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शान्ति के अग्रदूत थे नेल्सन मंडेला

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शान्ति के अग्रदूत थे नेल्सन मंडेला                        ‌‌‌‌‌‌                                                                                                                                      - डाॅ.राजेश के चौहान एक व्यक्ति जिसके विचारों को 67 वर्षों तक नज़र अंदाज़ कर दरकिनार किया गया, उसे डराया-धमकाया गया, अमानवीय यातनाएं दी गईं, देशद्रोही करार दिया गया लेकिन फिर भी वह अडिग, अविचलित, अनवरत अपने मार्ग पर चलता रहा और एक दिन दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति बना और विश्वपटल पर शान्ति का अग्रदूत बनकर उभरा। रंगभेद के खिलाफ उनके द्वारा स्थापित ...

समाज के शिल्पकार की बढ़ती चुनौतियां

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 समाज के शिल्पकार की बढ़ती चुनौतियां - डॉ.राजेश के चौहान प्रत्येक माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा बड़ा होकर एक सफल व्यक्ति बने। बच्चे के धरती पर अवतरण से पहले ही माता-पिता उसके भविष्य के निर्माण में जुट जाते हैं। हर एक मां-बाप इसी उधेड़बुन में लगा होता है कि उनका बालक कम उम्र में अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित कर बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या कोई बड़ा अधिकारी  बने। अल्पायु में ही बच्चे को किसी शिक्षण संस्थान या किसी शिक्षक की शरण में भेज दिया जा रहा है। प्रत्येक बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर या बड़ा अधिकारी बनाना तो संभव नहीं है लेकिन हर बालक/बालिका को अच्छा नागरिक बनाना प्रत्येक माता-पिता और शिक्षक का परम् कर्तव्य है।  आधुनिकता की अंधी दौड़ में समाज के वास्तविक शिल्पकार 'शिक्षक' की ज़िम्मेदारी और चुनौतियां बहुत बढ़ गई हैं। जो स्थान अस्पताल में डॉक्टर का है वही स्थान शिक्षण संस्थान में शिक्षक का है। शिक्षक ही शिक्षा और शिष्य के उद्देश्य पूरे करते हैं। इसलिए किसी भी शिक्षा योजना की सफलता या असफलता शिक्षा क्षेत्र के सूत्रधार शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है। ...

दिशाहीन युवा - बड़ी चुनौती

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  संस्कार विहीन युवा समाज के लिए हानिकर -डॉ. राजेश के चौहान न्यू शिमला पुरातन समय से मानव जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व रहा है। मानव समाज को संस्कारों ने परिष्कृत और शुद्ध किया तथा उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पूर्ण किया। व्यक्तित्व निर्माण एवं अनेक सामाजिक समस्याओं का निदान भी इन्हीं में है। अच्छे संस्कार पशुता को भी मनुष्यता में परिणत कर देने की क्षमता रखते हैं। संस्कार संस्कृति को जीवित रखते हैं। संस्कार की मोहर जीवन के सिक्के को बहुमूल्य बना देती है। संस्कार विहीन बालक का जीवन अंधकारमय हो जाता है। संस्कारों के बीज विशाल वटवृक्ष को जन्म देते हैं। जिस प्रकार कोरे कागज़ का कोई मूल्य नहीं, उसी प्रकार संस्कार विहीन व्यक्ति का जीवन शून्य होता है।   वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्कार विहीन युवा चिंता और परिचर्चा का विषय बन कर उभरा है। हमारी साक्षरता दर प्रतिशतता जितनी तेज़ी से बढ़ रही है उसी गति से संस्कारों का ह्रास भी दृष्टिगोचर है। माता-पिता अपने बच्चों को महंगे से महंगी शिक्षा प्रदान करवा रहे हैं लेकिन बिना किसी कीमत के मिलने वाले 'संस्कार नहीं दिला पा रहे...