रविवार, 12 अप्रैल 2020

लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाएं एक बड़ी चुनौती

लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाएं एक बड़ी चुनौती 
                                                 
                                                डॉ.राजेश के चौहान


भारत में लॉकडाउन के चलते सभी शिक्षण संस्थान बंद हैं। स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी घर पर रहने को मजबूर हैं। इस स्थिति में सरकार के निर्देशानुसार स्कूल प्रशासन ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से  घर में ही पढ़ाई करवा रहा है। व्हाट्सऐप, फेसबुक पर क्लोस्ड ग्रुप बनाकर तथा विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए  भी क्लासेस ले रहे हैं। इस आपातकाल में बच्चों की शिक्षा पर ज़्यादा असर न पड़े इसलिए सरकार ने ऑनलाइन  और डिजिटल माध्यमों से शिक्षा देने के निर्देश दिये हैं। कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन की वजह से सरकारी तथा निजी संस्थानों में शिक्षारत सभी विद्यार्थियों की शिक्षा बाधित हुई है।
दीक्षा और स्वयंप्रभा जैसे पोर्टलों पर कई भाषाओं में लेसन पढ़ाये जा रहे हैं। कई प्राइवेट स्कूल ज़ूम और माइक्रोसोफ्ट टीम जैसे प्लेटफॉर्म के ज़रिए क्लासेस ले रहे हैं। सीधे संवाद के लिए शिक्षकों को चयनित भी किया गया हैताकि वे स्काइप और लाइव वेब-चैट के माध्यम से विद्यार्थियों की जिज्ञासा और समस्याओं का समाधान कर सकें। नामित शिक्षक प्रातःकालीन सत्र में प्रसारित किए गए विषयों पर उसी दिन अतिरिक्त सामग्री तैयार करेंगेताकि लाइव सत्र के दौरान विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान हो सके और यदि किसी तरह के सवाल नहीं आते हैं तो शिक्षक उस दिन के विषयों की पुनरावृत्ति कराएंगे या उपयुक्त शिक्षण सामग्री शिक्षार्थियों तक पहुंचाएंगे। विभिन्न उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग एनआईओएस और एनसीईआरटी विषयों को ऑनलाइन पढ़ाने के साथ-साथ टीवी पर भी प्रसारित किया जा रहा है।



कुछ महत्वपूर्ण ऐप्स
दीक्षा : इसमें पहली से 12वीं कक्षा तक के लिए सीबीएसई,एनसीईआरटीऔर स्टेट/यूटी की ओर से बनाई गईं अलग-अलग भाषाओं में 80 हज़ार से ज़्यादा ई-बुक्स हैं। इसका ऐप डाउनलोड किया जा सकता है। ई-पाठशाला : इस वेब पोर्टल में कक्षा पहली से 12वीं तक के लिए एनसीईआरटी ने अलग-अलग भाषाओं में1886 ऑडियो, 2000 वीडियो, 696 ई-बुक्स डाली है। नेशनल रिपोसिटरी ऑफ ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेस (NROER) : इस पोर्टल में कुल 14527 फाइल्स हैंजिसमें अलग-अलग भाषाओं में ऑडियोवीडियोडॉक्यूमेंटतस्वीरेंइंटरेक्टिव शामिल हैं। स्वयंप्रभा : ये नेशनल ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म है. जिसमें11वीं-12वीं कक्षा और अंडर ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट दोनों ही तरह के छात्रों के लिए सभी विषयों में 1900 कोर्स हैं।

