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जन्माष्टमी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मायने - Dr. Rajesh k Chauhan

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  जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन कन्हैया का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म, जिन्हें विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के नाश के लिए हुआ था। उनके जीवन और शिक्षाओं का प्रभाव न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन देश के सभी कृष्ण मंदिरों को भव्य और शानदार तरीके से सजाया जाता है। भक्तों की भीड़ इन मंदिरों में पूजा और दर्शन करने के लिए इस दिन उमड़ पड़ती है। कुछ लोग अपने घरों में भी कान्हा की मूर्ति घर लाकर भव्य तरीके से पूजा-अर्चना करते हैं और उपवास रखते हैं। बाज़ारों में खासी रौनक रहती है।    जन्माष्टमी के अवसर पर बच्चों के लिए कई विशेष गतिविधियाँ और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों और धार्मिक संस्थानों में बच्चों को कृष्ण और राधा की पोशाक पहनाई जाती है और वे भगवान कृष्ण के जीवन से संबंधित नाटकों और झांकी में भाग लेते हैं। अनेक स्थानों पर ...

नम्बरों की रेस में पिछड़ता कौशल : डॉ. राजेश चौहान

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  नम्बरों की रेस में पिछड़ता कौशल  डॉ. राजेश चौहान  स्वतन्त्र लेखक  विद्यालय जीवन हमारे जीवन का वह महत्वपूर्ण चरण है, जहां एक बच्चे की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास की नींव रखी जाती है। यह वह समय होता है जब बच्चे में न केवल अकादमिक ज्ञान बल्कि उसकी व्यक्तिगत पहचान और क्षमता भी आकार लेती है। परंतु, हमारी शिक्षा प्रणाली में कई बार बच्चों की स्वाभाविक प्रतिभा और रुचियों की अनदेखी हो जाती है। विद्यालय स्तर पर कौशल (स्किल) आधारित शिक्षा को दबा देना या सीमित करना एक बड़ी समस्या है, जो न केवल छात्रों की रचनात्मकता और व्यक्तिगत विकास को बाधित करता है बल्कि उनके भविष्य के करियर और आत्मनिर्भरता को भी प्रभावित करता है। कौशल-आधारित शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह छात्रों में व्यावहारिक ज्ञान, समस्याओं को हल करने की क्षमता, और विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास करना है। दुर्भाग्य से, पारंपरिक शैक्षणिक ढांचे में अक्सर इन पहलुओं की अनदेखी की जाती है।  विद्यालयों में पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली का मुख्य फोकस अब भी रटने और परीक्षा परिणामों प...

बेटियों की सुरक्षा: देश की बड़ी चिंता - Dr. Rajesh k Chauhan

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  बेटियों की सुरक्षा: देश की बड़ी चिंता भारत में जहां नारी को देवी का स्वरूप माना जाता है, वहीं दूसरी ओर बेटियों की सुरक्षा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। बेटियों के प्रति बढ़ती हिंसा और अपराध न केवल हमारे समाज की असंवेदनशीलता को दर्शाते हैं, बल्कि यह हमारे सामाजिक ताने-बाने की कमजोरी को भी उजागर करते हैं। यह विषय आज के समय में इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है।  हाल ही में कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में द्वितीय वर्ष की स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर मौमिता देबनाथ की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के बाद 21 मार्च, 2013 को बलात्कार के कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए और इसे और भी सख्त किया गया। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 में बलात्कार को फिर से परिभाषित करते हुए बलात्कार के दोषियों के लिए सजा में बढ़ोतरी के साथ साथ बार बार बलात्कार के मामले में आरोपी के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया। इस...