बुधवार, 8 अप्रैल 2020

प्रकृति के प्रांगण में निरंकुश मानव पर कोरोना का प्रकोप

प्रकृति के प्रांगण में निरंकुश मानव पर कोरोना का प्रकोप       
Dr.Rajesh K Chauhan
आज दुनियां का हर देश कोरोना महामारी के सामने त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है। दुनिया को अपनी मर्जी से किसी भी दिशा में मोड़ने की ताकत रखने वाले बड़े से बड़े सूरमा भी चूहे बनकर अपने-अपने बिलों में दुबक कर बैठने को मजबूर हैं। विश्व का सबसे शक्तिशाली प्राणी आज सामान्य दृष्टि से नज़र भी न आने वाले छोटे से वायरस की वजह से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।  
कोरोना नामक दैत्य ने मनुष्य के जल-थल और नभ सभी मार्ग अवरुद्ध कर दिए हैं। चारों तरफ एक सन्नाटा सा पसर गया है। एक मानव दूसरे मानव से डर रहा है। गले लगाकर अभिवादन और हाथ मिलाना तो दूर अब नमस्ते भी तीन मीटर दूर से की जा रही है। गलियां सूनी हो गई हैं और बाज़ार मानव विहीन दृष्टिगोचर हो रहे हैं। हां, यदा-कदा जंगली जानवर शहरों की रौनक अवश्य बढ़ा रहे हैं। जनेश्वर, अंबेडकर जैसे बड़े-बड़े पार्क, शिमला, मनाली, मसूरी, एलिफेंटा, खंडाला, आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला, मैसूर का किला, जयपुर का हवामहल, असम में चाय के बाग़ान, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सब के सब पर्यटन स्थल सैलानियों को तरस रहे हैं। मंदिर, मस्ज़िद, गिरजाघर और गुरुद्वारे भी भक्त विहीन बंद पड़े हैं। शॉपिंग मॉल, सिनेमा घर, रेस्टोरेंट्स, चाय वाला, चाट वाला, पान वाला, बड़े-बड़े उद्योग धंधे सभी इस कोरोना रूपी दानव के रवाना होने का इंतजार कर रहे हैं।

छोटे-छोटे बच्चे और विद्यार्थी अक्सर स्कूल/कॉलेज में छुट्टी होने का इंतजार करते हैं और छुट्टियां मिल जाने पर खुशियां मनाते हैं लेकिन आज के संदर्भ में स्कूल के बच्चे भी विद्यालय खुलने की दुआ मांग रहे हैं। घर की चारदीवारी में हर कोई घुटन महसूस कर रहा है। हर कोई इस क़ैद से जल्द से जल्द आज़ादी चाहता है किंतु प्रकृति के इस महामारी रूपी दंड के सामने सब विवश हैं। लगता है प्रकृति मानव द्वारा किए गए अप्राकृतिक अत्याचारों का बदला ले रही हो।

जब-जब मानव ने अपनी दूषित मानसिकता के कारण प्रकृति के साथ अत्यधिक छेड़छाड़ की है तब-तब प्रकृति ने महामारी या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा से प्रकृति को संतुलित करने की कोशिश की है। हड़प्पा, सुमेरिया, बेबिलोनिया, मिस्त्र, असीरिया, माया आदि सुप्राचीन व सुसंस्कृत सभ्यताएं इसका उदाहरण हैं। इन सभ्यताओं के पतन का कारण भी महामारी, बाढ़, भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएं ही सर्वमान्य हैं। वास्तव में पृथ्वी "प्रकृति संतुलन" के सिद्धांत पर टिकी हुई है। किसी भी कारण जब धरती का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है तो प्रलय निश्चित है।


