जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन कन्हैया का जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म, जिन्हें विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के नाश के लिए हुआ था। उनके जीवन और शिक्षाओं का प्रभाव न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस दिन देश के सभी कृष्ण मंदिरों को भव्य और शानदार तरीके से सजाया जाता है। भक्तों की भीड़ इन मंदिरों में पूजा और दर्शन करने के लिए इस दिन उमड़ पड़ती है। कुछ लोग अपने घरों में भी कान्हा की मूर्ति घर लाकर भव्य तरीके से पूजा-अर्चना करते हैं और उपवास रखते हैं। बाज़ारों में खासी रौनक रहती है।
जन्माष्टमी के अवसर पर बच्चों के लिए कई विशेष गतिविधियाँ और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। स्कूलों और धार्मिक संस्थानों में बच्चों को कृष्ण और राधा की पोशाक पहनाई जाती है और वे भगवान कृष्ण के जीवन से संबंधित नाटकों और झांकी में भाग लेते हैं। अनेक स्थानों पर बच्चों के लिए मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन करवाया जाता है। बच्चे मटकी को फोड़ने का प्रयास करते हैं, ठीक जैसे भगवान कृष्ण ने मक्खन चुराने के लिए किया था। मंदरों में भजन और नृत्य के कार्यक्रम होते हैं, जहाँ बच्चे भगवान कृष्ण से संबंधित गीतों पर नृत्य करते हैं। बच्चों को खासतौर से जन्माष्टमी के अवसर पर माखन, मिश्री, और अन्य मिठाइयों का प्रसाद दिया जाता है, जो इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस अवसर पर भगवान कृष्ण को झूले में बिठाने की परंपरा है। बच्चे इस झूलन उत्सव का आनंद लेते हैं और भगवान को झूला झुलाते हैं। ये सारी गतिविधियाँ बच्चों को भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं के प्रति जागरूक और प्रेरित करती हैं।
प्रभु श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था। उनके माता-पिता देवकी और वासुदेव थे। कंस, जो मथुरा का राजा था और अत्याचारी था, को भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी बहन देवकी का आठवां पुत्र उसका वध करेगा। इसलिए कंस ने देवकी और वासुदेव को बंदी बना लिया और उनके सभी बच्चों को मार डाला। लेकिन जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, तो उन्हें कंस के अत्याचारों से बचाने के लिए वासुदेव ने उन्हें रात के अंधेरे में यमुना नदी पार कर गोकुल में नंद और यशोदा के घर पहुँचा दिया। वहां उनका पालन-पोषण हुआ।
श्रीकृष्ण को कन्हैया, माधव, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कन्हैया ने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं कीं, जिनमें पूतना वध, कालिय नाग दमन, और गोवर्धन पर्वत उठाने की घटनाएं प्रमुख हैं। युवावस्था में वे महाभारत युद्ध के समय अर्जुन के सारथी बने और उन्हें गीता का उपदेश दिया, जो आज भी मानवता के लिए सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है।
जन्माष्टमी का सबसे बड़ा धार्मिक महत्व यह है कि यह भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनके उपदेशों को याद करने और मनाने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन भक्त श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते हैं, व्रत रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और उनकी लीलाओं का स्मरण करते हैं। मंदिरों को सजाया जाता है और झांकियां निकाली जाती हैं, जिनमें कृष्ण के जन्म, उनकी बाल लीलाओं और महाभारत से जुड़े दृश्यों को चित्रित किया जाता है। इस पर्व के दौरान दही-हांडी का आयोजन विशेष रूप से महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में होता है। इस आयोजन में युवाओं की टोली मटकी को फोड़ने का प्रयास करती है, जो भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का प्रतीक है, जब वे गोपियों के मटके से माखन चुरा लिया करते थे।
श्रीकृष्ण के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से में से एक है उनका गीता का उपदेश। गीता के माध्यम से उन्होंने अर्जुन को कर्मयोग, भक्ति योग और ज्ञान योग का मार्ग बताया। यह उपदेश जीवन के संघर्षों में कैसे खड़ा रहा जाए, इस पर आधारित है। गीता का प्रमुख संदेश है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।भगवान कृष्ण के जीवन से हमें प्रेम, भक्ति, सेवा, और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन सिखाता है कि हर स्थिति में सत्य और धर्म का पालन करना चाहिए। चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ हों, भगवान कृष्ण का जीवन हमें धैर्य, साहस, और आत्मविश्वास से भर देता है।
आज के समय में भी जन्माष्टमी का महत्व कम नहीं हुआ है। आधुनिक समाज में जहां नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है, वहां श्रीकृष्ण के जीवन और उपदेशों का महत्व और भी बढ़ गया है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और सत्य का मार्ग कभी भी आसान नहीं होता, लेकिन वह हमेशा सही होता है। इसके अलावा, जन्माष्टमी का पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व आपसी भाईचारे और सामूहिकता का प्रतीक है। लोग एक साथ मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं, जिससे समाज में एकता और समर्पण की भावना का विकास होता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में जन्माष्टमी को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। मथुरा और वृंदावन में, जहां भगवान कृष्ण ने अपना बाल्यकाल बिताया था, जन्माष्टमी का उत्सव विशेष रूप से भव्य होता है। यहां मंदिरों में विशेष पूजा, झांकियां, और रासलीला का आयोजन किया जाता है।
महाराष्ट्र में दही-हांडी का आयोजन बहुत लोकप्रिय है, जहां युवाओं की टोली मटकी फोड़ने का प्रयास करती है। यह मटकी ऊंचाई पर बांधी जाती है और इसे फोड़ने के लिए युवाओं को पिरामिड बनाना पड़ता है। यह आयोजन न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि यह टीम वर्क और साहस का प्रतीक भी है। उत्तर भारत के मंदिरों में कृष्ण जन्म के समय मध्यरात्रि को विशेष पूजा का आयोजन होता है, और भगवान कृष्ण की मूर्ति को झूले में झुलाया जाता है। लोग व्रत रखते हैं और मध्यरात्रि के समय भगवान कृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं।
जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं का स्मरण करने का अवसर है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि कैसे हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए। श्रीकृष्ण के उपदेश और जीवन से हम प्रेम, भक्ति, सेवा, और सत्य की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। उनका जीवन हमें दिखाता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
जन्माष्टमी का पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह समाज और व्यक्ति के जीवन में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का भी संवर्धन करता है।