रविवार, 19 मार्च 2023

संगीत को समर्पित व्यक्तित्व - प्रो.नंदलाल गर्ग - Dr. Rajesh K Chauhan

संगीत को समर्पित व्यक्तित्व - प्रो.नंदलाल गर्ग ✍

डॉ.राजेेेश चौहान
स्वतंत्र लेखक  

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्राप्त कर प्रोफ़ेसर नंदलाल गर्ग ने हिमाचल के लिए एक और उपलब्धि दर्ज़ की है। 90 वर्षीय प्रो.गर्ग को संगीत विरासत में मिला है। इस उम्र में भी ये अपने कठिन परिश्रम से विरासत में मिली कलानिधि को संजोए रखने में प्रयासरत हैं। इनका जन्म ज़िला शिमला के धामी में हुआ था तत्कालीन पहाड़ी रियासत धामी में हुआ था। ये धामी दरबार के व्यवसायिक कलाकारों के परिवार से संबंध रखते हैं। हिमाचल के धामी घराने का वैशिष्ट्य इनके गायन-वादन में स्पष्टतया दृष्टिगोचर है। इनके पूर्वज पहाड़ी रियासतों के बाहर कला प्रदर्शन करने में विश्वास नहीं रखते थे साथ ही उस समय यातायात के साधनों का अभाव होने के कारण घराने का नाम अधिकतर पहाड़ी रियासतों तक ही सीमित रहा। इनके घराने में कई ख़्याति प्राप्त गायक, सितार वादक, तबला वादक एवं मृदंग वादक हुए। मौलक राम, घूम राम, टी.आर. कलावंत, उमद, कुमद, वज़ीर आदि धामी घराने के प्रसिद्ध कलाकार रहे हैं। इस घराने के टी.आर. कलावंत ने गायन की शिक्षा महान शिक्षा विभूति पं. विष्णु दिगंबर जी से प्राप्त की तथा इनके पिताजी तथा चाचा आदि को संगीत का प्रशिक्षण दिया।
प्रो.गर्ग ने संगीत की शिक्षा अपने पूज्य दादाजी एवं चाचा से प्राप्त की। दुर्भाग्यवश बाल्यकाल में ही इनके पिताजी का देहान्त हो गया। पिताजी के देहांत के तत्पश्चात इनके चाचा ने इन्हें संगीत की तालीम दी। इन्होंने सर्वप्रथम अपने चाचा से गायन एवं तबला वादन की शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात अपने घराने की वादन शैली के अनुसार सितार सीखी।


 व्यवसायिक शिक्षा के अन्तर्गत इन्होंने संगीत प्रवीण (सितार) और संगीत प्रभाकर (गायन एवं नृत्य) तक शिक्षा प्राप्त की।  शैक्षणिक योग्यता प्राप्त करने के साथ-साथ इन्होंने अपना अधिकतर समय संगीत साधना में व्यतीत किया। इन्होंने गायन और वादन में अपने दादा व चाचाओं से बहुत ही दुर्लभ बंदिशें सीखी। ये 1955 से आकाशवाणी तथा 1966 से दूरदर्शन के कलाकार हैं। ये कई मर्तबा आकाशवाणी दिल्ली के राष्ट्रीय कार्यक्रम में भाग ले चुके हैं। ये 1960 में सरकारी सेवाओं में आए। 1972 में इनकी नियुक्ति संगीत विभाग हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में हुई तथा 1993 में सेवानिवृत्त हुए। इन्होंने अपने 33 वर्ष के अध्यापन काल में एम.ए और एम.फिल. में अनेकों विद्यार्थियों को शिक्षित किया। इनके निर्देशन में बहुत से विद्यार्थियों ने शोध कार्य भी किए हैं। वर्तमान समय में इनके अनेकों शिष्य विभिन्न संस्थाओं में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं जैसे- अध्यापक, प्राध्यापक, आकाशवाणी, दूरदर्शन कलाकार, तथा कला संस्कृति एवं लोक संपर्क विभाग इत्यादि।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्रो.नंदलाल विभिन्न मंचों पर अनेकों कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं। ये अपने सितार वादन की प्रस्तुतियां  देश-विदेशों के अनेक प्रतिष्ठित मंचों पर दे चुके हैं। अमेरिका, कनाडा, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, जम्मू- कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचार इनके मंच प्रदर्शन की ख्याति के गवाह हैं।