वर्तमान समय में विश्व का कोई भी देश कोरोनावायरस के संक्रमण से अछूता नहीं है। हर तरफ हड़कंप मचा हुआ है। लोग घरों में कै़द हैं। यातायात के साधन रेल, जहाज, बस, रिक्शा सब के सब पूरी तरह बंद कर दिए गए हैं। अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। प्रकृति के प्रांगण में निवास कर रहे प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपने अस्तित्व को लेकर डर समा चुका है। ऐसे में कुछ योद्धा हैं जो दिन-रात हर परिस्थिति में इस महामारी के विरुद्ध अनवरत लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस सभ्य समाज में विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी इस लड़ाई के असली रणबांकुरे जिनमें डॉक्टर, नर्सेस, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, पुलिस व सेना के जवान तथा समाज का तीसरा चक्षु समस्त मीडिया कर्मी शामिल हैं। यह जांबाज अपनी जान की परवाह न करते हुए निरंतर मानवता की सेवा कर रहे हैं। दुनियां के ज्यादातर देशों में कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए एकमात्र कारगर शस्त्र लॉकडाउन का प्रयोग किया जा रहा है। हमारे देश में भी अधिकतर लोग लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं। किंतु कुछ मानवता के दुश्मन अपनी अज्ञानता का परिचय भी दे रहे हैं। उन्हें न तो अपनी जान की परवाह है और ना ही अन्य लोगों की। सरकार के आदेशों का पालन करना ऐसे लोगों को अपनी शान के खिलाफ लगता है। ऐसे देशद्रोहियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने की आवश्यकता है।
संकट काल में अव्यवहारिक, अपरिचित शत्रु से चल रही लड़ाई के दौरान हमारे योद्धाओं का मनोबल कम नहीं होना चाहिए। उच्च मनोबल कठिनतम कार्य को भी सहजता से करने की शक्ति प्रदान करता है। मनोबल मानसिक तत्व या क्षमताओं जैसे उत्साह, अनुशासन, आशा, साहस तथा विश्वास ख्याति का प्रतीक है। हम सभी नागरिकों का यह प्रथम कर्तव्य बनता है कि इस विकट परिस्थिति में हम अपना तथा अन्य साथियों का मनोबल बढ़ाते रहें। सकारात्मक सोच के साथ सरकार के आदेशों व नियमों का पालन कर एक-दूसरे की हर संभव मदद करें।
संगीतकार गीत-संगीत के माध्यम से, अभिनेता अभिनय द्वारा, कवि कविताओं से, विचारक अपने सुंदर विचारों द्वारा, धर्म के ज्ञाता धार्मिक सुविचारों के माध्यम से, चित्रकार चित्रों द्वारा तथा लेखक अपनी कलम के माध्यम से घर पर रहकर ही सकारात्मक प्रेरणादायक विचारों से अपने-अपने स्तर पर एक-दूसरे को इस महामारी के प्रति जागृत कर देशवासियों के मनोबल को बढ़ाने में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभा सकते हैं। इसके उदाहरण देश के हर कोने से प्राप्त भी हो रहे हैं।

रोटी, कपड़ा और मकान हर व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकता है कपड़ा और मकान न भी मिले पर भरपेट दो वक्त का भोजन हर व्यक्ति को मिलना बड़ी चुनौती है। आधिकारिक आंकड़े तथा विश्व बैंक की  रिपोर्ट के अनुसार भारत के लगभग 37% लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर कर रहे हैं। इस स्थिति में हर भारतीय का कर्तव्य बनता है कि देश में कोई भी नागरिक भूख के कारण न मरे। बड़े-बड़े उद्योगपतियों, नेता-अभिनेता, समृद्ध व्यापारियों तथा देश के समस्त धार्मिक संस्थानों को आगे आकर गरीब लोगों की दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना चाहिए। इस पावन कार्य की सफलता के लिए हर किसी सक्षम नागरिक को अपनी क्षमता के अनुसार जन सेवा करनी चाहिए। सब कुछ सरकार पर छोड़ देना भी गलत होगा। धर्म, वर्ग, जाति, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर मानवता की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आगे आना पड़ेगा।
हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी देश का मनोबल बढ़ाने में अविस्मरणीय भूमिका निभा रहे हैं। कभी जनता कर्फ्यू का आयोजन कर रियल योद्धाओं के सम्मान में ताली, थाली, घंटी, शंख आदि बजवा कर तथा कभी एकजुटता का संदेश देने के लिए दीया, मोमबत्ती, टॉर्च, मोबाइल फ्लैश लाइट आदि जलवा कर विश्व को यह संदेश दे रहे हैं कि भारत के 137 करोड़ लोग देश पर आए संकट का सामना करने के लिए एकजुटता के साथ एक दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर सीना तान कर खड़े हैं। गर्व की बात यह है कि प्रधानमंत्री के प्रयासों की सराहना तथा अनुसरण दुनियां के अन्य देश भी कर रहे हैं। विपत्ति के इस काल में घबराहट की जगह संयमित तथा अनुशासित रहकर हमें इस महामारी के विरुद्ध एकजुटता तथा समझदारी का परिचय देना होगा। प्रकृति के साथ हो रही अनावश्यक छेड़छाड़ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर, आपसी सद्भावना के नारे को बुलंद कर ही हम प्रकृति के प्रांगण में स्वच्छ, स्वच्छंद तथा आनंदमई जीवन की नींव रख सकते हैं।
कोरोना को हराना है, घर से बाहर नहीं जाना है।


                                                                                 

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