शनिवार, 16 जुलाई 2022

समाज के शिल्पकार की बढ़ती चुनौतियां

 समाज के शिल्पकार की बढ़ती चुनौतियां

- डॉ.राजेश के चौहान

प्रत्येक माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा बड़ा होकर एक सफल व्यक्ति बने। बच्चे के धरती पर अवतरण से पहले ही माता-पिता उसके भविष्य के निर्माण में जुट जाते हैं। हर एक मां-बाप इसी उधेड़बुन में लगा होता है कि उनका बालक कम उम्र में अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित कर बड़ा होकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या कोई बड़ा अधिकारी  बने। अल्पायु में ही बच्चे को किसी शिक्षण संस्थान या किसी शिक्षक की शरण में भेज दिया जा रहा है। प्रत्येक बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर या बड़ा अधिकारी बनाना तो संभव नहीं है लेकिन हर बालक/बालिका को अच्छा नागरिक बनाना प्रत्येक माता-पिता और शिक्षक का परम् कर्तव्य है। 

आधुनिकता की अंधी दौड़ में समाज के वास्तविक शिल्पकार 'शिक्षक' की ज़िम्मेदारी और चुनौतियां बहुत बढ़ गई हैं। जो स्थान अस्पताल में डॉक्टर का है वही स्थान शिक्षण संस्थान में शिक्षक का है। शिक्षक ही शिक्षा और शिष्य के उद्देश्य पूरे करते हैं। इसलिए किसी भी शिक्षा योजना की सफलता या असफलता शिक्षा क्षेत्र के सूत्रधार शिक्षकों की कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है। इस तथ्य को और स्पष्ट करने के लिए प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों का उदाहरण दिया जा सकता है जिन्हें विश्व में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि प्राथमिक स्कूल के शिक्षक छोटे बच्चों को ज्ञान और जीवन के मूल्य उन्हें समझ आने लायक भाषा में प्रदान करते हैं ताकि इन छोटे बच्चों का भविष्य सुरक्षित और सुनहरा बन सके। आज के बच्चे कल का भविष्य हैं तो बच्चों को आज अच्छी शिक्षा देने का अर्थ कल देश के सुनहरे भविष्य का निर्माण करना है और इस कार्य में प्राथमिक स्कूल के शिक्षक अनवरत सकारात्मक भूमिका निभाते हैं।


 माता-पिता का स्थान कोई नहीं ले सकता, उनका कर्ज़ हम किसी भी रूप में नहीं उतार सकते, लेकिन शिक्षक ही हैं जिन्हें हमारी संस्कृति में माता-पिता के समान दर्ज़ा दिया जाता है।

 प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा भी छात्र/ छात्राओं के व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाती है और जब हम किसी स्कूल की बात करते हैं तो वास्तव में उस स्कूल में कार्यरत विभिन्न विषयों के शिक्षक ही उस स्कूल में पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों को अर्थपूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं। जब अच्छी शिक्षा देने की बात आती है तो विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले सभी शिक्षक इसके प्रणेता नज़र आते हैं। शिक्षा, शिक्षक और शिष्य के आत्मीय और निकटतम सम्बन्ध को कभी तोड़ा नहीं जा सकता है।

 विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए एक सजग, उदात्त चरित्र, धार्मिक नैतिकता परिपूर्ण शिक्षक की आवश्यकता है ताक़ि हमारी आने वाली पीढ़ी को हम ऐसे भारतीय नागरिक बनाने में सफल हो सकें जो विश्व में भारत का नाम रोशन कर सकें और पुनः भारत को  ‘विश्वगुरु’ की उपाधि प्राप्त करवा सके।

 किसी भी देश का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता अगर राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी नहीं होगी तो वहां की प्रतिभा दब कर रह जाएगी बेशक किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति बेकार हो, लेकिन एक शिक्षक बेकार शिक्षा नीति को भी अच्छी शिक्षा नीति में बदलने में सक्षम होता है।

 वर्तमान समय में शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाज़ारीकरण हो गया है। शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाज़ारीकरण देश के समक्ष बड़ी चुनौती है। पुराने समय में भारत में शिक्षा कभी व्यवसाय या धंधा नहीं थी। गुरु एवं शिक्षक ही वो हैं जो एक शिक्षार्थी में उचित आदर्शों की स्थापना करते हैं और सही मार्ग दिखाते हैं। 

