मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

केरल प्रवास : एक संस्मरण : डॉ. राजेश चौहान

केरल जिसे "ईश्वर का अपना देश" कहा जाता है, अपनी नैसर्गिक सुंदरता, सांस्कृतिक विविधता और अनुशासनप्रिय जीवनशैली के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। जब मुझे केंद्र सरकार की नौकरी के तहत पहली पोस्टिंग केरल के कासरगौड जिले के छोटे से कस्बे कान्हनगढ़ में मिली, तब मैंने इस अनोखी भूमि की खूबसूरती और खासियतों को करीब से देखा। यह अनुभव न केवल मेरे करियर की शुरुआत का प्रतीक था, बल्कि एक नई संस्कृति, जीवनशैली और सोच को आत्मसात करने का अवसर भी था।


दिल्ली से कान्हनगढ़ तक की लंबी यात्रा के बाद जब मैं स्टेशन पर उतरा, तो वहाँ का वातावरण और व्यवस्था देखकर मेरी थकान पलभर में दूर हो गई। कान्हनगढ़ रेलवे स्टेशन का अनुशासित और स्वच्छ माहौल एक सुखद आश्चर्य था। स्टेशन की सफाई, लोगों का व्यवस्थित आचरण और शांति मुझे तुरंत भा गई। मुझे यह देखकर लगा कि स्वच्छता यहाँ की जीवनशैली का हिस्सा है, न कि केवल दिखावे के लिए अपनाई गई आदत।


स्टेशन से बाहर निकलते ही यह अनुशासन और स्पष्ट हो गया। ऑटो रिक्शा चालक अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, और मैंने जब किराया पूछा तो मोलभाव करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी। जब मैंने दूसरे चालक से कम कीमत पर यात्रा करने की कोशिश की, तो उसने मुझे विनम्रता से पहले चालक के पास लौटने का सुझाव दिया। यह ईमानदारी और व्यवस्थित आचरण मेरे लिए बिल्कुल नया था। मैंने उत्तर भारत के कई बड़े शहरों में इस तरह की अनुशासनप्रियता की कमी देखी है, इसलिए केरल का यह अनुभव मेरे लिए प्रेरणादायक था।


केरल में रहते हुए मैंने पाया कि यहाँ के लोग न केवल स्वच्छता और अनुशासन को अपनी दिनचर्या का हिस्सा मानते हैं, बल्कि वे अपने समाज की बेहतरी के लिए सामूहिक जिम्मेदारी भी निभाते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा फेंकना, सड़क किनारे थूकना या धूम्रपान करना यहाँ के समाज में अस्वीकार्य है। मैंने देखा कि बस में यात्रा करते समय यात्री अपनी बारी का इंतजार करते हैं, और बस के दरवाजे को खोलने और बंद करने की जिम्मेदारी दरवाजे के पास बैठे व्यक्ति की होती है। यहाँ तक कि शराब की दुकानों पर भी लोग कतार में खड़े होकर अनुशासन बनाए रखते हैं।


एक घटना ने केरलवासियों की ईमानदारी को मेरे सामने उजागर किया। एक बार मैंने जल्दबाजी में ऑटो चालक को ₹20 दे दिए, जबकि किराया केवल ₹10 था। मुझे लगा कि यह सामान्य बात है और मैं इसे भूल भी गया। लेकिन कुछ देर बाद वह ऑटो चालक मेरे पास आया और अतिरिक्त ₹10 लौटा दिए। यह घटना मेरे लिए अविश्वसनीय थी और इसने मुझे सिखाया कि ईमानदारी यहाँ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।


वहां का एक और अनुभव मैं आपके साथ साझा करना चाहूंगा। यह घटना  मेरी एक और यात्रा से जुड़ी है, जिसने मेरे दिल को गहराई से छू लिया और मुझे मानवता का एक और खूबसूरत पहलू दिखाया। मैं अपने माता-पिता के साथ दिल्ली से कान्हनगढ़ की यात्रा कर रहा था। यह सफर ट्रेन से हो रहा था, और हमारे डिब्बे में विभिन्न राज्यों के अजनबी लोग सहयात्री थे। मेरी बगल की सीट पर कान्हनगढ़ का एक परिवार बैठा हुआ था। यात्रा के दौरान उनसे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ, जो धीरे-धीरे आत्मीयता में बदल गया। उस परिवार के मुखिया भारतीय सेना में कार्यरत थे, और संयोगवश, उनका गंतव्य भी वही था, जहां हमें जाना था।


हमारी ट्रेन तड़के तीन बजे अपने स्टेशन पर पहुंची। ट्रेन से उतरने के बाद हम स्टेशन के बाहर आए। उस परिवार ने अपने घर जाने के लिए पहले से ही एक कार बुक कर रखी थी। उन्होंने अत्यंत स्नेह और अपनत्व के साथ हमें प्रस्ताव दिया कि वे हमें हमारे घर तक छोड़ देंगे। मैंने विनम्रता से कहा कि हम ऑटो लेकर चले जाएंगे, लेकिन उनका आग्रह इतना आत्मीय था कि हम उनकी बात टाल नहीं सके।


