नम्बरों की रेस में पिछड़ता कौशल
डॉ. राजेश चौहान
स्वतन्त्र लेखक
विद्यालय जीवन हमारे जीवन का वह महत्वपूर्ण चरण है, जहां एक बच्चे की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास की नींव रखी जाती है। यह वह समय होता है जब बच्चे में न केवल अकादमिक ज्ञान बल्कि उसकी व्यक्तिगत पहचान और क्षमता भी आकार लेती है। परंतु, हमारी शिक्षा प्रणाली में कई बार बच्चों की स्वाभाविक प्रतिभा और रुचियों की अनदेखी हो जाती है। विद्यालय स्तर पर कौशल (स्किल) आधारित शिक्षा को दबा देना या सीमित करना एक बड़ी समस्या है, जो न केवल छात्रों की रचनात्मकता और व्यक्तिगत विकास को बाधित करता है बल्कि उनके भविष्य के करियर और आत्मनिर्भरता को भी प्रभावित करता है। कौशल-आधारित शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह छात्रों में व्यावहारिक ज्ञान, समस्याओं को हल करने की क्षमता, और विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास करना है। दुर्भाग्य से, पारंपरिक शैक्षणिक ढांचे में अक्सर इन पहलुओं की अनदेखी की जाती है।
विद्यालयों में पाठ्यक्रम और परीक्षा प्रणाली का मुख्य फोकस अब भी रटने और परीक्षा परिणामों पर है। इसके चलते, शिक्षक और छात्र दोनों केवल उन विषयों और पाठ्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिनसे बेहतर अंक प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके कारण कौशल विकास के लिए आवश्यक गतिविधियों, जैसे कि परियोजनाओं, प्रायोगिक कार्यों, रचनात्मक लेखन, और अन्य स्किल-आधारित विषयों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। अनेक विद्यार्थी परिणाम के दबाव में मानसिक रोगी बन जाते हैं और अच्छा परिणाम प्राप्त न कर पाने की स्थिति में आत्महत्या जैसे गलत कदम तक उठा लेते हैं।
विद्यालय स्तर पर छात्रों को सीमित विषय चुनने की स्वतंत्रता दी जाती है, खासकर दसवीं और बारहवीं कक्षा के बाद। विज्ञान, वाणिज्य, और कला जैसे पारंपरिक स्ट्रीम में बांधकर छात्रों की रुचि और कौशल के अनुरूप शिक्षा को सीमित कर दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, कई छात्रों को अपने कौशल या रुचि वाले क्षेत्रों में पढ़ाई करने का अवसर नहीं मिल पाता, जैसे कि संगीत, खेल, कला, तकनीकी शिक्षा, और शिल्पकला। हालाँकि नई शिक्षा नीति 2020 में प्रारंभिक स्तर से ही कौशल पर आधारित व्यावसायिक शिक्षा पर ज़ोर दिया गया है।
जब विद्यालयों में केवल किताबी ज्ञान और परीक्षा प्रणाली पर जोर होता है, तो रचनात्मकता और नवाचार की भावना को विकसित करने के लिए आवश्यक वातावरण गायब हो जाता है। छात्र ऐसे वातावरण में सीखते हैं जहां उनसे केवल उत्तर देने की उम्मीद की जाती है, बजाय इसके कि वे नई चीजों को सीखने और अपनी क्षमताओं का प्रयोग करने की स्वतंत्रता पाएं। यह नवाचार और नए विचारों के विकास को बाधित करता है। शिक्षक भी केवल पाठ्यक्रम पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। उन्हें स्किल-आधारित शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता, या उनकी प्राथमिकता यह नहीं होती। इसके कारण स्किल डिवेलपमेंट की गतिविधियां विद्यालय स्तर पर हाशिये पर चली जाती हैं।
कौशल-आधारित शिक्षा छात्रों को विभिन्न करियर विकल्पों के लिए तैयार करती है। आज के वैश्विक और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी युग में, केवल शैक्षणिक डिग्री ही पर्याप्त नहीं होती; इसके साथ ही विशेष कौशल भी आवश्यक होते हैं। जैसे-जैसे दुनिया तकनीकी और डिजिटल क्षेत्रों में बढ़ रही है, तकनीकी कौशलों की मांग बढ़ रही है। कौशल आधारित शिक्षा छात्रों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करती है। वे केवल शैक्षणिक ज्ञान पर निर्भर नहीं रहते बल्कि अपने व्यक्तिगत कौशलों से नए अवसरों का निर्माण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र संगीत, चित्रकला, हस्तकला, प्रोग्रामिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, फोटोग्राफी या खाना पकाने जैसी स्किल्स में प्रशिक्षित होता है, तो वह जल्दी ही स्वावलंबी बन सकता है।
कौशल आधारित शिक्षा से छात्रों में वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित होती है। इससे वे अपने जीवन और करियर में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और उनके लिए उपयुक्त समाधान ढूंढ सकते हैं। जब छात्र अपनी रुचि और कौशलों के अनुसार शिक्षा प्राप्त करते हैं, तो उनकी रचनात्मकता और आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। वे न केवल अपनी प्रतिभाओं को पहचानते हैं बल्कि उन्हें समाज में सार्थक योगदान देने का अवसर भी मिलता है। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कौशल आधारित शिक्षा को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए स्कूलों को व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, और रचनात्मक कार्यों को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए। देश के सभी राज्यों को नई शिक्षा नीति को यथाशीघ्र प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए।
व्यवसायिक विषयों के अध्यापन के नए विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति तथा उन्हें कौशल विकास की दिशा में प्रशिक्षित करना आवश्यक है। उन्हें नए-नए तकनीकों और शिक्षण पद्धतियों से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि वे छात्रों को बेहतर तरीके से कौशल-आधारित शिक्षा प्रदान कर सकें। विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर छात्र को उसकी रुचि और क्षमताओं के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले। इससे न केवल छात्रों का विकास होगा बल्कि शिक्षा का स्तर भी बेहतर होगा। कौशल विकास के लिए सरकार और निजी संस्थानों को साथ मिलकर काम करना चाहिए। स्कूलों में विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम, वर्कशॉप और परियोजनाएं आयोजित की जानी चाहिए, जिससे छात्रों को व्यावहारिक अनुभव मिल सके।
विद्यालय स्तर पर कौशल आधारित शिक्षा को महत्व देना छात्रों के संपूर्ण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। जिस क्षेत्र में विद्यार्थी की अधिक रूचि होती है उसे उसी क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। आज की प्रतिस्पर्धी और तेजी से बदलती दुनिया में केवल किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है। छात्रों को स्किल आधारित शिक्षा की आवश्यकता होती है, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और अपने करियर में सफलता प्राप्त कर सकें। यदि सचिन तेंदुलकर को गाना और लता मंगेशकर क्रिकेट सिखाते तो शायद ये दोनों भी गुमनाम भीड़ का हिस्सा होते।
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