देश में लॉकडाउन होने की वजह से अधिकतर माता-पिता और शिक्षक बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंतित हैं। उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पढ़ रहा हैं। एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में से दो माता-पिता के पास बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के  सेटअप के लिए ज़रूरी सामान ही उपलब्ध नहीं है। लोकल सर्कल नाम की एक संस्था के हाल ही में किए गए एक सर्वे में 203 ज़िलों के 23 हज़ार लोगों पर किए गए अनुसंधान में पाया कि 43% लोगों के पास उनके बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा  के लिए कम्प्यूटरटेबलेटप्रिंटर,राउटर, स्मार्ट फोन जैसी चीज़ें नहीं हैं।
जिन लोगों के पास इंटरनेट की सुविधा या लैपटॉपटेबलेट जैसे उपकरण हैं वे भी समस्याओं से जूझ रहे हैं। शहरी जनसंख्या के ज़्यादातर अभिभावक वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। ऐसे में उन लोगों का कहना है कि हमारे पास एक ही लैपटॉप है, जिस पर या तो पढ़ाई कि जा सकती है या ऑफिस का काम। इसके अतिरिक्त कम्प्यूटरलैपटॉपराउटरप्रिटंरपेपर जैसी चीज़े ज़रूरी वस्तुओं की  श्रेणी में नहीं हैं। यदि इन्हें भी जरूरी वस्तुओं की श्रेणी में डाल दिया जाएँ अभिभावक बाज़ार से आसानी से खरीद सकेंगे।
ऑनलाइन कक्षाओं के लिए सबसे बड़ी दिक्कत आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को आ रही है। लैपटॉपटेबलेट जैसे उपकरणों के अभाव में वो ऑनलाइन पढ़ाई में कहीं पीछे छूटते दिख रहे हैं। बहुत से ग़रीब परिवार बड़े-बड़े शहरों से पलायन कर चुके हैं। ऐसे परिवारों के बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं एक अधूरे स्वप्न के समान दृष्टिगोचर हैं। इस संकटकाल में दो वक्त की रोटी भी उनके लिए एक चुनौती है। रोज़ कमाकर खाने वाले वर्ग के बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लाससेस का कोई औचित्य नज़र नहीं आ रहा है।
सरकार ने विद्यार्थियों  के लिए ये तमाम मुफ्त ऑनलाइन सुविधाएं दी हैं लेकिन सत्य यह है कि ग्रामीण इलाक़ों में प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्तियों के पास ही इंटरनेट है। इस स्थिति में छात्रों की ऑनलाइन शिक्षा कैसे संभव है। यूनिसेफ के शिक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ऑनलाइन एक पावरफुल माध्यम हैलेकिन इस माध्यम से हम सिर्फ़ 20 से 30 प्रतिशत आबादी तक ही पहुंच सकते हैं।
आज भारत का हर राज्य में डिजिटल माध्यम से शिक्षा देने की बात कर रहा है। डिजिटल शिक्षा अवश्य एक माध्यम हैजिसके ज़रिए बच्चों तक पहुंचने की कोशिश की जा सकती है। लेकिन इस लक्षय को प्राप्त करने में कुछ चुनौतियां भी हैं।  हर किसी के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिवी नहीं है। कुछ राज्य  पूरी किताब को ही डिजिटलाइज़ करके वेबसाइट में डालने की कोशिश कर रहे हैं।  कुछ वीडियो और ऑडियो अपलोड करने की बात भी कर रहे है। लेकिन सच्चाई यह है की यदि हम पूरी किताब वेबसाइट डाल भी देते हैं फिर भी वहाँ से डाउनलोड करना हर किसी के लिए आसान नहीं होगा।
जिन लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं है और जो इंटरनेट एक्सेस नहीं कर सकते हैंस्थानीय प्रशासन की तरफ से ऐसे परिवारों के बच्चों को छोटा-मोटा एजुकेशनल किट बनाकर देना चाहिए। जिससे वो बच्चे भी कुछ न कुछ सीख सके। इसके अतिरिक्त रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से दूर-दराज़ के इलाक़ों तक पहुंचा जा सकता है। इन पर रोज़ किसी निश्चित अवधि के लिए मज़ेदार और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम प्रसारित किए जाने चाहिए जो विद्यार्थियों के ज्ञान में वृद्धि करे। हर राज्य को रेडियो और दूरदर्शन की क्षमताओं का लाभ उठाना चाहिए।  
हमारे देश में शिक्षा ग्रहण कर रहे करीब 26 करोड़ छात्र हैं। ऑनलाइन कक्षाओं के ज़रिए शहरों में स्कूलों के नए एकेडमिक सेशन शुरू कर दिये गए हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर और ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले छात्र इस सुविधा से वंचित हैं।
किसी को भी मालूम नहीं है कि देश कोरोना से ख़तरे से निकलकर कब सामान्य ज़िंदगी में आएगाऐसे में अब सरकार के सामने ये चुनौती है कि वो स्कूल के आर्थिक आधार पर कमज़ोर छात्रों को अन्य छात्रों के समकक्ष कैसे साथ लेकर चलेगी।

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