उत्तर क्षेत्रीय संस्कृति विभाग पटियाला द्वारा सन् 1989 में एक संगीत गोष्ठी आयोजित की गई थी जिसमें पड़ोसी देश पाकिस्तान के कलाकारों ने शास्त्रीय गायन प्रस्तुत किया था। इस कार्यक्रम में इन्हें विशेष तौर पर सितार वादन के लिए आमंत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम में इनके सितार वादन की श्रोताओं एवं समाचार पत्रों के द्वारा बहुत सराहना की गई थी।
कुछ समय पूर्व इन्होंने दिल्ली में सितार वादन अमेरिका के कलाकारों तथा देश के जाने-माने कलाकारों के सम्मुख प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति की भूरी भूरी प्रशंसा हुई। ग्रीक के संगीतकारों ने इनका सितार वादन रिकॉर्ड भी किया और विदेश में संगीत प्रेमियों को सुनाया।
इनका सितार तथा अन्य भारतीय वाद्ययंत्रों का वादन उदाहरण सहित आकाशवाणी दिल्ली द्वारा रिकॉर्ड किया गया तथा आकाशवाणी दिल्ली से प्रसारित किया गया। इसके अतिरिक्त प्रो. गर्ग अपना सितार वादन विभिन्न उत्सवों संगीत समारोहों, सेमिनारों एवं महफिलों में प्रस्तुत कर चुके हैं।
इन्होंने बहुत से वाद्य वृंदों का निर्माण भी किया है। इनमें शास्त्रीय संगीत पर आधारित एवं लोक संगीत पर आधारित वाद्य वृंद रहे हैं। इनमें से कुछ वाद्य वृंद इनके निर्देशन में जाने-मानें वादकों द्वारा भी बजाए गए हैं। इनके द्वारा निर्मित एवं निर्देशित बहुत से वृंद वादन हिमाचल प्रदेश के युवा समारोहों में भी बजाए जा चुके हैं।  ये वृंद वादन का प्रदर्शन राष्ट्रपति के सम्मुख भी कर चुके हैं। इनके संगीत अनेक लेख और गीत-स्वरलिपि सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे-हिमप्रस्थ, पंचजगत, हिमवाणी एवं हिम-प्रताप में भी प्रकाशित हुए हैं। शास्त्रीय संगीत के अतिरिक्त लोक संगीत, लोकनाट्य, करियाला एवं कविता लेखन में भी इनका अच्छा अनुभव है। इन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं जिनमें से कुछ प्रकाशित हो चुकी हैं और कुछ प्रकाशन के लिए तैयार हैं।
जिनमें से प्रमुख हैं - हिमाचल के प्राचीनतम संगीत वाद्य (संगीत नाटक अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित), द्रुत गति के प्रकार,  हिम लोक गीत,  करयाला लोक नाटक इत्यादि। इसके अतिरिक्त इन्होंने हिंदी नाटक भी लिखे हैं जिनका विभिन्न मंचों पर मंचों हो चुका है। इनमें से प्रमुख हैं- दूसरी शादी, जागीरदार, अछूत का भूत, छल-कपट, स्वांग करियाला इत्यादि।
इन्होंने बहुत से हिंदी और पहाड़ी गीत भी विभिन्न पहलुओं को लेकर लिखे हैं। इन गीतों को स्वरलिपि बद्ध कर पुस्तक में भी प्रकाशित किया गया है। इनके द्वारा रचित रचनाएं हिमाचल के विभिन्न कलाकारों द्वारा आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से प्रसारित की जा चुकी हैं। इन्होंने पारंपरिक पहाड़ी गीतों की कैसेट भी बनाई जो कि जनमानस में काफी प्रसिद्ध हुई।
