सोमवार, 19 अगस्त 2024

बेटियों की सुरक्षा: देश की बड़ी चिंता - Dr. Rajesh k Chauhan


 बेटियों की सुरक्षा: देश की बड़ी चिंता


भारत में जहां नारी को देवी का स्वरूप माना जाता है, वहीं दूसरी ओर बेटियों की सुरक्षा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। बेटियों के प्रति बढ़ती हिंसा और अपराध न केवल हमारे समाज की असंवेदनशीलता को दर्शाते हैं, बल्कि यह हमारे सामाजिक ताने-बाने की कमजोरी को भी उजागर करते हैं। यह विषय आज के समय में इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यह केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है।


 हाल ही में कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज में द्वितीय वर्ष की स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर मौमिता देबनाथ की बलात्कार के बाद निर्मम हत्या ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है। 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के बाद 21 मार्च, 2013 को बलात्कार के कानून में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए और इसे और भी सख्त किया गया। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 में बलात्कार को फिर से परिभाषित करते हुए बलात्कार के दोषियों के लिए सजा में बढ़ोतरी के साथ साथ बार बार बलात्कार के मामले में आरोपी के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया। इस कानून के तहत बलात्कार के एसिड हमलों, पीछा करने और लड़कियों को घूरने वालों को कड़ी सजा का प्रावधान है लेकिन बावजूद इसके महिलाओं के साथ आपराधिक मामले थमने का नाम नहीं ले रहे।


देश के विभिन्न हिस्सों से बेटियों के खिलाफ अपराधों की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। इनमें छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, दहेज हत्या, कन्या भ्रूण हत्या, और एसिड अटैक जैसी घटनाएं प्रमुख हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, देश में हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। यह न केवल कानून व्यवस्था की विफलता को दर्शाता है, बल्कि समाज में व्याप्त विकृत मानसिकता को भी उजागर करता है।



भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में बेटियों की स्थिति सदियों से चुनौतीपूर्ण रही है। उन्हें अक्सर एक बोझ के रूप में देखा जाता है, और इस मानसिकता का असर उनकी सुरक्षा पर भी पड़ता है। समाज में महिलाओं और पुरुषों के बीच व्याप्त असमानता और लैंगिक भेदभाव, बेटियों के प्रति होने वाले अपराधों का मुख्य कारण है। लड़कियों को कई बार शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा के अधिकारों से वंचित रखा जाता है, जिससे उनकी स्थिति और भी कमजोर हो जाती है।


बेटियों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन उनका प्रभावी कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती है। यौन उत्पीड़न, बलात्कार, और घरेलू हिंसा जैसे अपराधों के लिए सख्त कानून हैं, लेकिन इनकी सही तरीके से अनुपालना नहीं हो पाती। पुलिस और न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है ताकि अपराधियों को समय पर सजा मिले और पीड़िताओं को न्याय मिल सके। निर्भया केस के बाद कई कानूनों में संशोधन किए गए, लेकिन उसके बावजूद भी अपराधों में कमी नहीं आई। इसका मुख्य कारण कानून के कार्यान्वयन में ढिलाई और समाज में व्याप्त विकृत मानसिकता है।


समाज की भूमिका बेटियों की सुरक्षा में सबसे महत्वपूर्ण है। जब तक समाज में बेटियों के प्रति सम्मान और सुरक्षा की भावना विकसित नहीं होगी, तब तक केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। इसके लिए सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता है। परिवार, स्कूल, और समुदाय को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। बच्चों को बचपन से ही लैंगिक समानता, महिलाओं के प्रति सम्मान, और नैतिक मूल्यों के बारे में सिखाया जाना चाहिए। समाज में बेटियों के प्रति हो रहे अपराधों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत और साहस विकसित करना होगा।


बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। शिक्षित लड़कियां अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती हैं और खुद की रक्षा करने में सक्षम होती हैं। उन्हें आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वे किसी भी विषम परिस्थिति में खुद की रक्षा कर सकें। इसके साथ ही, लड़कों को भी महिलाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार सिखाया जाना चाहिए। शिक्षा वह माध्यम है जो समाज में बदलाव ला सकता है और बेटियों के प्रति होने वाले अपराधों को कम कर सकता है।


सरकार की भूमिका भी इस दिशा में महत्वपूर्ण है। सरकार को सख्त कानून बनाकर उनका कठोरता से अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए। साथ ही, महिलाओं और बच्चों के लिए हेल्पलाइन, शेल्टर होम, और अन्य सुरक्षा सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। सरकार को शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में बदलाव लाने के प्रयास करने चाहिए।


तकनीकी प्रगति ने सुरक्षा के नए आयाम खोले हैं। बेटियों की सुरक्षा के लिए कई तरह के मोबाइल ऐप्स और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध हैं, जो उन्हें किसी भी संकट के समय सहायता प्रदान करते हैं। लेकिन इन तकनीकों का सही उपयोग तभी संभव है जब बेटियां और उनके परिवार इसके प्रति जागरूक हों। डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना और इन तकनीकों का सही उपयोग सिखाना समय की मांग है।


बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। इसमें सरकार, समाज, परिवार, और व्यक्तिगत स्तर पर सभी की जिम्मेदारी बनती है। बेटियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण का निर्माण करना होगा। हमें यह समझना होगा कि बेटियों की सुरक्षा केवल उनके ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के भविष्य से जुड़ी हुई है।


निर्भया हो या मौमिता बेटियों की सुरक्षा देश की बड़ी चिंता है, जिसे केवल कानून और सुरक्षा बलों के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज की मानसिकता में बदलाव लाना आवश्यक है। बेटियों को शिक्षा, सुरक्षा, और समान अवसर प्रदान करना हमारे समाज की जिम्मेदारी है। यदि हम सचमुच अपनी बेटियों को सुरक्षित और सशक्त बनाना चाहते हैं, तो हमें अपने समाज में व्याप्त उन सभी विकृतियों को दूर करना होगा, जो बेटियों की सुरक्षा में बाधा बनती हैं। एक सशक्त और सुरक्षित समाज ही देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, और यह तभी संभव है जब हमारी बेटियां सुरक्षित और सम्मानित महसूस करेंगी।

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