उन्होंने पहले हमें हमारे घर तक सुरक्षित पहुंचाया और फिर अपनी यात्रा पूरी करने के लिए निकले। उनकी इस निःस्वार्थ सहायता और सहृदयता ने मेरे हृदय को गहराई तक छू लिया। एक अजनबी परिवार का ऐसा व्यवहार आत्मीयता और मानवता की अप्रतिम मिसाल था। आज भी मैं उनके इस कृत्य को स्मरण करता हूं और उनसे फोन पर बातचीत करता रहता हूं। यह घटना यह सिद्ध करती है कि सच्ची आत्मीयता और परोपकार किसी पूर्व परिचय का मोहताज नहीं होता।


केरल की सांस्कृतिक विविधता भी उतनी ही अद्भुत है जितनी यहाँ की स्वच्छता और अनुशासन। केरल प्रवास के दौरान मुझे यहाँ के धार्मिक अनुष्ठान थैय्यम को नजदीक से देखने और उस पर अनुसन्धान करने का मौका मिला। थैय्यम केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक जीवंत कला है, जिसमें नर्तक अलौकिक परिधानों और मुखौटों के साथ नृत्य करते हैं। यह परंपरा समाज में विभिन्न देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था और आध्यात्मिकता को दर्शाती है। शोध के दौरान मुझे वहां की संस्कृति, रिति-रिवाज़ो और लोकमान्यताओं को नज़दीक से देखने, परखने का अवसर मिला।


यहाँ की पारंपरिक नृत्य कलाएँ जैसे कथकली, मोहिनीअट्टम, और युद्धकला कल्लरिपयट्टू केरल की सांस्कृतिक पहचान को और समृद्ध बनाती हैं। इन कलाओं के माध्यम से न केवल मनोरंजन होता है, बल्कि ये लोगों को उनके इतिहास और परंपराओं से जोड़ती हैं।


केरल की प्राकृतिक सुंदरता इसे एक स्वर्गीय भूमि का दर्जा प्रदान करती है। पश्चिमी घाट की हरियाली, शांत बैकवाटर, समुद्र तट, और मुन्नार के चाय बागान मन को शांति और सुकून देते हैं। अलप्पुझा की बैकवाटर सैर और हाउसबोट में बिताया गया समय आज भी मेरी यादों में ताजा है। वायनाड के जंगल, झरने और साहसिक खेलों ने मेरे अनुभवों को और भी रोमांचक बना दिया। कोवलम और वर्कला के समुद्र तट पर सूर्यास्त देखना जैसे स्वर्गीय दृश्य का अनुभव करना था।


हालांकि, मैंने यह भी महसूस किया कि केरलवासियों का उत्तर भारतीयों के प्रति दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक नहीं होता। उनके व्यवहार में एक हिचक और दूरी थी, लेकिन जब मैंने उनकी संस्कृति और परंपराओं को समझने और उनका सम्मान करने की कोशिश की, तो मुझे उनके सहयोग और स्नेह का अनुभव हुआ।


केरल का यह प्रवास मेरे जीवन का सबसे समृद्ध और प्रेरणादायक अनुभव रहा। वहाँ की स्वच्छता, अनुशासन, और सांस्कृतिक विविधता ने न केवल मुझे प्रभावित किया, बल्कि यह भी सिखाया कि अगर हम अपनी जिम्मेदारियों को समझें और अनुशासन का पालन करें, तो हमारा समाज भी इस तरह के सकारात्मक बदलावों का साक्षी बन सकता है। मैंने वहाँ लगभग एक वर्ष चार महीने बिताए और इस दौरान हर छोटी-बड़ी जगह ने मुझे कुछ नया सिखाया।


यह केरल में बिताए गए समय का मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। संभव है कि किसी और का अनुभव मुझसे भिन्न हो, लेकिन मेरा समय वहां अत्यंत सुखद और स्मरणीय रहा। केरल के निवासियों का स्नेह, उनकी सरलता और आतिथ्य ने मेरे हृदय पर गहरी छाप छोड़ी है। उनके व्यवहार ने यह अहसास कराया कि मानवता की सच्ची सुंदरता संबंधों की गर्माहट और परस्पर सम्मान में निहित है। यह अनुभव मेरे जीवन की अमूल्य स्मृतियों में से एक बन गया है।


काश, भारत के हर कोने में कान्हनगढ़ जैसी ईमानदारी, अनुशासन और स्वच्छता देखने को मिले। यदि ऐसा हो सके, तो हमारा देश दुनियां के बेहतरीन देशों में से एक बन सकता है। केरल ने मुझे सिखाया कि केवल संसाधन ही नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और समर्पण भी समाज को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह अनुभव हमेशा मेरे दिल में जीवित रहेगा। 




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