संगीत नाटक अकादमी द्वारा इनके निर्देशन में हिमाचली लोकनाट्य करियाला पर फ़िल्म भी तैयार करवाई गई। संगीत नाटक अकादमी द्वारा ही "शिव डमरु" एवं "शिव गुफाएं"  नामक दो चलचित्र भी प्रोफेसर नंदलाल गर्ग द्वारा निर्मित एवं निर्देशित करवाए गए। इसके अतिरिक्त उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र पटियाला द्वारा निर्मित दो चल चित्रों का निर्देशन भी इन्होंने किया जिसमें सौ से अधिक कलाकारों ने भाग लिया था। अकादमी द्वारा इनके निर्देशन में हिमाचल के प्राचीनतम वाद्ययंत्रों पर वाद्य वृंद तैयार करवाया गया जिसकी रिकॉर्डिंग अकादमी के पास सुरक्षित है। इनका जीवन वृत्त और संगीत के क्षेत्र में योगदान विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में छप चुका है। इन्हें चौमुखी कलाकार के नाम से जाना जाता है।
इनका मानना है कि संगीत कला को उपाधियों तथा अंकों के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए तथा महान कलाकारों की सेवाएं भी संस्थाओं में ली जानी चाहिए। कलाकार को स्वर, लय तथा ताल का ज्ञान होना चाहिए और संगीत के विद्यार्थी में अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, समर्पण होना अनिवार्य है।
चहुंमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार प्रोफ़ेसर नंदलाल गर्ग ने संगीत कला में पारंगत होने के लिए कठिन साधना और नियम से घंटों रियाज़ किया है। ये कहते हैं कि रियाज़ के बिना कोई भी किसी भी कला में निपुण नहीं हो सकता। हर कला में पारंगत होने के लिए कठोर साधना की आवश्यकता होती है। इनके कठिन परिश्रम की ही बदौलत ये संगीत की हर विधा में पारंगत हैं चाहे वह गायन हो, वादन हो या नृत्य हो।
प्रो.गर्ग यूनेस्को तथा संगीत नाटक अकादमी के सदस्य रह चुके हैं। हिम कलाकार संगम के अध्यक्ष तथा विभिन्न संगीत संस्थाओं से इनका नाता रहा है। यह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने हिमाचल प्रदेश के लोक संगीत को दूरदर्शन तक पहुंचाया और हिमाचल के लोक संगीत का देश विदेश में प्रचार-प्रसार किया। इन्हें पहले ऐसे हिमाचली कलाकार होने का गौरव भी प्राप्त है जो वाद्यवृंद के रचनाकार भी रहे हैं। इन्होंने हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक लोक वाद्यों का अध्ययन किया है। यह नगाड़ा, ढोल, बांसुरी, सितार, तबला, हारमोनियम, वायलिन इत्यादि वाद्यों को बजाने में निपुण हैं। यह हिमाचल के पहले कलाकार हैं जिन्होंने आकाशवाणी शिमला के खुलने के लिए हिमाचली वाद्ययंत्रों पर लोकधुन तैयार की थी जिसे कार्यक्रम शुरु करने से पहले परिचयात्मक धुन के रूप में आकाशवाणी शिमला द्वारा बजाया जाता था।  
प्रो.नंदलाल गर्ग इस उम्र में भी अथक, अनवरत संगीत और लोक-संस्कृति की सेवा में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। छोटे से गांव से निकलकर देश-विदेश में हिमाचल का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रो. गर्ग को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिलना हर हिमाचली के लिए गौरव की बात है। युवाओं को इनके जीवन से  बिना किसी लालच के अनवरत अपने क्षेत्र में कार्य करने की प्ररेणा लेनी चाहिए। 


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