर मानवता की सेवा कर रहे हैं। दुनियां के ज्यादातर देशों में कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए एकमात्र कारगर शस्त्र लॉकडाउन का प्रयोग किया जा रहा है। हमारे देश में भी अधिकतर लोग लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं। किंतु कुछ मानवता के दुश्मन अपनी अज्ञानता का परिचय भी दे रहे हैं। उन्हें न तो अपनी जान की परवाह है और ना ही अन्य लोगों की। सरकार के आदेशों का पालन करना ऐसे लोगों को अपनी शान के खिलाफ लगता है। ऐसे देशद्रोहियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने की आवश्यकता है।
संकट काल में अव्यवहारिक, अपरिचित शत्रु से चल रही लड़ाई के दौरान हमारे योद्धाओं का मनोबल कम नहीं होना चाहिए। उच्च मनोबल कठिनतम कार्य को भी सहजता से करने की शक्ति प्रदान करता है। मनोबल मानसिक तत्व या क्षमताओं जैसे उत्साह, अनुशासन, आशा, साहस तथा विश्वास ख्याति का प्रतीक है। हम सभी नागरिकों का यह प्रथम कर्तव्य बनता है कि इस विकट परिस्थिति में हम अपना तथा अन्य साथियों का मनोबल बढ़ाते रहें। सकारात्मक सोच के साथ सरकार के आदेशों व नियमों का पालन कर एक-दूसरे की हर संभव मदद करें।
संगीतकार गीत-संगीत के माध्यम से, अभिनेता अभिनय द्वारा, कवि कविताओं से, विचारक अपने सुंदर विचारों द्वारा, धर्म के ज्ञाता धार्मिक सुविचारों के माध्यम से, चित्रकार चित्रों द्वारा तथा लेखक अपनी कलम के माध्यम से घर पर रहकर ही सकारात्मक प्रेरणादायक विचारों से अपने-अपने स्तर पर एक-दूसरे को इस महामारी के प्रति जागृत कर देशवासियों के मनोबल को बढ़ाने में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभा सकते हैं। इसके उदाहरण देश के हर कोने से प्राप्त भी हो रहे हैं।

रोटी, कपड़ा और मकान हर व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकता है कपड़ा और मकान न भी मिले पर भरपेट दो वक्त का भोजन हर व्यक्ति को मिलना बड़ी चुनौती है। आधिकारिक आंकड़े तथा विश्व बैंक की  रिपोर्ट के अनुसार भारत के लगभग 37% लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं। इस स्थिति में हर भारतीय का कर्तव्य बनता है कि देश में कोई भी नागरिक भूख के कारण न मरे। बड़े-बड़े उद्योगपतियों, नेता-अभिनेता, समृद्ध व्यापारियों तथा देश के समस्त धार्मिक संस्थानों को आगे आकर गरीब लोगों की दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना चाहिए। इस पावन कार्य की सफलता के लिए हर किसी सक्षम नागरिक को अपनी क्षमता के अनुसार जन सेवा करनी चाहिए। सब कुछ सरकार पर छोड़ देना भी गलत होगा। धर्म, वर्ग, जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर मानवता की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना पड़ेगा।
हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी देश का मनोबल बढ़ाने में अविस्मरणीय भूमिका निभा रहे हैं। कभी जनता कर्फ्यू का आयोजन कर रियल योद्धाओं के सम्मान में ताली, थाली, घंटी, शंख आदि बजवा कर तथा कभी एकजुटता का संदेश देने के लिए दीया, मोमबत्ती, टॉर्च, मोबाइल फ्लैश लाइट आदि जलवा कर विश्व को यह संदेश दे रहे हैं कि भारत के 137 करोड़ लोग देश पर आए संकट का सामना करने के लिए एकजुटता के साथ एक दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर सीना तान कर खड़े हैं। गर्व की बात यह है कि प्रधानमंत्री के प्रयासों की सराहना तथा अनुसरण दुनियां के अन्य देश भी कर रहे हैं। विपत्ति के इस काल में घबराहट की जगह संयमित तथा अनुशासित रहकर हमें इस महामारी के विरुद्ध एकजुटता तथा समझदारी का परिचय देना होगा। प्रकृति के साथ हो रही अनावश्यक छेड़छाड़ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर, आपसी सद्भावना के नारे को बुलंद कर ही हम प्रकृति के प्रांगण में स्वच्छ, स्वच्छंद तथा आनंदमई जीवन की नींव रख सकते हैं।
कोरोना को हराना है, घर से बाहर नहीं जाना है।


                                                                                 

नववर्ष 2025: नवीन आशाओं और संभावनाओं का स्वागत : Dr. Rajesh Chauhan

  नववर्ष 2025: नवीन आशाओं और संभावनाओं का स्वागत साल का अंत हमारे जीवन के एक अध्याय का समापन और एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक होता है। यह...