 विद्यार्थी को अपने शिक्षक या गुरु प्रति सदैव आदर और कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए। किसी भी राष्ट्र का भविष्य निर्माता कहे जाने वाले शिक्षक का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ हमको सही आदर्श मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि प्रत्येक शिक्षार्थी के सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के द्वारा रखी जाती है।

 आज का समय है आधुनिकता का, वैज्ञानिकता का, व्यस्तता का, अस्थिरता का, जल्दबाज़ी का। आज का विद्यार्थी जीवन भी इन्हीं समस्याओं से ग्रसित है। आज का विद्यार्थी पहले की तरह सहज, शांत और धैर्यवान नहीं ही रह गया है क्योंकि आगे बढ़ना और तेज़ी से बढ़ना उसकी नियति, मजबूरी बन गई है। वह इसलिए कि यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो ज़िंदगी की दौड़ में वह पीछे रह जायगा। तो यह वक्त का तकाज़ा है। ऐसे समय में विद्यार्थी जीवन को एक सही, उचित, कल्याणकारी एवं दूरदर्शी दिशा-निर्देश देना एक शिक्षक का पावन कर्तव्य है।

  वर्तमान समय में विद्यार्थियों के संदर्भ में एक शिक्षक की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। उसके अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे आज-कल विद्यार्थी बहुत ही सजग, कुशल होने के साथ-साथ बहुत अस्थिर और अविश्वासी भी होते जा रहे हैं। इसके कारण चाहे जो कुछ भी हो परंतु एक शिक्षक को आज के ऐसे ही विद्यार्थियों को उचित प्रशिक्षण, सदुपयोगी शिक्षण और सटीक कल्याणकारी, दूरगामी मार्गदर्शन प्रदान करते हुए उन्हें भावी देश के कर्णधार, ज़िम्मेदार देशभक्त नागरिकों में परिणित करना है।

 शिक्षक को न केवल बच्चों का बौद्धिक, नैतिक, मनोवैज्ञानिक ,शारीरिक विकास करना है अपितु सामाजिक, चारित्रिक, एवं सांवेगिक विकास करना भी उसी का कर्तव्य है।

 शिक्षक का कार्य अनवरत शिक्षा देते रहना है इसलिए वह किसी विशेष प्रांगण, किसी विशेष समय अंतराल, किसी विशेष सहायक सामग्री की अपेक्षा नहीं रखता। एक शिक्षक तो बिना किसी मांग के, बिना कहे अपना सर्वस्व ज्ञान अनुभव में डुबोकर प्रदान करने के लिए सदैव समाज के सामने तत्पर रहता है।

पुरातन समय में शिक्षक का स्थान सर्वोच्च तथा बालक का स्थान गौण था परन्तु आज स्थिति बदल गयी है। आज के समय में बालक शिक्षा का केन्द्र माना जाता है। शिक्षाशास्त्री बाल केन्द्रित शिक्षा पर बल देते हैं। यद्यपि आज शिक्षा में बालक का स्थान मुख्य है फिर भी शिक्षक का उत्तरदायित्व, उसका महत्व कम नहीं आंका जा सकता। शिक्षक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया चल सकती है इस बात की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। योग्य अध्यापकों के बिना शिक्षण प्रक्रिया भली-भाँति नहीं चल सकेगी। आज के  शिक्षक के लिए केवल अपने विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है वरन् बच्चों को समझने के लिए उसे बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान होना भी परम् आवश्यक है।


 वर्तमान संदर्भ में शिक्षक कार्य केवल अपने व्यक्तित्व से बालकों के आकर्षित करना ही नहीं है वरन् इसके साथ-साथ ऐसे वातावरण का निर्माण करना भी है जिसमें रहकर बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें तथा समाज के कल्याण और राष्ट्र की उन्नति एवं विकास में भी अपना योगदान दे सकें। यही कारण है कि आज दुनियां के सभी देश शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक के महत्व और योगदान को निर्विरोध स्वीकार करते हैं। आज शिक्षक को अपने विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा प्रदान करने की आवश्यक्ता है जो कल्याणकारी हो, दूरगामी हो, प्रायोगिक  हो, धनोपार्जन में सहायक और संस्कारयुक्त समाज के निर्माण करने में सक्षम हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मेहनत और लगन जीवन की असली पूँजी- डॉ. राजेश चौहान

  सफलता हर व्यक्ति की आकांक्षा है लेकिन इसे प्राप्त करना केवल उन लोगों के लिए संभव है जो कठिन परिश्रम को अपनी आदत बना लेते हैं। यह जीवन का ऐ...